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भारत में अनुसंधान एवं कौशल आधारित शिक्षा प्रणाली

Lokesh Pal November 06, 2024 05:15 87 0

संदर्भ :

वर्तमान में भारत का उच्चतर शिक्षा क्षेत्र महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है, परिणामस्वरूप उद्योग एवं अनुसंधान की मांगों को पूरा करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।

भारत के उच्चतर शिक्षा क्षेत्र संबंधी चुनौतियाँ

  • स्नातकों में कौशल की कमी : निजी इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों और नए आईआईटी के विस्तार के बावजूद, अध्ययनों से पता चलता है कि अधिकांश स्नातकों में आवश्यक उद्योग कौशल की कमी है।
  • शोध संस्थानों में चिंताएँ : शोध संस्थान, उच्चतर शिक्षा में प्रवेश करने वाले विद्यार्थियों की योग्यता के संबंध में चिंतित हैं, जो अनुसंधान और विकास परिणामों को प्रभावित कर रहा है।
  • कुशल प्रतिभाओं की कमी : विभिन्न क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों को खोजने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जो उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या में गिरावट से और भी दयनीय हो जाता है।
  • संकाय की कमी : शैक्षणिक संस्थान पहले से ही संकाय की कमी का सामना कर रहे हैं तथा भविष्य में इस मुद्दे के और भी तीव्र होने की उम्मीद है।
  • अधूरे निवेश : योग्य प्रतिभाओं की कमी के कारण क्वांटम कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में बड़े निवेश का उपयोग न होने का जोखिम है।
  • राष्ट्रीय प्रगति पर प्रभाव : कुशल स्नातकों की कमी देश की अनुसंधान और विकास क्षमताओं को खतरे में डालती है, जो सामाजिक-आर्थिक विकास तथा नवाचार के लिए आवश्यक हैं।

समस्या के मुख्य कारण

  • प्रशिक्षण की गुणवत्ता : संकाय सदस्य, जो प्रायः एक ही संस्थान से स्नातक होते हैं, संस्थागत रैंकिंग बनाए रखने के लिए अनुसंधान (प्रकाशन और पेटेंट) को प्राथमिकता देने के दबाव का सामना करते हैं, जो प्रायः शिक्षण गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
    • यह परिवर्तन शिक्षण पद्धति से समझौता करता है, जिसके परिणामस्वरूप स्नातकों में उद्योग-आधारित कौशल अपर्याप्त होते हैं, जो पेशेवर मानकों और अनुसंधान परिणामों दोनों को प्रभावित करता है।
  • ‘अपस्किलिंग’ कार्यक्रमों का सीमित प्रभाव : इंटर्नशिप, ऑनलाइन पाठ्यक्रम और उद्योग-आधारित प्रशिक्षण जैसी ‘अपस्किलिंग’ पहल लाभदायक तो हैं, लेकिन उनमें कुशल पेशेवरों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक मापदंडों का अभाव है।
  • वर्तमान शिक्षा परिदृश्य :
    • संस्थागत असमानता : भारत के केवल 5% स्नातक विद्यार्थियों को ही IITs, IISc और NITs जैसे प्रमुख संस्थानों में प्रवेश मिलता है। 
      • उदाहरण के लिए, IIT भुवनेश्वर प्रति कोर्स 60 से कम विद्यार्थियों को प्रवेश देता है, जबकि KIIT जैसे निजी विश्वविद्यालय उसी क्षेत्र में वार्षिक रूप से 2,000 से अधिक विद्यार्थियों को प्रवेश देते हैं। 
    • असंतुलित प्रतिभा निर्माण : अधिकांश उद्योग और अनुसंधान, पेशेवर शिक्षण-केंद्रित संस्थानों से निकलते हैं, जिनमें आमतौर पर मजबूत अनुसंधान बुनियादी ढाँचे का अभाव होता है। 
      • इससे प्रतिभा का अंतर पैदा होता है, क्योंकि अनुसंधान-गहन संस्थान (जैसे IITs) संबंधी समग्र पूल में स्नातकों का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही होता है, जिससे अनुसंधान-प्रशिक्षित पेशेवरों की उपलब्धता सीमित हो जाती है।

आवश्यक समाधान एवं उपाय 

1. रैंकिंग प्रणाली सुधार

  • शिक्षण संस्थानों के लिए रैंकिंग को फिर से तैयार करना ताकि शोध आगत की तुलना में शिक्षण गुणवत्ता को प्राथमिकता दी जा सके। 
  • शोध पर वर्तमान बल, संकाय को रैंकिंग में सुधार करने के लिए कम गुणवत्ता वाले प्रकाशनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है, जिससे शिक्षण गुणवत्ता से संसाधनों को हटा दिया जाता है।

2. शैक्षणिक गुणवत्ता पर जोर देना

  • शैक्षणिक उत्कृष्टता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए संकाय विकास कार्यक्रम, मार्गदर्शन पहल और विविध पाठ्यक्रम (ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

3. सहयोगात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना

  • शिक्षण और शोध संस्थानों के बीच सहयोग शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक परिवर्तनकारी रणनीति हो सकती है।
  • शैक्षणिक पदानुक्रम के भीतर एक समर्पित शिक्षण मार्ग स्थापित करना, जैसे- शिक्षण सहायक, असोशिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर, शिक्षण उत्कृष्टता पर केंद्रित स्पष्ट करियर मार्ग का निर्माण करना।
  • शोध में रुचि रखने वाले संकाय सदस्यों को शोध संस्थानों के साथ सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, सहयोगी परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए ANRF की त्वरित नवाचार और अनुसंधान कार्यक्रम के लिए भागीदारी (PAIR) जैसी पहलों का लाभ उठाना चाहिए।

 4. शैक्षणिक उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करना

  • शिक्षण गुणवत्ता में निरंतर सुधार सुनिश्चित करने के लिए शिक्षकों की पदोन्नति शैक्षणिक कौशल पर आधारित होनी चाहिए, जिसमें शिक्षण प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए सुपरिभाषित मानदंड होने चाहिए।
  • राज्य और केंद्र सरकारें गुणवत्तापूर्ण शिक्षण को बढ़ावा देने तथा अंतर-संस्थागत सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए अनुसंधान के समान ही शिक्षण में उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना का समर्थन कर सकती हैं।

5. संयुक्त डिग्री कार्यक्रम स्थापित करना

  • शोध और शिक्षण संस्थानों के बीच संयुक्त डिग्री कार्यक्रम शिक्षण और अनुसंधान दोनों की गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं। 
  • उदाहरण के लिए, शिक्षण संस्थानों में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थी एक शोध संस्थान में अपने अंतिम वर्ष पूरे कर सकते हैं एवं दोनों संस्थानों से प्रमाण-पत्र के साथ “हाइफनेटेड डिग्री” अर्जित कर सकते हैं। 
  • यह मॉडल पाठ्यक्रम को संरेखित करेगा, संकाय सहयोग को बढ़ाएगा तथा शिक्षण एवं अनुसंधान दोनों की गुणवत्ता में सुधार करेगा।

अपेक्षित परिणाम

  • बेहतर स्नातक शिक्षा गुणवत्ता :  बेहतर शिक्षण पद्धतियाँ और पाठ्यक्रम।
  • बेहतर शोध परिणाम : शिक्षण और शोध संस्थानों के बीच बेहतर सहयोग।
  • उच्च-गुणवत्ता युक्त प्रतिभा समूह : उद्योग और शोध भूमिकाओं के लिए बेहतर ढंग से तैयार स्नातक।
  • उन्नत अभिनव शोध क्षमताएँ : अंतःविषय सहयोग के माध्यम से अनुसंधान और विकास आगत को मजबूत करना ।
  • सभी विषयों में लागू : सकारात्मक परिणाम कला, मानविकी और सामाजिक विज्ञान तक विस्तृत हैं।
  • राष्ट्रीय शैक्षिक लक्ष्य : ये प्रस्ताव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और अनुसंधान राष्ट्रीय रिसर्च फाउंडेशन (Anusandhan National Research Foundation – ANRF) के लक्ष्यों के अनुरूप हैं, जिसका उद्देश्य भारत में उच्चतर शिक्षा क्षेत्र में शिक्षण और शोध की गुणवत्ता में सुधार करना है।

निष्कर्ष

भारत के विकास को सुनिश्चित तथा भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक सुव्यवस्थित शिक्षा प्रणाली आवश्यक है, जो शिक्षण गुणवत्ता और शोध लागत के बीच के अंतर को कम कर सके। सहयोग को बढ़ावा देकर, शिक्षण पद्धति पर ध्यान केंद्रित करके और शिक्षा को उद्योग की उभरती आवश्यकताओं के साथ जोड़कर राष्ट्र एक कुशल, नवोन्मेषी कार्यबल तैयार कर सकता है, जो सतत विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को आगे बढ़ाने में सक्षम होगा ।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

भारत के विशाल शैक्षिक बुनियादी ढाँचे और NEP जैसी पहलों के बावजूद, STEM स्नातकों की गुणवत्ता चिंता का विषय बनी हुई है। उच्चतर शिक्षा में चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए और शिक्षण संस्थानों तथा प्रमुख शोध संस्थानों के बीच के अंतर को पाटने के लिए आवश्यक सुधारों की विवेचना कीजिए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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