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जीएसटी का पुनर्गठित स्वरूप और भारतीय कर प्रणाली में सुधार

Lokesh Pal September 08, 2025 05:00 67 0

संदर्भ:

जीएसटी प्रणाली के हालिया सरलीकरण को राजनीतिक रूप से प्रभावित होने के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी आवश्यक माना जा रहा है। इन सुधारों पर केंद्र-राज्य स्तर पर लगभग 18 महीने तक विचार-विमर्श हुआ, जो व्यवस्थागत देरी को दर्शाता है। संभव है, कि ब्याज दरों में कटौती से माँग में वृद्धि तथा आर्थिक विकास को गति मिलेगी, किन्तु इसका प्रभाव अनिश्चित है।

जीएसटी सुधारों का प्रभाव:

  • सरकार को राजस्व हानि: जीएसटी कटौती के कारण सरकार को लगभग ₹48,000 करोड़ का आर्थिक नुकसान होगा, जिससे प्रभावी रूप से संसाधन सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्थानांतरित हो जाएंगे।
  • अर्थव्यवस्था के लिए प्रोत्साहन: इस हस्तांतरण से भारत की ₹330 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था में माँग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • अस्पष्ट बजटीय प्रभाव: बजट 2025 की कर राहतों ने अभी तक उपभोग और आर्थिक गति पर स्पष्ट प्रभाव प्रदर्शित नहीं किया है।

निर्यात प्रतिस्पर्धा पर दबाव:

  • भारतीय निर्यात पर टैरिफ बोझ: अमेरिकी बाजार में $48-60 बिलियन मूल्य की भारतीय वस्तुओं पर 50% तक का टैरिफ लगता है।
  • अधिक रोज़गार वाले क्षेत्र जोखिम में: वस्त्र और रत्न एवं आभूषण क्षेत्र, जो तिरुप्पुर, नोएडा और सूरत जैसे केन्द्रों में 50 मिलियन से अधिक श्रमिकों को रोजगार देते हैं, गंभीर रूप से प्रभावित हैं।
  • तुलनात्मक हानि: इन टैरिफ चुनौतियों के कारण भारतीय निर्यात वियतनाम, श्रीलंका और बांग्लादेश की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी होता जा रहा है।

राजकोषीय स्थान और संसाधन एकत्रण:

  • सीमित राजकोषीय घाटा: 4.4% का राजकोषीय घाटा लक्ष्य और भारत की S&P रेटिंग में सुधार, विस्तृत सरकारी व्यय को बाधित करता है।
  • परिसंपत्ति मुद्रीकरण लक्ष्य: नीति आयोग ने पहले मुद्रीकरण के लिए ₹6 लाख करोड़ मूल्य की परियोजनाओं की पहचान की थी, लेकिन परिणाम अभी तक घोषित नहीं किए गए हैं।
    • 2025 के बजट में मुद्रीकरण लक्ष्य को बढ़ाकर ₹10 लाख करोड़ कर दिया गया है, जिसके लिए पारदर्शिता और स्पष्ट समय-सीमा की आवश्यकता है।
  • अप्रयुक्त विनिवेश क्षमता: भारत अपनी व्यापक सार्वजनिक उपक्रम होल्डिंग्स के कारण एक विशाल व्यापारिक राष्ट्र के रूप में कार्य करना जारी रखता है, जो साहसिक विनिवेश की आवश्यकता को उजागर करता है।

अमृत काल/भारत निधि प्रस्ताव:

  • राज्य होल्डिंग्स का मूल्यांकन: सूचीबद्ध सार्वजनिक उपक्रमों का बाजार मूल्य ₹34.33 लाख करोड़ है, जबकि सूचीबद्ध सार्वजनिक उपक्रम बैंकों का बाजार मूल्य ₹15.9 लाख करोड़ है।
  • उच्च सरकारी शेयरधारिता: LIC, GIC, RVNL, IRFC और सार्वजनिक बैंकों जैसे कई उपक्रमों में अभी भी सरकार की हिस्सेदारी 80% से अधिक है।
  • संप्रभु निधि का निर्माण: एक प्रस्ताव में 51% से अधिक हिस्सेदारी को संप्रभु “अमृत काल निधि” या ‘भारत निधि’ में रखने का सुझाव दिया गया है।
    • इस प्रकार के वित्तपोषण से मूल्यांकन को गति मिल सकती है और विकास वित्तपोषण के लिए महत्त्वपूर्ण संसाधन एकत्रित किए जा सकते हैं।

संरचनात्मक और विनियामक समस्याएँ:

  • पारंपरिक कानूनी ढाँचा: भारत की अर्थव्यवस्था पारंपरिक कानूनों, प्रणालीगत अक्षमताओं और विनियामक बाधाओं से प्रभावित है।
  • जीएसटी का अधूरा लक्ष्य: जीएसटी व्यवस्था उपकर, वृहद शुल्क, जटिल वर्गीकरण और व्यापक अनुपालन बोझ से जूझ रही है
  • व्यावसायिक कानूनों का अपराधीकरण: व्यवसायों को नियंत्रित करने वाले 1,843 कानूनों में से 800 से अधिक में कारावास का प्रावधान है, जो उद्यम को हतोत्साहित करता है।
  • लंबित गैर-अपराधीकरण सुधार: दंडात्मक कानूनों को आसान बनाने का सरकार का वादा अभी तक कार्यान्वयन योग्य सुधारों में परिवर्तित नहीं हुआ है|
  • वैश्विक ब्रांडिंग का अभाव: भारतीय कंपनियाँ सैमसंग, टोयोटा या सोनी जैसे ब्रांडों के पैमाने तथा वैश्विक मान्यता की बराबरी करने में विफल रही हैं।
  • नवप्रवर्तन में अपर्याप्त निवेश: अनुसंधान एवं विकास में अपर्याप्त निवेश भारत की कमजोर वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता का एक प्रमुख कारण है।
    • निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास के लिए आवंटित ₹20,000 करोड़ अभी तक वितरित नहीं किए गए हैं।
  • निर्यात विविधीकरण में कठिनाई: विविधीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई “एक जिला, एक उत्पाद” योजना क्रियान्वयन में असफल हो रही है।
  • निष्क्रिय श्रमिक कल्याण निधि:: तीव्र तकनीकी परिवर्तन आजीविका को बदल रहे हैं, जिसके लिए बड़े पैमाने पर कौशल विकास तथा पुनः कौशल की आवश्यकता है।
    • राष्ट्रव्यापी कौशल एवं पुनः कौशल क्रांति शुरू करने के लिए एक मजबूत सार्वजनिक-निजी मॉडल की आवश्यकता है। तत्काल आवश्यकता के बावजूद, श्रम कल्याण के लिए आवंटित ₹70,000 करोड़ अप्रयुक्त हैं।

आगे की राह:

  • नए बाजारों में विस्तार: भारत को अमेरिका पर अपनी अत्यधिक निर्भरता कम करने के लिए नवीन निर्यात बाजारों में विविधता लानी होगी तथा विस्तार करना होगा।
  • उचित विनियमन की आवश्यकता: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024 में प्रस्तावित विनियमन ढाँचे को समितियों से कार्यान्वयन की ओर ले जाना होगा।
  • आर्थिक संकट का समाधान: सामाजिक अशांति और लोकतांत्रिक स्थिरता के क्षरण को रोकने के लिए आर्थिक संकट पर शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • राजनीतिक आत्मसंतुष्टि से बचना: राजनीतिक नेताओं को शीघ्रता पूर्वक कार्य करना चाहिए, क्योंकि वैश्विक परिवर्तन के बीच आत्मसंतुष्टि के गंभीर आर्थिक एवं सामाजिक परिणाम हो सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था का हालिया सरलीकरण तथा पुनर्गठन भारत के आर्थिक सुधारों में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए, कि जीएसटी सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था को किस प्रकार सुदृढ़ कर सकते हैं एवं ऐसे उपाय सुझाइए, जिनसे भारत की आर्थिक संवृद्धि को और बढ़ावा मिल सके।

(15 अंक, 250 शब्द)

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