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वैवाहिक बलात्कार पर केंद्र के हलफनामे की समीक्षा

Lokesh Pal October 08, 2024 05:45 78 0

संदर्भ : 

भारतीय न्याय संहिता, 2023 के वैवाहिक बलात्कार अपवाद (एमआरई) में कहा गया है कि अठारह वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ किसी पुरुष द्वारा यौन संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता। इस प्रावधान को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने के आरोप में चुनौती दी जा रही है, जिसके समर्थन में केंद्र ने एक हलफनामा दाखिल किया है।

केंद्र द्वारा प्रस्तुत प्रमुख तर्क 

  • यौन पहुंच की उचित अपेक्षा : केंद्र का तर्क है कि विवाह “यौन पहुंच की उचित अपेक्षा” पैदा करता है, जो वैवाहिक संबंधों को अजनबियों या गैर-वैवाहिक साझेदारों के साथ संबंधों से अलग करता है। 
    • हालाँकि, यह धारणा इसकी अस्पष्टता के बारे में चिंता पैदा करती है और क्या “उचित पहुँच” व्यक्तिपरक या वस्तुनिष्ठ है।
  • विवाह संस्था का कमजोर होना व दुरुपयोग की चिंताएं : इस हलफनामे में दावा किया गया है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता देने से विवाह नामक संस्था कमजोर हो सकती है और झूठे आरोप भी लग सकते हैं। 

आलोचकों का तर्क : 

  • इस संदर्भ में विभिन्न आलोचकों का तर्क है कि इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है। वो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि अगर कोई शादी बलात्कार की स्वीकृति पर निर्भर करती है, तो इसमें ज़रूरी सुधारों की ज़रूरत है। 
  • यद्यपि कानूनों का दुरुपयोग हो सकता है, परंतु इससे कानून का महत्व कम नहीं होता।

केंद्र के तर्क के कानूनी निहितार्थ : 

  • अधिकार क्षेत्र और कानूनी मुद्दे : केंद्र का तर्क है कि वैवाहिक बलात्कार को संसद द्वारा एक सामाजिक मुद्दे के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए, न कि अदालतों के लिए एक कानूनी मुद्दे के रूप में। 
  • मूल अधिकारों का उलंघन : हालांकि, अनुच्छेद 14 और 21 से परस्पर सम्बद्ध होने के कारण यह आवश्यकता महसूस होती है कि यह वास्तव में एक कानूनी मामला है। सर्वोच्च न्यायालय के पास वैवाहिक बलात्कार अपवाद (एमआरई)  की संवैधानिकता का मूल्यांकन करने और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर इसे अमान्य करने का अधिकार है।

निष्कर्ष :

केंद्र के हलफनामे में वैवाहिक बलात्कार पर अपवाद का समर्थन करने वाले तर्क प्रस्तुत किए गए हैं। जिसमें इसकी संसद द्वारा एक सामाजिक मुद्दे के रूप में संबोधित किए जाने की बात पर बल दिया गया है। फिर भी उनकी कानूनी मान्यता का प्रश्न संदिग्ध है। न्यायपालिका के पास वैवाहिक बलात्कार अपवाद (एमआरई) की संवैधानिकता और मौलिक अधिकारों के साथ इसके संरेखण का मूल्यांकन करने का अधिकार है, जो समाज और भारत के कानूनी ढांचे के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है।

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