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सूचना का अधिकार अधिनियम तथा उसकी परिवर्तित उपयोगिता

Lokesh Pal February 25, 2025 05:15 10 0

संदर्भ:

लंबे समय से नौकरशाही (अधिकार-तंत्र) प्रतिरोध, न्यायिक निर्णयों और विधायी संशोधनों के कारण आरटीआई अधिनियम की प्रभावशीलता कम हो रही है।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005:

  • सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 ने नागरिकों में व्यापक उम्मीद जगाई, क्योंकि इसने उन्हें राष्ट्र के शासक के रूप में मान्यता दी। 
  • सशक्तीकरण: इसने लोगों को सरकार से गरिमा और सम्मान के साथ सूचना माँगने का अधिकार दिया।
    • ऐसा प्रतीत होता है, कि यह अधिनियम ‘स्वराज’ प्राप्ति का एक साधन है, जिसकी नागरिकों की लंबे समय से माँग अथवा इच्छा थी।
  • संहिताकरण: आरटीआई ने सूचना के मूल अधिकार को संहिताबद्ध किया और इसे विश्व के प्रमुख  पारदर्शिता कानूनों में से एक माना गया।
    • इससे भ्रष्टाचार और निरंकुशता पर नियंत्रण की उम्मीद थी, जिससे नागरिक अपनी सरकार के निरीक्षक के रूप में तथा गलत कार्यों के विरोध कर सकेंगे।
  • प्रभाव: हालाँकि, यह उम्मीद से बहुत कम रहा है तथा लोकतंत्र की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है।
  • आरटीआई का विरोध: कुछ ही समय में सरकार को यह आभास हो गया, कि इस अधिनियम ने सरकारी कर्मचारियों से नागरिकों को शक्ति हस्तांतरित कर दी है।

आरटीआई अधिनियम की सीमाएँ

  • सूचना आयोगों की अप्रभाविता : सूचना आयोगों को आरटीआई के तहत अंतिम अपीलीय प्राधिकरण के रूप में बनाया गया था।
    • सेवानिवृत्त नौकरशाह इन पदों पर प्रभावी थे, जो नागरिकों को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए अनिच्छुक थे।
  • सेवानिवृत्ति के बाद लाभ: इन भूमिकाओं के लिए बेहतरीन और ईमानदार न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। कई आयुक्तों ने इस नौकरी को सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ  के रूप में देखा और सीमित घंटे कार्य किया।
  • विलंब और लंबित मामले: उच्च न्यायालय के न्यायाधीश वार्षिक 2,500 से अधिक मामलों का निपटान करते हैं, जबकि आयुक्त इससे भी कम मामलों को संबोधित करते हैं।
    • आरटीआई मामले उच्च न्यायालय के मामलों की तुलना में सरल हैं, फिर भी निपटान दर कम है।
  • समय-सीमा का अभाव: सूचना आयोगों पर कोई कठोर समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई, जिसके कारण मामले वर्षों तक लंबित बने रहे।
    • आरटीआई समयबद्ध जवाबदेही के साधन की बजाय ऐतिहासिक रिकॉर्ड रखने का साधन बन गया।
  • कमजोर दंडात्मक प्रावधान: दंडात्मक प्रावधानों का उद्देश्य अनुपालन सुनिश्चित करना था, लेकिन आयुक्त दंड निर्धारित करने में देरी करते रहे।
  • नियुक्ति का मुद्दा: आयुक्तों की नियुक्ति में देरी के परिणामस्वरूप लंबित मामलों की संख्या बढ़ गई। सरकारों ने अधिनियम की प्रभावशीलता को कमजोर करने के लिए जानबूझकर नियुक्तियों को बाधित किया।
  • पहुँच को सीमित करना: सीबीएसई बनाम आदित्य बंदोपाध्याय (2011) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 8 के तहत ‘अपवाद’ की कठोर व्याख्या को चुनौती दी।
    • न्यायालय ने तर्क दिया, कि प्रशासन में बाधा डालने के लिए आरटीआई का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
    • इसने आरटीआई आवेदकों को बोझिल बताया और सूचना देने से इनकार करने को उचित ठहराया।
    • पारदर्शिता को अधिकार की बजाय बाधा के रूप में देखने को प्रोत्साहित किया।
  • निर्णय का प्रभाव: व्यापक व्याख्या ने अधिकारियों को सूचना देने से इनकार करना आसान बना दिया। पारदर्शिता को मूल अधिकार की बजाय बाधा के रूप में पुनः परिभाषित किया गया। आरटीआई उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा तथा सामाजिक प्रतिष्ठा को बाधित किया गया, जिससे सार्वजनिक जवाबदेही के लिए इसका उपयोग हतोत्साहित हुआ।
  • ‘व्यक्तिगत सूचना’ का विस्तार: गिरीश रामचंद्र देशपांडे बनाम सीआईसी (2012) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया, कि लोक सेवकों के अनुशासनात्मक रिकॉर्ड और वित्तीय विवरण व्यक्तिगत सूचनाएँ हैं।
    • न्यायालय ने आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(J) में जनहित परीक्षण को नजरअंदाज कर दिया। 
    • न्यायालय ने महत्त्वपूर्ण सूचना देने से इनकार किया, जिससे पारदर्शिता बाधित हुई। 
    • इस निर्णय ने RTI को RDI (सूचना देने से इनकार करने का अधिकार) में परिवर्तित कर दिया। 
    • “डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम” इस व्याख्या का उपयोग करके आरटीआई अधिनियम में और संशोधनों को प्रस्तावित करता है।

निष्कर्ष

आरटीआई के मूल उद्देश्य को बनाए रखने के लिए, अधिनियम को अपरिवर्तित रहना चाहिए। नागरिकों और मीडिया को इसे कमजोर होने से बचाने के लिए सक्रिय रूप से इसका संरक्षण करने का प्रयास करना चाहिए। किसी भी तरह का परिवर्तन अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत “वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के मूल अधिकार को बाधित करता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

न्यायिक व्याख्याओं और अधिकार-तंत्र ने सूचना के अधिकार अधिनियम के मूल उद्देश्य को किस प्रकार  प्रभावित किया है, इसकी जाँच कीजिए। गोपनीयता संबंधी चिंताओं के साथ सूचना पारदर्शिता को संतुलित करने में चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए तथा विभिन्न अपवादों को संबोधित करते हुए लोकतांत्रिक जवाबदेही को मज़बूत करने के उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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