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भारत में नदी प्रदूषण : एक गंभीर दीर्घकालिक समस्या

Lokesh Pal March 15, 2025 05:15 5 0

संदर्भ:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की एक रिपोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को सूचित किया, कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में संपन्न हुए महाकुंभ के दौरान कई स्थानों पर जल में उच्च फेकल कोलीफॉर्म स्तर पाया गया है, जिसके कारण यह प्राथमिक जल गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करता है।

मुख्य बिंदु

  • नदियाँ भारत की सांस्कृतिक विरासत और पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग हैं। भारत नदियों को “जीवित इकाई” के रूप में मान्यता देने वाला पहला देश था| 
  • वर्तमान में इनका प्रदूषण स्तर इनके स्वास्थ्य के लिए ख़तरा बना हुआ है। मौजूदा कानूनों, परियोजनाओं, योजनाओं और नीतियों के बावजूद, प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। 
  • जल गुणवत्ता आकलन: 2022 की एक रिपोर्ट में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने भारत में 279 नदियों में 311 प्रदूषित नदी खंडों की पहचान की।
    • BOD स्तर: नमें से 46 खंडों में जैविक ऑक्सीजन माँग (BOD) 30 मिलीग्राम/लीटर से अधिक थी, जो उच्च जैविक प्रदूषण को दर्शाता है और जल को मानव उपभोग के लिए असुरक्षित और जलीय जीवन के लिए हानिकारक बनाता है। 
    • भारत में प्रदूषित नदी विस्तार: महाराष्ट्र में सर्वाधिक प्रदूषित नदी विस्तार (55) हैं। 
      • गुजरात और उत्तर प्रदेश में 6-6 अत्यधिक प्रदूषित विस्तार हैं। 
      • तमिलनाडु में कूम नदी विस्तार सबसे अधिक प्रदूषित है, जिसका BOD स्तर 345 मिलीग्राम/लीटर से अधिक है। 
    • इसके अलावा, 2022-2023 सीपीसीबी रिपोर्ट से पता चला है कि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में निगरानी की गई 97 जगहों में से 52 में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर 2500 एमपीएन/100 मिली. से अधिक था, जो गंभीर सीवेज संदूषण को दर्शाता है।

  • डेटा मूल्यांकन: राष्ट्रीय जल गुणवत्ता नेटवर्क के तहत, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) और प्रदूषण नियंत्रण समितियों (PCC) के सहयोग से समय-समय पर नदियों में जल की गुणवत्ता का मूल्यांकन करता है।
  • जैविक ऑक्सीजन माँग (BOD): यदि किसी नदी के हिस्से में 3 mg/L से अधिक BOD है, तो उसे प्रदूषित (स्नान के लिए असुरक्षित) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। BOD एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है, जो जल में कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाता है।
  • फेकल कोलीफॉर्म (FC): फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया समतापीय जंतुओं और मनुष्यों की आंतों में पाए जाते हैं। जल पीने, तैरने या अन्य मनोरंजक गतिविधियों के लिए सुरक्षित है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए प्रायः जल की गुणवत्ता के आकलन में फेकल कोलीफॉर्म का परीक्षण किया जाता है।
    • यदि एफ.सी. 2500 एम.पी.एन. (सबसे संभावित संख्या)/100 मिली. से अधिक है, तो जल अत्यधिक विषाक्त है।
  • गंगा नदी में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर: महाकुंभ मेले के दौरान, सीपीसीबी ने बताया कि प्रयागराज में गंगा नदी में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर प्रति 100 मिलीलीटर में 2,500 यूनिट की सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक है।

नदी प्रदूषण के प्रमुख कारण

  • अनुपचारित सीवेज: अनुपचारित सीवेज भारत में नदी प्रदूषण का प्रमुख कारण है। CPCB के अनुसार, भारत में 60% से अधिक अनुपचारित सीवेज नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है, जिससे जल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों को हानि होती है।
  • औद्योगिक अपशिष्ट: अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट जल, विशेष रूप से रसायन, कपड़ा, कागज़ और टेनरियों (जहाँ जंतुओं की खाल को रसायनों से उपचारित करके चमड़ा बनाया जाता है) जैसे उद्योगों से, जहरीले रसायन होते हैं जो पानी को प्रदूषित करते हैं और जलीय जीवन को नुकसान पहुँचाते हैं।
    • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में टेनरियों द्वारा किए गए अपरिवर्तनीय नुकसान की ओर संकेत किया, जो अनुपचारित अपशिष्टों को पलार नदी में बहा देते हैं।
  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट: अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन नदी प्रदूषण में व्यापक योगदान देता है। प्रति वर्ष नदियों में लाखों टन ठोस अपशिष्ट डाला जाता है, जिससे जल प्रवाह अवरुद्ध होता है और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है।
  • कृषि अपवाह: कृषि गतिविधियों से अपवाह जल निकायों में हानिकारक कीटनाशकों और उर्वरकों को लाता है, जिससे सुपोषण और बीओडी जैसी प्रक्रियाओं में वृद्धि होती है, तथा जल की गुणवत्ता और भी खराब हो जाती है।
    • उदाहरण: पंजाब की सतलुज और ब्यास नदी कीटनाशकों से अत्यधिक मात्रा में प्रभावित हैं।
  • रेत खनन और अवैध अतिक्रमण: अत्यधिक रेत खनन और अवैध अतिक्रमण प्राकृतिक नदी प्रवाह को बाधित करते हैं, बाढ़ के जोखिम को बढ़ाते हैं तथा अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन के कारण प्रदूषण में योगदान देते हैं।

कानूनी ढाँचा और नीतिगत प्रतिक्रिया

  • जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974: इस अधिनियम ने पर्यावरण संबंधी मुद्दों को विनियमित करने के लिए केंद्रीय प्राधिकरण के रूप में तथा प्रवर्तन के लिए राज्य स्तर पर एसपीसीबी की स्थापना की।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: यह कानून औद्योगिक निर्वहन के मानकों सहित पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न पहलुओं को शामिल करता है।
  • राष्ट्रीय जल नीति, 2012: यह नीति जल निकायों की सुरक्षा और खराब स्वच्छता तथा अपर्याप्त सीवेज उपचार सुविधाओं से उत्पन्न प्रदूषण को दूर करने के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
  • नदी पुनरुद्धार कार्यक्रम: भारत ने प्रदूषण से निपटने के लिए कई नदी पुनरुद्धार पहलें प्रारंभ की हैं:
    • गंगा एक्शन प्लान (GAP): 1985 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य सीवेज को रोककर और उसका उपचार करके जल गुणवत्ता में सुधार करना था। हालाँकि, इसका प्रभाव ₹20,000 करोड़ के विवाद व्यय तक ही सीमित था।
    • यमुना एक्शन प्लान: यह 1993 में शुरू किया गया, जिसे कुल तीन चरणों में लागू किया गया, लेकिन नदी में प्रदूषण का उच्च स्तर आज भी विद्यमान है।
    • नमामि गंगे कार्यक्रम (NGP): 2014 में शुरू किए गए इस कार्यक्रम ने गंगा नदी की स्वच्छता के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाया। यह सीवेज उपचार पर केंद्रित है, लेकिन अवैध अतिक्रमण, औद्योगिक प्रदूषण और अपशिष्ट डंपिंग जैसे मुद्दे अभी भी बने हुए हैं।
      • दिसंबर 2024 तक एनजीपी पर केवल ₹19,271 करोड़ खर्च किए गए थे, जो मूल लक्ष्य के आधे से भी कम है। अभी भी अवैध अतिक्रमण और औद्योगिक कचरे की समस्याएँ विद्यमान हैं।

आगे की राह 

  • सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता: अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं के बारे में सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता को बढ़ावा देने से व्यवहार में परिवर्तन को बढ़ावा मिल सकता है तथा  प्रदूषण स्तर कम हो सकता है।
    • उदाहरण: हरिद्वार के विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों ने गंगा नदी की सफाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • तकनीकी उन्नति: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाना, वास्तविक समय की निगरानी तथा प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के लिए प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों में व्यापक सुधार कर सकता है।
    • उदाहरण: जर्मनी अपनी राइन नदी के प्रदूषण ट्रैकिंग के लिए AI का उपयोग करता है।
  • गैर-अनुपालन के लिए कठोर दंड: नदियों में अनुपचारित अपशिष्ट को छोड़ने वाले उद्योगों के लिए कठोर नियम और दंड प्रक्रियाएँ लागू करना औद्योगिक प्रदूषण को कम करने के लिए आवश्यक है।
    • उदाहरण: स्वीडन और नीदरलैंड ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ लागू करते हैं, जहाँ प्रदूषण के लिए उत्तरदायी उद्योग प्रदूषण प्रबंधन और निवारण के लिए वित्तीय रूप से उत्तरदायी होते हैं।
  • रेत खनन और अतिक्रमण नियंत्रण: रेत खनन और अवैध अतिक्रमणों की निगरानी तथा  विनियमन के लिए स्थानीय समितियों की स्थापना नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखने एवं  आगे प्रदूषण को रोकने में मदद कर सकती है।
    • उदाहरण: केरल ने स्थानीय निगरानी समितियाँ स्थापित की हैं, जो रेत खनन गतिविधियों के विनियमन को सुनिश्चित करती है तथा नदी के किनारों पर अतिक्रमण को रोकती है।
  • प्रभावी निधि उपयोग: यह सुनिश्चित करना कि नदी पुनरुद्धार के लिए आवंटित निधियों का प्रभावी और पारदर्शी तरीके से उपयोग किया जाए, प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रमों की सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण: भारत में नमामि गंगे कार्यक्रम (NGP) को वित्त उपयोग में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, दिसंबर 2024 तक केवल ₹19,271 करोड़ खर्च किए गए हैं, जो मूल लक्ष्य से काफी कम है। वित्तीय प्रबंधन और निगरानी को मज़बूत करने से निर्धारित समय-सीमा के भीतर वांछित परिणाम प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

नदियाँ केवल जल स्रोत नहीं हैं, वे हमारी सभ्यता की जीवन रेखाएँ हैं। निरंतर प्रयासों के बावजूद, प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, जिसके लिए कठोर कार्रवाई और बेहतर प्रवर्तन की आवश्यकता है। इस समस्या से निपटने के लिए बेहतर कानूनों, जागरूकता विस्तार और उन्नत प्रौद्योगिकी के उपयोग का संयोजन भी  वांक्षनीय है। 

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

विभिन्न कानूनी ढाँचों और पर्यावरण संबंधी कानूनों के बावजूद, भारत में नदी प्रदूषण एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। मौजूदा कानूनों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए तथा उनके प्रवर्तन में सुधार हेतु  आवश्यक उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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