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बलात्कार पीड़ितों के कल्याण हेतु राज्य की भूमिका: कानूनों की प्रासंगिकता

Lokesh Pal February 12, 2025 05:00 52 0

संदर्भ:

हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यौन हिंसा के एक अपराधी को शादी की शर्त के आधार पर जमानत दी।

  • बलात्कार के आरोपी के लिए जमानत की शर्तों पर हालिया अदालती फैसले: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अतुल गौतम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025) पर अपने फैसले में, अपने अंतर-धार्मिक लिव-इन पार्टनर के साथ बलात्कार के आरोपी एक व्यक्ति को इस शर्त पर जमानत दी कि वह विशेष विवाह अधिनियम के तहत पीड़िता से शादी करेगा और 5 लाख रुपये जमा करेगा।
    • 2024 का निर्णय: इस निर्णय में अभिषेक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2024) के मामले में भी इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाया गया था। जहाँ उच्च न्यायालय ने बलात्कार के आरोपी को इस शर्त पर ज़मानत दी कि वह पीड़िता से विवाह करेगा और उसकी और उसके नवजात बच्चे की देखभाल करेगा। 
    • ऐतिहासिक मानक मिसाल: उपर्युक्त निर्णय रमाशंकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022) में स्थापित की गई ऐतिहासिक मिसाल से प्रभावित थे, जहाँ विवाह की शर्तों के साथ इसी तरह ज़मानत दी गई थी।

जमानत क्या है? 

जमानत न्यायालय द्वारा अभियुक्त को दी गई एक अस्थायी रिहाई है, यह मानते हुए कि ऐसे अभियुक्त किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। हालांकि ऐसी परिस्थिति में न्यायालय उन पर कुछ शर्तें लगा सकता है, जैसे पासपोर्ट जमा करना, पीड़ित से दूरी बनाए रखना या जांच में सहयोग करना।

मुख्य संवैधानिक और कानूनी चिंताएँ

  • बलात्कार पीड़िता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन:
    • अनुच्छेद 21: सम्मान, स्वायत्तता और जबरदस्ती से सुरक्षा का अधिकार।
    • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समान सुरक्षा का अधिकार।
    • अनुच्छेद 15: लिंग आधारित भेदभाव से सुरक्षा।
  • सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के साथ विरोधाभास: अपर्णा भट बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2021) के मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मामलों में जमानत की शर्तों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। इन दिशा-निर्देशों में निम्न प्रावधानओं पर जोर दिया गया: 
    • पीड़िता को द्वितीयक आघात से बचाना : न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जमानत की शर्तें आरोपी और पीड़िता के बीच किसी भी तरह के संपर्क को रोकती हैं ताकि द्वितीयक आघात से बचा जा सके। जैसा कि ऊपर उल्लेखित मामलों में देखा गया है, आरोपी को पीड़िता से विवाह करने के लिए बाध्य करने की प्रथा इस सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
    • पितृसत्तात्मक व रूढ़िवादी दृष्टिकोण को मजबूत न करना: इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि जमानत की शर्तों को महिलाओं के प्रति लैंगिक रूढ़िवादिता या पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को मजबूत नहीं करना चाहिए। ये दिशा-निर्देश सुनिश्चित करते हैं कि कानूनी प्रक्रिया लिंग और महिलाओं की स्वायत्तता पर पुराने विचारों को कायम न रखे।

उत्तरजीवी कल्याण के संबंध में चिंताएं: 

  • शारीरिक स्वायत्तता: इस तरह का दृष्टिकोण हानिकारक मान्यताओं को मजबूत कर सकता है कि विवाह बलात्कार के लिए एक उपाय के रूप में काम कर सकता है, जो गलत तरीके से उत्तरजीवी की कथित “पवित्रता” या सम्मान को बहाल करने का प्रयास करता है। इस तरह के तर्क उत्तरजीवी की स्वायत्तता को कमजोर करते हैं और जबरदस्ती, असमान वैवाहिक संबंधों को जन्म दे सकते हैं।
  • जबरदस्ती वैवाहिक संबंध बनाने पर बल : यह अभियुक्त के लिए उत्तरजीवी को विवाह के लिए सहमत करने के लिए हेरफेर करने के लिए एक विकृत प्रोत्साहन भी बनाता है, इस प्रकार सुलह की आड़ में दुर्व्यवहार की संभावना को बढ़ाता है।
  • दुरुपयोग और नियंत्रण को वैध बनाना: यह गतिशीलता, जहां उत्तरजीवी को अभियुक्त के साथ एक आश्रित संबंध में मजबूर किया जाता है, न्याय के लिए उत्तरजीवी की खोज को जटिल करते हुए आगे के दुर्व्यवहार को वैध बनाने का जोखिम उठाता है।
  • उत्तरजीवी की गवाही को प्रभावित करना: जमानत की शर्त के रूप में विवाह को लागू करना उत्तरजीवी के अभियुक्त के साथ संबंध को बदल देता है और उत्तरजीवी की गवाही को प्रभावित कर सकता है।
    • वैवाहिक संबंध में जबरदस्ती या हेरफेर की संभावना सीधे तौर पर उत्तरजीवी की अदालत में स्वतंत्र रूप से और सच्चाई से गवाही देने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है।

बलात्कार पीड़ितों के कल्याण को सुनिश्चित करने में राज्य की भूमिका: 

 बलात्कार पीड़ितों और उनके बच्चों के कल्याण को सुनिश्चित करने में राज्य निम्न प्रकार से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • कल्याणकारी उपाय: किशोरों की निजता के अधिकार (2024) के संबंध में न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य को ऐसे कमजोर व पीड़ित लोगों के लिए आश्रय, भोजन, शिक्षा और परामर्श जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करनी चाहिए।
    • अपराधी पर निर्भरता: क्योंकि अक्सर देखा गया है कि व्यापक सहायता प्रणाली की कमी के कारण पीड़ितों के पास बुनियादी ज़रूरतों के लिए अपने अपराधियों पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
    • प्रभाव: यह स्थिति न केवल शोषण के चक्र को जारी रखती है, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पीड़ितों के सम्मान के साथ जीने के अधिकार का भी उल्लंघन करती है।
  • राज्य द्वारा उत्तरदायित्वों का स्थानांतरण करना: पर्याप्त सहायता प्रदान करने में विफल रहने पर, राज्य अपनी जिम्मेदारी न्यायपालिका पर डाल देता है, जिसके परिणामस्वरूप न्यायालय द्वारा ऐसी शर्तें थोपी जाती हैं जो संवैधानिक सिद्धांतों के साथ टकराव पैदा कर सकती हैं।
    • ऐसे निर्णय अनजाने में ही पीड़िता को अभियुक्त के साथ आश्रित रिश्ते में रहने के लिए मजबूर कर सकते हैं, जिससे राज्य की उपेक्षा और भी गहरी हो जाती है।

नैतिक और कानूनी निहितार्थ

  • कानून के दंडात्मक और निवारक नियमन को कमजोर करना : अभियुक्त जमानत और सजा में नरमी पाने के लिए पीड़ितों को शादी के लिए उकसा सकता है। यह कानून के दंडात्मक और निवारक कार्य को कमजोर करता है। 
  • जमानत की शर्तों में न्यायिक अतिक्रमण: हालांकि न्यायालयों को सामाजिक रूप से निर्धारित समाधान लागू करने से बचना चाहिए जो पीड़ितों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। जमानत कानूनी योग्यता पर आधारित होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत निपटान तंत्र पर।

आगे की राह 

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का सख्ती से पालन: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जमानत की शर्तें उत्तरजीवियों की स्वायत्तता को बनाए रखें और कानूनी मानकों के अनुरूप हों।
  • उत्तरजीवी संरक्षण के लिए मजबूत कानूनी प्रावधान: अभियुक्त पर लंबे समय तक निर्भरता को कम करने के लिए फास्ट-ट्रैक परीक्षण जैसे अद्यतन उपायों को अपनाना।
    • वित्तीय सहायता, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक पुनर्मिलन सहित व्यापक पुनर्वास नीतियों को लागू करना।
  • न्यायिक प्रशिक्षण और जागरूकता: न्यायाधीशों को लैंगिक न्याय और संवैधानिक नैतिकता के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए समय -समय पर प्रशिक्षण देना व जागरूकता बढ़ाना।
    • सुनिश्चित करें कि न्याय सुविधा-आधारित होने के बजाय उत्तरजीवी-केंद्रित हो।

निष्कर्ष: 

विवाह को जमानत की शर्त के रूप में, लागू करने की प्रथा का तत्काल पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। न्याय को सामाजिक मानदंडों द्वारा आकार नहीं दिया जाना चाहिए जो उत्तरजीवी की गरिमा, स्वायत्तता और कल्याण को कमजोर करते हैं। कानूनी उपायों को उत्तरजीवी के अधिकारों को प्राथमिकता देनी चाहिए और जबरदस्ती या असमान संबंधों के माध्यम से आघात को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न: हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अतुल गौतम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025) मामले में, एक ऐसे व्यक्ति को जमानत दे दी, जिस पर विवाह के वादे की शर्त पर अपने लिव-इन पार्टनर से बलात्कार करने का आरोप था। इस निर्णय के संदर्भ में विद्यमान निहितार्थों का विश्लेषण करें और जाँच करें कि इस तरह के न्यायिक फैसले लैंगिक रूढ़िवादिता को कैसे मजबूत करते हैं और महिलाओं की स्वायत्तता को कैसे प्रभावित करते हैं।

(15 अंक, 250 शब्द)

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