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भारत में RTE अधिनियम और समावेशी शिक्षा प्रणाली

Lokesh Pal June 09, 2025 05:00 119 0

संदर्भ:

UDISE+ की 2023-24 की रिपोर्ट के आँकड़ों से पता चलता है, कि निजी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि हुई है, जो कुछ राज्यों में सरकारी स्कूलों से आगे निकल गया है।

निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम

  • मूल अधिकार: निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 द्वारा संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार का दर्जा दिया गया।
  • EWS के लिए आरक्षण: अधिनियम की धारा 12(1)(C) के तहत, प्रत्येक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल (अल्पसंख्यक संस्थानों को छोड़कर) को अपने प्रवेश स्तर की 25% सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के बच्चों के लिए आरक्षित करनी होंगी।
  • प्रतिपूर्ति मॉडल: सरकार इस प्रावधान के तहत भर्ती किए गए प्रत्येक EWS बच्चे के लिए निजी स्कूलों को प्रतिपूर्ति करती है, जो संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित पब्लिक स्कूलों में प्रति-विद्यार्थी व्यय पर आधारित होती है।

RTE अधिनियम के उद्देश्य

  • प्राथमिक उद्देश्य: RTE के 25% आरक्षण खंड का प्राथमिक लक्ष्य वंचित वर्ग के बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण निजी शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना और विविध आर्थिक पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों की कक्षाओं के माध्यम से सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देकर सामाजिक बाधाओं को तोड़ना है।
  • अमीर-गरीब के बीच के अंतराल को कम करना: इस नीति को एक समावेशी शिक्षा प्रणाली बनाने के लिए तैयार किया गया है, जिसका उद्देश्य अमीर और गरीब परिवारों के बच्चों के बीच शैक्षिक अंतराल को कम करना है, तथा इस प्रकार अधिक सामाजिक समानता में योगदान करना है
  • पहुँच विस्तार: RTE कोटा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है, कि वंचित वर्ग के बच्चों को निजी स्कूलों में उपलब्ध बेहतर शैक्षिक अवसंरचना और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुँच प्राप्त हो।
  • संस्थागत अंतराल को कम करना: यह सरकारी स्कूलों और निजी संस्थानों के बीच गुणवत्ता के अंतराल को कम करने पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे अधिक न्यायसंगत शिक्षा वातावरण बनाने में मदद मिलती है
  • समावेशी कक्षाएँ: समावेशी कक्षाओं को अनिवार्य बनाकर, यह प्रणाली विविध आर्थिक पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों को एक साथ लाती है, तथा समावेशी संस्कृति को बढ़ावा देती है
  • विभाजन और भेदभाव में कमी: इसका लक्ष्य शैक्षिक परिवेश में जाति, धर्म और आर्थिक विभाजन को कम करना है तथा स्कूलों को सामाजिक रूप से सशक्त स्थलों के रूप में विकसित करना है

RTE अधिनियम से संबंधित मुद्दे

  • अपारदर्शी विद्यार्थी चयन प्रक्रिया: प्रवेश मानदंड और चयन पद्धति में पारदर्शिता का अभाव। अभिभावक और समुदाय प्रवेश के आधार को समझने में असमर्थ हैं।
  • प्रतिपूर्ति में देरी: निजी स्कूलों को सरकार द्वारा किए जाने वाले वित्तीय भुगतान में प्रायः देरी होती है। महाराष्ट्र में प्रतिवर्ष वित्तीय भुगतान में देरी के कारण स्कूलों पर वित्तीय दबाव बढ़ रहा है।
  • नौकरशाही उत्पीड़न: शिक्षा अधिकारी स्कूलों पर अत्यधिक कागजी कार्रवाई और अनावश्यक निरीक्षण का बोझ डालते हैं।

कार्यान्वयन विफलता

  • राजनीतिक रूप से प्रेरित: RTE कोटा के कार्यान्वयन में विफलता संयोगवश नहीं है, बल्कि जमीनी स्तर पर जानबूझकर की गई राजनीतिक गतिशीलता से उपजी है।
  • हितधारक संघर्ष: निजी स्कूलों, नौकरशाहों और राजनीतिक व्यक्तियों सहित कई हितधारकों के बीच परस्पर विरोधी हित वास्तविक प्रवर्तन के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं।
  • पदानुक्रम का संरक्षण: राजनीतिक सत्ता संरचनाएँ सक्रिय रूप से मौजूदा शैक्षिक पदानुक्रमों की रक्षा करती हैं तथा स्कूली शिक्षा के माध्यम से सार्थक सामाजिक एकीकरण को रोकती हैं।
  • स्वहित: प्रत्येक हितधारक समूह नीति के समावेशी लक्ष्यों के साथ संरेखित होने की बजाय, आत्म-संरक्षण और निजी लाभ के आधार पर कार्य करते हैं।

शिक्षकों द्वारा RTE कोटा कार्यान्वयन का विरोध करने के कारण

  • संस्थागत जोखिम: सरकारी स्कूल के शिक्षकों के बीच मुख्य चिंता यह है, कि RTE कोटे के तहत निजी स्कूलों में जाने वाले गरीब बच्चों की वजह से सरकारी स्कूलों में नामांकन कम हो जाएगा। इससे स्कूल बंद हो सकते हैं, कर्मचारियों का तबादला हो सकता है या फिर शिक्षण पदों को खत्म किया जा सकता है
  • राजनीतिक शक्ति: महाराष्ट्र जैसे राज्यों में शिक्षकों के पास विधान परिषद में अपना निर्वाचन क्षेत्र है, जो उन्हें सीधे राजनीतिक लाभ प्रदान करता है। यह अनूठा प्रतिनिधित्व शिक्षा नीतियों पर उनके प्रभाव को बढ़ाता है।
  • संगठित प्रतिरोध: शिक्षक संघ अपने राजनीतिक संबंधों और सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति का उपयोग RTE कोटे के कार्यान्वयन का व्यवस्थित रूप से विरोध करने के लिए करते हैं।
    • ये शिक्षक संघ नीति की सफलता में बाधा डालने वाली प्राथमिक अदृश्य शक्ति के रूप में उभरे हैं।

निजी स्कूलों द्वारा RTE अधिनियम के विरोध के कारण

  • वित्तीय बोझ: वास्तविक शिक्षा लागत- ₹2000/माह, सरकारी प्रतिपूर्ति- ₹800/माह। कोटा विद्यार्थियों के कारण स्कूलों को व्यापक वित्तीय हानि उठानी पड़ती है।
  • कुलीन अभिभावकों का दबाव: संपन्न अभिभावक “वर्ग आधारित भेदभाव” प्रदर्शित करते हैं और आर्थिक रूप से कमज़ोर विद्यार्थियों के साथ घुलने-मिलने से कतराते हैं। एनेट लारेउ द्वारा किए गए शोध में इसे “नैतिक सीमा बनाए रखने” के व्यवहार के रूप में पहचाना गया है।
  • बचाव की रणनीतियाँ: बोझिल प्रवेश प्रक्रिया बनाना और यूनिफॉर्म सहित अन्य गतिविधियों के लिए शुल्क लगाना। आरक्षण आवश्यकताओं से बचने के लिए अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में पंजीकरण करना।

संभावित परिणाम

  • वर्ग विभाजन: अमीर बच्चे अपने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के साथियों के साथ न्यूनतम बातचीत के साथ, कुलीन निजी स्कूलों में जाना जारी रखते हैं। मिश्रित कक्षाओं का आदर्श व्यवहार में व्यापक रूप से विफल रहा है।
  • सीमित पहुँच: अधिकांश वंचित विद्यार्थी कम शुल्क या बजट वाले स्कूलों में नामांकित हैं।

आगे की राह

  • मध्य प्रदेश का उदाहरण
    • डिजिटल परिवर्तन: पारदर्शी प्रसंस्करण के लिए व्यापक ऑनलाइन प्रतिपूर्ति प्रणाली लागू की गई।
    • विलंब में कमी: भुगतान प्रक्रियाओं में नौकरशाही विलंब और मानवीय हस्तक्षेप में कमी।
    • प्राप्त परिणाम: अन्य राज्यों की तुलना में आरक्षित सीटों पर उल्लेखनीय रूप से उच्च नामांकन, कुछ स्कूलों ने 80% तक कोटा सीट का उपयोग किया।
    • मुख्य परिणाम: जहाँ प्रशासनिक प्रणालियाँ सुव्यवस्थित होती हैं, वहाँ नीति कार्यान्वयन बेहतर परिणाम प्रदर्शित करता है।
  • वित्तीय प्रोत्साहन मॉडल: कम परिचालन लागत बजट स्कूलों के लिए सरकारी प्रतिपूर्ति को लाभदायक बनाती है। समय पर भुगतान कोटा सीट आवंटन के लिए सकारात्मक व्यावसायिक मामला बनाता है।
  • मध्य प्रदेश केस स्टडी: राज्य ने 25% से अधिक कोटा सीटों के लिए प्रतिपूर्ति की अनुमति दी, जिससे अतिरिक्त प्रोत्साहन मिला। संबंधित स्कूलों ने कोटा छात्रों के लिए 80% तक सीटें आरक्षित की।
  • शिक्षक एकीकरण: सरकारी शिक्षकों को शिक्षित करें, कि RTE कोटा अवसर का प्रतिनिधित्व करता है, न कि रोज़गार के लिए खतरा उत्पन्न करता है। समावेशी शिक्षा का समर्थन करने वाले शिक्षकों को पुरस्कृत करने वाली प्रोत्साहन प्रणाली बनाएँ।
  • निजी स्कूल सहयोग: वास्तविक शिक्षा लागत को दर्शाते हुए यथार्थवादी प्रतिपूर्ति दरें स्थापित करें। कठोर निगरानी के माध्यम से अल्पसंख्यक संस्थान छूट के दुरुपयोग को रोकें।
  • सामाजिक एकीकरण: अभिभावक परामर्श कार्यक्रमों के माध्यम से मिश्रित कक्षा संस्कृति को बढ़ावा देना।
  • डिजिटल पारदर्शिता: सभी राज्यों में मध्य प्रदेश मॉडल के समान पारदर्शी डिजिटल प्रणाली लागू करना। देरी और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए प्रतिपूर्ति प्रक्रियाओं को स्वचालित करना।
  • परिणाम निगरानी: बच्चे के शैक्षिक परिणामों की व्यवस्थित रूप से निगरानी करें। नीति कार्यान्वयन में निरंतर सुधार के लिए फीडबैक तंत्र बनाएँ।

निष्कर्ष

एक नीति, जो अपने प्रमुख अभिकर्ताओं को शामिल करने में विफल रहती है, उसके सफल होने की संभावना नहीं है, चाहे वह कितनी भी बेहतर हो। यदि समावेशिता लक्ष्य है, तो भारत की शिक्षा नीति को स्कूली शिक्षा की राजनीतिक अर्थव्यवस्था के साथ गंभीरता से जुड़ना चाहिए। हितधारकों को समाधान का हिस्सा होना चाहिए, बाधा नहीं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

RTE अधिनियम, 2009 के तहत निजी स्कूलों में कोटा संबंधी प्रभावों पर चर्चा कीजिए। भारतीय शिक्षा प्रणाली में समानता में सुधार के लिए कौन-से उपाय किए जा सकते हैं?

(10 अंक, 150 शब्द)

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