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सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा: एक गंभीर सामाजिक मुद्दा

Lokesh Pal March 28, 2025 05:30 32 0

संदर्भ:

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में एक सार्वजनिक बस में एक महिला का यौन उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति की सजा को बरकरार रखते हुए एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया है।

सार्वजनिक स्थलों पर महिला सुरक्षा का मुद्दा

  • उत्पीड़न की बढ़ती घटनाएँ: कठोर कानूनों और नीतियों के बावजूद, महिलाएँ सार्वजनिक स्थानों, मुख्य तौर पर सार्वजनिक परिवहनों में असुरक्षित हैं।
    • 23 वर्षीय महिला द्वारा हमलावर से बचने के लिए ट्रेन से कूदने के बाद गंभीर रूप से घायल होने और ट्रेन से धक्का दिए जाने के बाद गर्भवती महिला का गर्भपात होने जैसी घटनाएँ, गंभीर वास्तविकता को दर्शाती हैं।
  • नियमित यातना: अनारक्षित ट्रेन के डिब्बों और सरकारी बसों में महिलाओं के लिए उत्पीड़न एक नियमित यातना बनी हुई है।
  • सामाजिक विरोधाभास: इस असुरक्षित वातावरण के लिए जवाबदेही एक ऐसे समाज में एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न बना हुआ है, जो महिला सशक्तीकरण की वकालत करने का दावा करता है।
  • असुरक्षित सार्वजनिक स्थल: शिल्पा फड़के, समीरा खान और शिल्पा रानाडे ने व्हाई लोइटर? (Why Loiter?) नामक अपने अध्ययन में तर्क दिया है, कि जबकि समाज कहता है कि वह महिलाओं की सुरक्षा करना चाहता है, वह सुरक्षित सार्वजनिक स्थानों को बनाने में विफल रहता है।
  • कारावास: सार्वजनिक सुरक्षा में सुधार करने की बजाय, समाज की कार्रवाइयाँ प्रायः महिलाओं को घरों, स्कूलों या दूसरों की देखरेख में सीमित कर देती हैं, जिससे उनकी स्वतंत्रता और गतिशीलता सीमित हो जाती है।
  • स्वतंत्रता में बाधाएँ: महिलाओं को प्रायः दिन के उस समय पर विचार करने के लिए मज़बूर किया जाता है जब वे यात्रा करती हैं, कई महिलाएँ अंधेरे के बाद या सूर्योदय से पहले बाहर निकलने से कतराती हैं।

न्यायालय का निर्णय और अन्य उदाहरण

  • दिल्ली उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण: न्यायालय ने सार्वजनिक स्थानों पर इस उत्पीड़न को “गंभीर रूप से चिंताजनक वास्तविकता” कहा, जो दशकों की स्वतंत्रता और कठोर कानूनों के बावजूद बनी हुई है।
    • इस तरह के निर्णय समाज को यह संकेत देते हैं, कि कानूनी व्यवस्था महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, जो बदलाव की आवश्यकता के बारे में एक मज़बूत संदेश देता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस निर्णय पर रोक लगा दी, जिसमें नाबालिग को अनुचित तरीके से छूने को बलात्कार के प्रयास के रूप में नहीं माना गया था। 
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय एक स्पष्ट और आवश्यक संदेश देता है, कि कानून की “पूर्णतः असंवेदनशील और अमानवीय” व्याख्याएँ अस्वीकार्य हैं, तथा यह पुष्टि करता है कि कानून को महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा की रक्षा करनी चाहिए।

आगे की राह

  • प्रशासनिक उत्तरदायित्व: महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल न्यायपालिका की नहीं है।
    • प्रशासनिक निकायों को सक्रिय कदम उठाने चाहिए, जिसमें सड़कों पर बेहतर प्रकाश व्यवस्था  सुनिश्चित करना, उत्पीड़न के मामलों को संभालने के लिए प्रशिक्षित पुलिस अधिकारी और कानून प्रवर्तन में रिक्त पदों को तत्काल रूप से भरना शामिल है।
  • समन्वित दृष्टिकोण: सुरक्षा के लिए समन्वित, सर्वव्यापी दृष्टिकोण के बिना, महिलाएँ भय में जीती रहेंगी और महिलाओं की प्रगति के संबंध में वार्ताएँ अपूर्ण रहेगी।

निष्कर्ष

न्यायपालिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण है, लेकिन सुरक्षित सार्वजनिक स्थल बनाने के लिए सामाजिक और प्रशासनिक सुधार भी उतने ही आवश्यक हैं। जब सुरक्षा की गारंटी होगी तभी समाज में महिलाओं की प्रगति सही मायने में सार्थक हो सकेगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

भारत में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में कानूनी और प्रशासनिक ढाँचे की भूमिका का परीक्षण कीजिए। महिलाओं के लिए उत्पीड़न-मुक्त वातावरण बनाने के लिए कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

(15 अंक, 250 शब्द)

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