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संथाल विद्रोह: ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष

Lokesh Pal July 01, 2024 05:15 45 0

संदर्भ:

1855 के दौरान, संथाल विद्रोह भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक बड़ा विद्रोह था। सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में, उनके भाई-बहनों के साथ, यह विद्रोह वर्तमान झारखंड के दामिन-ए-कोह क्षेत्र में हुआ था। यह औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ आदिवासी प्रतिरोध के इतिहास में एक महत्वपूर्ण विद्रोह था। जिसे संथाल हूल के रुप में भी जाना जाता है जहाँ हूल का अर्थ क्रांति या विद्रोह है। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: संथाल विद्रोह, दामिन-ए-कोह क्षेत्र, सिदो और कान्हू मुर्मू आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: संथाल विद्रोह को जन्म देने वाले कारक, औपनिवेशिक नीतियों पर संथाल विद्रोह का प्रभाव आदि।

संथाल विद्रोह (1855) की पृष्ठभूमि:

  •     दामिन-ए-कोह का निर्माण (1832): अंग्रेजों ने संथालों के लिए 1,366 वर्ग मील का क्षेत्र ‘दामिन-ए-कोह’ बनाया।
  •     संथालों को निमंत्रण: संथालों को इस नव निर्मित क्षेत्र में जंगलों को साफ करने और भूमि पर खेती करने के लिए आमंत्रित किया गया।
  •     ब्रिटिश उद्देश्य: अंग्रेजों का उद्देश्य संथाल श्रम से राजस्व एकत्र करना था, इसे आर्थिक लाभ के अवसर के रूप में देखना था।

संथालों का शोषण:

  • भूमि अधिग्रहण : जमींदारों ने संथालों की भूमि पर दावा करने के लिए फर्जी दस्तावेज बनाए, जिससे उन्हें उनकी मूल संपत्ति से ही वंचित कर दिया गया।
  • अत्यधिक ब्याज दरें: साहूकारों ने संथालों पर 500% तक की ब्याज दरें आरोपित की, जिससे संथाल कृषक समूह भारी ऋण जाल में फंस गए।
  • भ्रष्ट अधिकारी: भ्रष्ट ब्रिटिश अधिकारियों ने रिश्वत वसूली प्रारंभ की और संथालों की शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया, जिससे उनके पास कोई सहारा नहीं बचा।

संथाल विद्रोह के प्रमुख नेतृत्वकर्ता :

  • सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू: भोगनाडीह गांव वर्तमान झारखंड के साहिबगंज जिले में स्थित है यहां के मुख्य नेता सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू जिन्होंने विद्रोह का नेतृत्व किया।
  • चांद और भैरव मुर्मू: सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू के भाई जो विद्रोह में शामिल हुए और जिन्होंने विद्रोह का समर्थन किया।
  • फूलो और झानो: सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू की बहनें जिन्होंने विद्रोह के प्रयास को सफल बनाने में, महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान किया।

संथाल विद्रोह की चिंगारी:

  • दिव्य दृष्टि: सिदो को संथाल देवता ठाकुर बोंगा से एक दर्शन मिला, जिसने विद्रोह को प्रेरित किया।
  • दिव्य संदेश: सिदो को संथाल देवता ठाकुर बोंगा से प्राप्त संदेश था: “तुम मेरे पुत्र हो जाओ, अपने लोगों को आज़ाद करो।”
  • विद्रोह या क्रांति का निर्णय: संथाल देवता ठाकुर बोंगा से प्राप्त इस दर्शन ने संथालों द्वारा सामना किए जा रहे उत्पीड़न के खिलाफ़ विद्रोह या क्रांति करने का निर्णय लिया।

संथाल विद्रोह की तैयारी:

  • समर्थन जुटाना:  विद्रोह के प्रमुख नेतृत्वकर्ता गांव-गांव जाकर इस मुद्दे के लिए समर्थन जुटाने लगे।
  • हथियार बनाना: हथियार साल के पेड़ की शाखाओं और बांस से बनाए जाते थे, जो संसाधन संपन्नता एवं उच्च कौशल को दर्शाता है।
  • भोगनाडीह में सभा: विद्रोह के प्रमुख नेतृत्वकर्ताओं द्वारा भोगनाडीह वर्तमान झारखंड के साहिबगंज जिले में, 10,000 संथालों की एक विशाल सभा को सम्बोधित किया गया।

संथाल विद्रोह की शुरुआत :

  •     स्वतंत्रता की घोषणा: विद्रोहियों ने घोषणा की: “हम अब ब्रिटिश शासन को मान्यता नहीं देंगे”
  •     बढ़ती सेना: कुछ ही समय में, विद्रोहियों की सेना में संथालों की संख्या 60,000 हो गई, जिससे व्यापक समर्थन दिखा।
  •     गुरिल्ला रणनीति: विद्रोहियों ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध की रणनीति का इस्तेमाल किया।

संथाल विद्रोह का दमन:

कूटनीतिक रुप से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन द्वारा संथाल विद्रोह का दमन कर दिया गया जिसके परिणाम इस प्रकार रहे: 

  • मारे गए संथाल विद्रोहियों की संख्या  : 15,000 से अधिक।
  • नष्ट किए गए संथाल गांवों की संख्या : 10,000।
  • विस्थापित संथालों की संख्या : हजारों लोग जंगलों में भाग गए।
  • हताहत संथाल विद्रोहियों की संख्या: कई लोग भूख और बीमारी से पीड़ित हुए और कई लोग मर गए । 

संथाल विद्रोह के प्रमुख नेतृत्वकर्ताओं को सजा एवं दंड : 

  • सिदो मुर्मू: 9 अगस्त, 1855 को भागलपुर जेल में फांसी दी गई। 
  • कान्हू मुर्मू: फरवरी 1856 में कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दी गई। 
  • चांद और भैरव मुर्मू: दोनों को गिरफ्तार किया गया और दुखद अंत हुआ।

संथाल विद्रोह के तात्कालिक प्रभाव:

  • प्रशासनिक परिवर्तन: अलग संथाल परगना प्रशासनिक इकाई का गठन।
  • शासन व्यवस्था: संथाल क्षेत्रों में गैर-विनियमन प्रणाली की शुरूआत।
  • भूमि सुधार: 1856 में भूमि राजस्व सुधार और नया सर्वेक्षण किया गया।
  • न्यायिक सुधार: संथाल शिकायतों को दूर करने के लिए 1856 में संथाल परगना सिविल नियमों का कार्यान्वयन किया गया।
  • वित्तीय विनियमन: शोषण को रोकने के लिए साहूकारी प्रथाओं पर नए विनियमन लगाये गये।
  • वन अधिकार: 1865 के भारतीय वन अधिनियम में वन अधिकारों को मान्यता प्रदान की गई।

संथाल विद्रोह के बाद प्रमुख कानून:

  • संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (1876) : संथाल भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (1876) बनाया गया।
  • छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908): छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया, जिससे जनजातीय भूमि की सुरक्षा और अधिक बढ़ गई।

नोट: उपर्युक्त दोनों अधिनियम वर्तमान में भी वैध बने हुए हैं और जनजातीय भूमि अधिकारों की रक्षा हेतु प्रतिबद्ध हैं।

संथाल विद्रोह के दीर्घकालिक प्रभाव:

  •     आदिवासी अधिकारों के प्रति जागरूकता: विद्रोह के कारण पूरे भारत में आदिवासी अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी।
  •     भावी आंदोलनों के लिए मार्गदर्शक: इसने शोषण के खिलाफ बाद के आदिवासी आंदोलनों के लिए एक मार्गदर्शक का काम किया।
  •     कानूनी विकास: विद्रोह ने आदिवासी हितों की रक्षा के लिए भूमि अलगाव कानूनों के विकास में योगदान दिया।

निष्कर्ष: 

सिदो  मुर्मू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में संथाल विद्रोह ने महत्वपूर्ण कानूनी सुधारों को उत्प्रेरित किया और आदिवासी अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाई, जिससे शोषण के खिलाफ भविष्य के आंदोलनों को प्रेरणा मिली।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न: संथाल विद्रोह के लिए जिम्मेदार सामाजिक-आर्थिक कारकों और औपनिवेशिक नीतियों पर इसके प्रभावों का विश्लेषण करें। यह विद्रोह अन्य समकालीन आदिवासी आंदोलनों से किस प्रकार भिन्न था? 

(15 अंक, 250 शब्द)

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