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नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा-6A और उसकी संवैधानिकता

Lokesh Pal October 22, 2024 05:45 86 0

संदर्भ : हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा-6A को बरकरार रखा, जिसका उद्देश्य असम समझौते पर आधारित नागरिकता को विनियमित करना तथा असम में अवैध प्रवासियों की पहचान करना है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

  • 1971 में असम को बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों का सामना करना पड़ा, जो मुख्य रूप से बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से उपजा था। यह प्रवास स्थानीय जनसंख्या के लिए एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय था।
  • 1979 में ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ (AASU) ने इन प्रवासियों की पहचान और निर्वासन की मांग करते हुए एक आंदोलन का नेतृत्व किया।
    • AASU ने दावा किया कि इन प्रवासियों की उपस्थिति स्वदेशी असमिया लोगों की संस्कृति, भाषा और जनसांख्यिकीय अखंडता को खतरा पहुँचाती है।
  • छह वर्ष के आंदोलन (1979-1985) के बाद, केंद्र सरकार, असम सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच त्रिपक्षीय असम समझौते (1985) पर हस्ताक्षर किए गए।

असम समझौते के प्रमुख प्रावधान

  • समझौते के खंड-5 में “प्रवासियों के मुद्दे” को संबोधित किया गया | 
  • आधार तिथि : 1 जनवरी, 1966 को मतदाता सूची से प्रवासियों का पता लगाने और उन्हें हटाने के लिए निर्धारित तिथि के रूप में स्थापित किया गया था। 
  • नागरिकता मानदंड :
    • 1 जनवरी, 1966 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता दी गई। 
    • 1 जनवरी, 1966 और 24 मार्च, 1971 के बीच आने वालों को नागरिकता तो दी गई, लेकिन दस वर्ष तक उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया। 
    • 24 मार्च, 1971 के बाद आने वाले प्रवासियों को अवैध अप्रवासी के रूप में वर्गीकृत किया गया, जिनका नागरिकता पर कोई दावा नहीं था।
  • 1985 में असम समझौते को लागू करने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में धारा-6A जोड़ी गई थी। 
    • इस प्रावधान को न्यायालय में विधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। 
  • नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 में नागरिकता अधिनियम, 1955 में एक नया समूह-विशिष्ट प्रावधान, धारा-6B जोड़ा गया।

धारा-6B की आलोचना

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की धारा-6B की नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा-6A के साथ कई तरह से विरोधाभासी होने के कारण आलोचना की जाती है :

  • निर्धारित तिथि : धारा-6B में 31 दिसंबर, 2014 की कट-ऑफ तिथि निर्धारित की गई है, जबकि असम में धारा-6A की कट-ऑफ तिथि 25 मार्च, 1971 है।
  • धार्मिक अपवाद : CAA पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, बौद्ध और जैन प्रवासियों के लिए अपवाद प्रदान करता है, जबकि असम समझौता बांग्लादेश से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों या बहुसंख्यकों के बीच कोई अंतर नहीं करता है।

धारा-6A पर विधिक चर्चा

1. नागरिकता कानून पर संसदीय प्राधिकार

  • याचिकाकर्ता का तर्क : CAA को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि पाकिस्तान से आए प्रवासियों को नागरिकता देने का कानूनी ढाँचा संविधान के अनुच्छेद 6 और अनुच्छेद 7 द्वारा शासित है।
    • उनका तर्क है कि धारा-6A, जो पूर्वी पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए प्रवासियों से संबंधित है, इन प्रावधानों में संशोधन करती है।
    • उनका कहना है कि धारा-6A को जोड़ने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होनी चाहिए थी, क्योंकि यह मौजूदा कानूनी ढाँचे को बदल देती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय : सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 6 और अनुच्छेद 7 का उद्देश्य केवल 26 जनवरी, 1950 को संविधान के लागू होने पर नागरिकता का निर्धारण करना था। 
    • इसके विपरीत धारा-6A उन व्यक्तियों के लिए है जो इन संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं।
  • संसदीय शक्ति :
    • संघ सूची की प्रविष्टि 17 संसद को “नागरिकता, प्राकृतीकरण और प्रवासियों” पर कानून बनाने का अधिकार देती है। 
    • संविधान का अनुच्छेद 11 संसद को नागरिकता के अधिग्रहण और समाप्ति के संबंध में प्रावधान करने का अधिकार देता है, इस क्षेत्र में उसके अधिकार क्षेत्र की पुष्टि करता है।

2. असमिया लोगों के नागरिकता और सांस्कृतिक अधिकार

  • याचिकाकर्ता का तर्क : याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि धारा-6A के तहत बांग्लादेश से आए प्रवासियों को नागरिकता देना असम के मूल निवासियों के अपनी संस्कृति को संरक्षित करने के अधिकारों का उल्लंघन है।
    • वे संविधान के अनुच्छेद 29(1) का हवाला देते हैं, जो नागरिकों को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का मौलिक अधिकार देता है।
    • याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि प्रवासियों को नागरिकता देने से बांग्ला जनसंख्या बढ़ती है, जिससे असमिया समुदाय की सांस्कृतिक पहचान कमज़ोर हो सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय : सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को खारिज़ करते हुए कहा कि असम की जनसांख्यिकी में परिवर्तन से असम के मूल निवासियों के अधिकारों का हनन नहीं होता।
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की मौजूदगी भारत की सांस्कृतिक विविधता को कम करने के बजाय उसे समृद्ध करती है।

3. ‘बाह्य आक्रमण’ के आरोप

  • याचिकाकर्ता का तर्क : याचिकाकर्ताओं का यह भी तर्क है कि धारा=6A अवैध प्रवास की अनुमति देकर ‘बाह्य आक्रमण’ को बढ़ावा देती है, जो उनका तर्क है कि सर्बानंद सोनोवाल बनाम भारत संघ वाद (2005) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विपरीत है।
    • उस मामले में न्यायालय ने ‘अवैध प्रवास’ को ‘बाह्य आक्रमण’ के दायरे में आने के रूप में परिभाषित किया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय : सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि संविधान में आपातकालीन प्रावधानों से संबंधित अनुच्छेद 355 का उल्लंघन करने के लिए किसी कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती।
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा-6A “अनियंत्रित प्रवास” की अनुमति नहीं देती है।
    • इसके बजाय, यह आव्रजन के लिए एक “नियंत्रित और विनियमित” ढाँचा प्रदान करता है, जो “बाह्य आक्रमण” के बराबर नहीं है।

4. धारा-6A और समानता का अधिकार

  • याचिकाकर्ता का तर्क : याचिकाकर्ताओं का दावा है कि धारा-6A दो मुख्य कारणों से समानता के अधिकार का उल्लंघन करती है :
    • चयनात्मक नागरिकता: धारा 6A केवल असम में प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करती है, जिससे एक ऐसा अंतर पैदा होता है जो उनके अनुसार अनुचित है।
    • अन्य राज्यों को बाहर रखना : यदि लक्ष्य बांग्लादेशी प्रवास को रोकना है, तो अन्य सीमावर्ती राज्यों को इसी तरह के प्रावधानों से बाहर रखना पूरे भारत में प्रवास के मुद्दों को संबोधित करने में निष्पक्षता और समानता के बारे में प्रश्न उठाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय : सर्वोच्च न्यायालय ने धारा-6A को बरकरार रखा, इस बात पर जोर देते हुए कि असम में प्रवास का पैमाना और असमिया तथा आदिवासी जनसंख्या के सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों पर इसका अनूठा प्रभाव विशेष विचार-विमर्श की मांग करता है।
    • न्यायालय ने पाया कि असम में प्रवासियों की मात्रा अन्य राज्यों की तुलना में काफी अधिक है, जो कानून में विभेदित दृष्टिकोण को उचित ठहराता है।

निर्णय के निहितार्थ

  • वर्तमान नागरिकता संबंधी चुनौतियाँ : यह निर्णय असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर चल रही अनिश्चितताओं के बीच आया है, जहाँ 1.9 मिलियन व्यक्ति अभी भी नागरिक के रूप में सत्यापित नहीं हैं।
  • जटिलताओं से बचना : धारा-6A को समाप्त करने से नागरिकता सत्यापन की चुनौतियाँ बढ़ सकती थीं और असम में नागरिकता के संबंध में कानूनी परिदृश्य और भी जटिल हो सकता था।

निष्कर्ष 

धारा-6ए को बनाए रखने का उच्चतम न्यायालय का निर्णय असम में नागरिकता के लिए मौजूदा कानूनी ढाँचे को मजबूत करता है। इसका उद्देश्य स्थानीय निवासियों के अधिकारों के साथ मानवीय विचारों को संतुलित करना है तथा चल रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से उत्पन्न जटिलताओं को संबोधित करना है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्णय के आलोक में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा-6A की संवैधानिक वैधता की जाँच कीजिए । बताइए कि यह असम समझौते के उद्देश्यों से किस प्रकार संबंधित है?

(10 अंक, 150 शब्द)

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