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सेक्युलर सिविल कोड : एक समग्र अवलोकन

Lokesh Pal August 21, 2024 05:30 44 0

संदर्भ :

15 अगस्त को भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेक्युलर सिविल कोड (Secular Civil Code- SCC) के कार्यान्वयन का आग्रह किया, जो मुख्य रूप से देश में समान नागरिक संहिता (UCC) के क्रियान्वयन से संबंधित है | इस अपील ने धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों से परे एक एकीकृत कानूनी ढाँचे (सामान नागरिक संहिता) पर बहस को फिर से शुरू कर दिया है, जो बाबासाहेब अंबेडकर के समानता और प्रगति के दृष्टिकोण के साथ संरेखित है।

UCC महत्त्वपूर्ण है, क्यों? 

  • समानता और न्याय को बढ़ावा : यह सुनिश्चित करता है, कि कानून के तहत सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाए, विशेष रूप से महिलाओं को विभिन्न धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों से उत्पन्न अंतराल को कम करके लाभ पहुँचाया जाए।
  • धार्मिक स्वतंत्रता में स्पष्टता : UCC धार्मिक स्वतंत्रता को खतरा पहुँचाने वाली गलत धारणाओं का विरोध करता है, इसके बजाय यह धार्मिक प्रथाओं का सम्मान करते हुए नागरिक मामलों (विवाह, तलाक, उत्तराधिकार) में समानता सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
  • राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा : धार्मिक पहचान को प्रभावित किए बिना कानूनी उपचार में एकरूपता का लक्ष्य रखते हुए मानकीकृत कानूनी अधिकार और जिम्मेदारियाँ सुनिश्चित करता है, जिससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिल सके ।
  • वैश्विक उदाहरण : एकीकृत नागरिक कानूनों यथा- यू.एस., फ्रांस तथा जर्मनी  जैसे राष्ट्रों ने सांस्कृतिक विविधता के साथ समानता को सफलतापूर्वक संतुलित किया है।
  • भेदभावपूर्ण कानूनों पर प्रतिबंध : पुराने और भेदभावपूर्ण व्यक्तिगत कानूनों को एक मानक कोड के साथ बदलता है, जिससे महिलाओं के लिए सामाजिक न्याय और समान अधिकारों को बढ़ावा मिलता है।
  • कानूनी प्रणाली का आधुनिकीकरण : न्यायिक ढाँचे को सरल और सुव्यवस्थित करता है, जिससे यह सभी नागरिकों के लिए स्पष्ट और अधिक सुलभ हो जाता है।
  • लंबित मामलों में कमी : यह (मार्च 2022 तक लगभग 4.70 करोड़) लंबित मामलों में कमी ला सकता है, जिनमें से कई जटिल व्यक्तिगत कानून विवादों से संबंधित हैं।
  • कानूनी ढाँचे को सरल बनाना : कानूनों को सुव्यवस्थित करके, UCC न्यायपालिका के कार्यभार को कम करेगी, जिससे वह अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकेगी।

संवैधानिक कर्तव्य और नीतिगत दिशा-निर्देश

  • संवैधानिक अधिदेश : भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य को सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता (UCC) की दिशा में काम करने का निर्देश देता है।
  • मार्गदर्शक सिद्धांत : यद्यपि यह निर्देश कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं है, लेकिन यह शासन के लिए एक मौलिक सिद्धांत के रूप में कार्य करते हैं ।

केस स्टडी : सरला मुद्गल बनाम भारत संघ वाद, 1995

  • कानून का दुरूपयोग : एक हिंदू व्यक्ति ने बहुविवाह के संबंध में पर्सनल लॉ का फायदा उठाते हुए दूसरी बार शादी करने के लिए इस्लाम धर्म अपना लिया।
  • कानूनी चुनौती : इस मामले ने पर्सनल लॉ संबंधी अंतरों के चलते उत्पन्न विवादों को प्रस्तुत किया ।
  • सर्वोच्च न्यायालय का मत : न्यायालय ने विवाह, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और हिरासत संबंधी मामलों के लिए समान कानूनी मानकों को सुनिश्चित करने हेतु एकसमान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता पर बल दिया ।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि समानता और न्याय के संवैधानिक दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए विभाजनकारी व्यक्तिगत कानूनों से आगे बढ़ना आवश्यक है। बाबासाहेब अंबेडकर के इस विचार को दोहराते हुए कि “कानून और व्यवस्था शरीर की राजनीति की दवा हैं,” UCC को भारतीय समाज में व्याप्त असमानताओं और अन्याय को दूर करने के उपाय के रूप में देखा जाता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

‘सेक्युलर सिविल कोड’ से आप क्या समझते हैं? ‘सामान नागरिक संहिता’ की आवश्यकता पर विचार करते हुए, इसके क्रियान्वयन संबंधी समस्याओं तथा उनके संभावित उपायों की समीक्षा कीजिए | 

(15 अंक, 250 शब्द)

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