चयन पूर्वाग्रह (Selection Bias) की अवधारणा को द्वितीय विश्व युद्ध की एक प्रसिद्ध कहानी के माध्यम से समझाया जा सकता है, जिसमें अमेरिकी वायु सेना मुख्य भूमिका में थी।
युद्ध के पश्चात् वायु सेना ने अपने विमानों की सुरक्षा में सुधार करने के विषय में सुझाव माँगे, जो युद्ध के दौरान गोलियों से क्षतिग्रस्त हो गए थे।
विमानों का अध्ययन करने तथा अतिरिक्त हथियार और कवच कहाँ लगाए जाएँ, इसकी सिफारिश करने के लिए एक गणितज्ञ को बुलाया गया।
युद्ध से लौटे विमानों का विश्लेषण करने पर गणितज्ञ ने पाया, कि ज़्यादातर गोलियों के छेद विमानों के पंखों और निचले हिस्से में केंद्रित थे, जबकि इंजन में गोलियों के बहुत कम छेद थे। इस अवलोकन के आधार पर उन्होंने इंजन में कवच जोड़ने का सुझाव दिया।
हालाँकि, अधिकारी इससे असहमत थे, क्योंकि वे पंखों और निचले क्षेत्रों को मजबूत करने के पक्ष में थे, क्योंकि यहीं पर सबसे अधिक क्षति दिखाई दे रही थी।
जब गणितज्ञ से उनके तर्क को समझाने के लिए कहा गया, तो उसने बताया कि अधिकारी चयन पूर्वाग्रह (Selection Bias) से प्रभावित थे।
उसने बताया, कि इंजन में गोली के निशान न होने का अर्थ यह नहीं है कि इंजन कम असुरक्षित थे।
इसके बजाय जिन विमानों के इंजन क्षतिग्रस्त हो गए थे, वे संभवतः बेस पर वापस नहीं आ पाए।
ये विमान, जिनके इंजन में घातक क्षति हुई थी, या तो युद्ध में नष्ट हो गए थे या दुश्मन द्वारा कब्जा कर लिए गए थे और परिणामस्वरूप, वे उस डेटा सेट में मौजूद नहीं थे जिसका सेना विश्लेषण कर रही थी।
यह केस स्टडी इस बात पर प्रकाश डालती है, कि यदि विश्लेषण के लिए उपयोग किया गया डेटा सभी प्रासंगिक परिणामों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, तो चयन पूर्वाग्रह कैसे विषम निष्कर्षों को जन्म दे सकता है।
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