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सेवा क्षेत्रक : आर्थिक विकास का एक तीव्र और विश्वसनीय मार्ग

Lokesh Pal January 01, 2025 05:30 20 0

संदर्भ :

विकासशील राष्ट्रों के लिए आर्थिक अनिश्चितताओं से युक्त इस दौर में, वैश्विक स्तर पर विकास रणनीतियों में परिवर्तन हो रहा है। परंपरागत रूप से विनिर्माण समृद्धि का मुख्य चालक रहा है, लेकिन विश्व बैंक के नए शोध ने विकास में सेवाओं को सबसे आगे रखने के बढ़ते महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

विकसित होते बच्चे के रूप में अर्थव्यवस्था

  • एक बच्चे के जीवन के चरणों की तुलना अर्थव्यवस्था के विकास से की जा सकती है। जन्म के समय बच्चा एक शिशु होता है, जो प्रारंभिक, आधारभूत चरण का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • छह वर्ष की आयु तक बच्चा प्रारंभिक बाल्यावस्था में होता है, जो कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था के समान है। 
  • छह से बारह वर्ष की आयु के बीच बच्चा मध्य बाल्यावस्था में प्रवेश करता है, जो संक्रमण काल ​​को दर्शाता है, जहाँ उद्योगों का विकास शुरू होता है। 
  • 12 से 18 वर्ष की आयु तक बच्चा किशोरावस्था का अनुभव करता है, जो तीव्र विकास और परिवर्तन द्वारा चिह्नित है, यह अर्थव्यवस्था के औद्योगीकरण और विविधीकरण की ओर बढ़ने के समान है।
  • अंततः जब बच्चा 18 वर्ष का और वयस्क हो जाता है, तो अर्थव्यवस्था सेवा-उन्मुख और उन्नत अवस्था के रूप में परिपक्व हो जाती है।

पिछले दशकों में तुलनात्मक वृद्धि

प्रमुख क्षेत्र

1950 के दशक का योगदान (लगभग)

1991 का योगदान (लगभग)

2020 के दशक का  योगदान (लगभग) 

कृषि ~50% ~30% ~18-20%
उद्योग ~15% ~25% ~25-28%
सेवाएँ ~30% ~45% ~50-55%

  • भारतीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन : पिछले दशकों में भारत की अर्थव्यवस्था में परिवर्तन हुआ है, जो कृषि-केंद्रित मॉडल से बदलकर सेवा-संचालित मॉडल की ओर स्थानांतरित हो गई है, जिसके बीच में औद्योगिक विकास भी हुआ है।
  • विभिन्न क्षेत्रों में भागीदारी : किसी देश की अर्थव्यवस्था सबसे पहले कृषि क्षेत्र, फिर विनिर्माण और अंत में सेवा क्षेत्र से होकर गुजरती है। कृषि चरण में, अधिकांश कार्यबल कृषि गतिविधियों में लगे हुए थे। आज भी परिदृश्य वही है, लेकिन समस्या यह है कि इस क्षेत्र की उत्पादकता सेवा क्षेत्र की तुलना में तुलनात्मक रूप से कम है, जो अर्थव्यवस्था में अधिक योगदान देता है। 
  • रोजगार के अवसरों की कमी : भारत के सामने एक और समस्या यह है, कि विनिर्माण क्षेत्र में पर्याप्त रोजगार के अवसर सृजित नहीं हो पा रहे हैं, जबकि दूसरी ओर सेवा क्षेत्र में आईटी क्षेत्र की तरह केवल कुशल श्रमिकों को ही रोजगार के अवसर मिलते हैं। सेवा क्षेत्र में कम और अर्द्ध-कुशल श्रमिकों की अधिक माँग नहीं थी।

भारत का कृषि क्षेत्र से बाहर न निकाल पाने के प्रमुख कारण

  • नवाचार की कमी : कृषि में पारंपरिक कार्यों से अधिक उन्नत तकनीकों की ओर परिवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिए बहुत कम नवाचार हुए हैं। यह आदर्श रूप से श्रमिकों को शहरी क्षेत्रों में आजीविका की तलाश करने के लिए प्रेरित करेगा, लेकिन स्थिति अभी भी अपरिवर्तित बनी हुई है।
  • कौशल की कमी : चीन के विपरीत, ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के कौशल को बेहतर बनाने या कारखाने स्थापित करने के प्रयास सीमित रहे हैं। चीन ने प्राथमिक शिक्षा में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे अधिगम  परिणामों में सुधार हुआ है। 
    • इससे विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिला है, जिससे चीन विश्व का सबसे बड़ा विनिर्माण केंद्र बन गया है। 
    • जमीनी स्तर पर विनिर्माण इकाइयों का विकास मजबूत शिक्षा और नवाचार की आवश्यकता के बारे में सार्वजनिक जागरूकता से प्रेरित है।
  • अधिगम में कमी के परिणाम : चूँकि भारत में अधिगम परिणाम बहुत कम हैं, इसलिए बड़े औद्योगिक समूहों को छोड़कर विनिर्माण क्षेत्र में कोई विशिष्ट सुधार नहीं देखा गया या देखा जा सकता है। 
    • सही अर्थों में, हम विनिर्माण क्षेत्र में तभी तेजी देख सकते हैं जब जमीनी स्तर पर सुधार हो। 
  • सेवा क्षेत्र में सीमित समायोजन : 1990 के दशक के बाद सेवा क्षेत्र का योगदान बढ़ना शुरू हुआ, किन्तु अधिगम परिणामों में कमी के मद्देनजर केवल वे ही लोग सेवा क्षेत्र में समायोजित हो पाए, जो स्वयं को कुशल बनाने में सफल रहे। 
  • विनिर्माण केंद्र का महत्त्व : भारत के अनुसार सेवा क्षेत्र नहीं, बल्कि विनिर्माण क्षेत्र ही अतिरिक्त कार्यबल को अवशोषित कर सकता है। हालाँकि, सेवा क्षेत्र में सुधार के प्रयासों के बावजूद प्रगति सीमित रही है।

सेवा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता

  • विकासशील देशों के लिए सुरक्षा : विश्व के विकासशील राष्ट्रों मुख्य रूप से सर्वाधिक गरीब राष्ट्रों के लिए आर्थिक स्थिति कभी इतनी सरल नहीं रही है। विकासशील राष्ट्रों के लिए बेहतर होगा, कि वे सेवाओं को मुख्य भूमिका में रखें, जबकि विनिर्माण और कृषि सहायक भूमिका में हों।
  • निम्न आय वाले देशों को हानि : ये देश (< या <= $1135) पहले ही एक दशक की हानि झेल चुके हैं, जहाँ 2010 के बाद से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि लगभग शून्य रही है।
  • मध्यम आय वाले देशों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन : भारत, केन्या और वियतनाम जैसे कई मध्यम आय वाले देश ($1136- $4465) जनसांख्यिकीय परिवर्तन से गुजर रहे हैं, जिसके कारण उनके धनाढ्य होने से पूर्व ही वृद्ध हो जाने का खतरा है।
  • स्थायित्व और ऋण का जोखिम : कई उच्च आय वाले देशों में आसमान अत्यधिक ऋण और आर्थिक उत्पादकता वृद्धि के कारण स्थिरता का जोखिम है। विश्व बैंक के नए शोध से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि ऐसा नहीं है।
  • क्षेत्र का स्पिलओवर प्रभाव : सेवाओं में कई तरह की गतिविधियाँ शामिल हैं- वित्त, स्वास्थ्य, पर्यटन और अवसंरचना निर्माण तथा इनसे होने वाले लाभ अन्य क्षेत्रों में भी विस्तृत हैं। फिर भी विनिर्माण के सापेक्ष, उन्हें  प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं होती है।
  • वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद : अब सेवाओं का योगदान वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (66.66%) के दो-तिहाई से अधिक तथा वैश्विक व्यापार के आधे के बराबर है (जब आप विनिर्माण और कृषि में प्रयुक्त सेवाओं को भी शामिल कर लें)।
  • एशियाई परिवर्तन : पूर्वी एशिया, जो कभी विनिर्माण-आधारित विकास मॉडल पर विकसित हो रहा था, अब वृद्ध होती आबादी और खंडित वैश्विक अर्थव्यवस्था जैसी नई चुनौतियों के अनुकूल ढल रहा है। 
    • परिणामस्वरूप, सेवा क्षेत्र का व्यापक विस्तार हुआ है | पिछले दशक में चीन में यह 44% से बढ़कर 53% हो गया तथा अन्य पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में 44% से बढ़कर 48% हो गया।
    • इन क्षेत्रों में अब क्षेत्र में लगभग 50% रोजगार उपलब्ध है, जो एक दशक पूर्व लगभग 42% था।

सेवा क्षेत्र में वृद्धि का कारण

  • डिजिटल विकास : डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उदय, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लगभग तीन-चौथाई हिस्से में इंटरनेट की पहुँच (वर्ष 2000 से सात गुना वृद्धि) तथा सेवा व्यापार में सीमित उदारीकरण।
  • सेवाओं में प्रतिस्पर्धा : सेवाओं को प्रतिस्पर्धा के लिए खोलने से मूल्य निर्धारण, वितरण और भुगतान में दक्षता संबंधी सुधार के कारण विनिर्माण और कृषि सहित सभी क्षेत्रों में श्रम उत्पादकता को बढ़ावा मिला है।
  • परिवहन और रसद विकास : परिवहन क्षेत्र के विस्तार और बेहतर रसद ने किसानों के लिए माल पहुँचाने के प्रयासों को सरल बना दिया है।

सेवा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदम

  • गलत विकल्प : सहायक सेवाओं और सहायक विनिर्माण के बीच गलत विकल्प को अस्वीकार करना होगा।
  • नीति निर्माताओं के प्रयास : नीति निर्माताओं को विकास और रोजगार सृजन के लिए सेवा क्षेत्र की क्षमता को अधिकतम करते हुए दोनों कार्य करने चाहिए।
  • चिकित्सा पर्यटन क्षेत्र को मजबूत करना : चिकित्सा पर्यटन में शामिल एजेंटों को विदेशी मरीजों के साथ कुशलतापूर्वक व्यवहार करने के लिए थोड़ा और अधिक कुशल बनाया जाना चाहिए। उनकी सेवा सुविधाओं का विस्तार भारत की अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा देगा। 
  • डबल-डाउन दृष्टिकोण : सरकार को सेवा क्षेत्र में डबल-डाउन दृष्टिकोण अपनाना चाहिए (जैसा कि रघुराम राजन का सुझाव था), जो भारत के विकसित अर्थव्यवस्था बनने के प्रयासों को गति दे सकता है। यदि सड़कें, रसद, बुनियादी ढाँचा और आपूर्ति शृंखला बेहतर ढंग से विकसित हैं, तो इससे वस्तुओं एवं सेवाओं  को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना और भी आसान हो जाएगा। 
  • पर्यटन उद्योग को बढ़ावा : चूँकि पर्यटन भी सेवा क्षेत्र के अंतर्गत आता है, इसलिए यदि विदेशी पर्यटकों को अच्छा अनुभव मिलता है, तो इससे सेवा क्षेत्र को और बढ़ावा मिलेगा। लेकिन दुर्भाग्य से, भारत में परिदृश्य असंतुलित प्रतीत होता है। 
    • हाल ही में मीडिया में यह खबर प्रसारित हुई कि गोवा में विदेशी और घरेलू पर्यटकों की संख्या बहुत कम हो गई है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं:
      • नागरिक भावना का अभाव। 
      • टैक्सी माफिया, जो बहुत ज्यादा किराया वसूलते हैं। 
      • होटल का अत्यधिक किराया। (घरेलू पर्यटक अब बेहतर अनुभव के कारण थाईलैंड और बाली (आगमन पर वीज़ा) जैसे स्थानों को पसंद करने लगे हैं।) 
      • गोवा के मूल निवासियों से असहयोग। स्थानीय लोगों ने पर्यटकों को पैसा कमाने वाली मशीन समझना शुरू कर दिया है तथा उन्हें विभिन्न प्रकार के शोषण का शिकार बनाया है। 
      • पर्यटकों के स्वागत में स्थानीय लोगों की ओर से आतिथ्य का अभाव। 

निष्कर्ष

डिजिटल सेवाओं का लाभ उठाकर, कौशल विकास को बढ़ाकर तथा मजबूत ग्रामीण और शहरी संपर्कों के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ावा देकर, भारत मौजूदा असमानताओं और क्षेत्रीय विषमताओं से निपट सकता है। इसके अतिरिक्त, दीर्घावधि में व्यापक और सतत विकास प्राप्त करने के लिए सेवा, कृषि और विनिर्माण का संतुलित विकास सुनिश्चित करना आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

पिछले कुछ दशकों में भारत में आर्थिक वृद्धि में सेवा क्षेत्र का विशेष योगदान रहा है। इस संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन, क्षेत्रीय असमानता और सतत विकास के मुद्दों को संबोधित करने में सेवा क्षेत्र द्वारा संचालित वृद्धि की संभावनाओं और चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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