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क्या भारत में सर्वोच्च न्यायालय के पास क्षेत्रीय पीठें (Regional Benches) होनी चाहिए ?

Lokesh Pal February 23, 2024 05:15 101 0

संदर्भ:

हाल ही में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने इस बात का जिक्र किया है कि कानून मंत्रालय ने पूरे भारत में सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों (Regional Benches) को स्थापित करने की उसकी सिफारिश स्वीकार कर लिया है। हालाँकि, शीर्ष अदालत संसदीय स्थाई समिति के इस विचार को “लगातार” खारिज करती रही है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत के संविधान का अनुच्छेद 32, 131 और 143।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की स्थापना की आवश्यकता, चुनौतियाँ और आगे की राह।

सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की स्थापना की आवश्यकता?

  • लोगों का न्यायालय से संपर्क में वृद्धि: लोग राज्य और उसकी एजेंसियों के मनमाने या अन्यायपूर्ण कार्यों को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं हैं और वे इससे न्याय पाने के लिए न्यायालय का सहारा ले रहें है, इसे ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय क्षेत्रीय पीठों की स्थापना से संबंधित मामले के विषय में आगे के निर्णय की माँग कर रही है।
  • भौगोलिक बाधाओं से संबंधित चुनौतियों का समाधान: दिल्ली से दूर के राज्यों में निवास करने वाले लोगों के लिए अपनी आवाज़ को सरकार तक पहुँचाना व्यावहारिक रूप से असंभव हो जाता है।
    • ऐसा कहा जाता है कि अपीलीय मंचों पर किसी वादी की उपस्थिति आवश्यक नहीं है, लेकिन प्रत्येक वादी अपने वकील के पास जाना चाहता है और अपने मामले से जुड़ी अदालती कार्यवाही के विषय में जानकारी चाहता है।
  • न्यायिक प्रणाली को बढ़ावा: वर्तमान में, लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक है, इस समस्या के समाधान के लिए क्षेत्रीय पीठों की प्रासंगिकता बढ़ जाती है, क्षेत्रीय पीठों की स्थापना से न सिर्फ जजों की संख्या में वृद्धि होगी बल्कि इससे वकीलों की संख्या में भी वृद्धि होगी जिससे देश की न्यायिक प्रक्रिया सुचारू और कम समय में न्याय दिलाने वाली हो सकेगी।
    • 2022 की तुलना में 2023 में सर्वोच्च न्यायालय में मामलों के निपटान की संख्या में तकरीबन 31% की वृद्धि देखी गई। हालाँकि, अभी भी यह कुल लंबित मामलों की तुलना में नगण्य है।
  • अधिक लोकतांत्रिक व्यवस्था को बढ़ावा: क्षेत्रीय पीठों की स्थापना से न्यायालयों को अधिक अवसर मिलेंगे और बार का लोकतंत्रीकरण हो सकेगा।
  • एकरूपता: वर्तमान में विविध प्रकार की तकनीकों के उपयोग ने न्यायाधीशों को अधयतित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है, और यह न्यायालय के निर्णयों में एकरूपता बनाए रखने में मदद करती है।
    • ध्यातव्य है कि परस्पर विरोधी या भिन्न विचार प्रभावी सहायता की अनुपलब्धता और कभी-कभी न्यायिक अनुशासन की कमी की वजह से ही उत्पन्न होते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की स्थापना 

लाभ  हानि 
न्याय पाना अधिक सुलभ हो जायेगा। अलग-अलग विचार उभर सकते हैं और न्यायालय के विचारों के मध्य विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
इससे स्थानीय स्तर पर उठने वाले मुद्दों को अधिक बेहतर और अधिक प्रभावी तरीके से हल किया जा सकता है। क्षेत्रीय पीठों कि स्थापना से सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति कमजोर हो सकती है।
इससे सर्वोच्च न्यायालय पर पड़ने वाले बोझ में कमी आएगी । संसाधन के स्तर पर लागत में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
न्यायालयों की अपीलीय प्रक्रिया के जटिल होने की संभावना है ।
न्यायाधीशों पर क्षेत्रीय स्तर की राजनीतिक का प्रभाव पड़ सकता है।

क्या वर्चुअल सुनवाई क्षेत्रीय पीठों का विकल्प हो सकती है?

  • की गई कार्रवाई: महामारी की शुरुआत के बाद से आभासी सुनवाई (Virtual Hearing) का विकल्प के रूप में उपयोग करना न्यायपालिका के स्तर पर एक सराहनीय कदम माना जा सकता है।
  • चुनौती: केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग जैसे मंचों पर, आभासी सुनवाई की सुविधा का उपयोग न के बराबर होती है।
    • कुछ जज भी वकीलों के शारीरिक रूप से उपस्थित होने के पक्ष में रहते हैं।
  • न्यायालय के समक्ष सुनवाई का महत्व: यह निष्पक्षता बनाए रखने में मदद करता है। खुली अदालत प्रणाली यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है कि एक जज द्वारा उचित रवैया और व्यवहार बनाए रखे।
    • अदालत के कक्ष में वकीलों और वादियों की मौजूदगी भी न्यायाधीश को बिना किसी डर या पक्षपात के काम करने में मदद करती है।
  • एक हाइब्रिड तंत्र की आवश्यकता: एक ऐसे तंत्र को स्थापित किए जाने की आवश्यकता है जो कि वर्चुअल मोड में मामले की प्रारंभिक स्तर की सुनवाई को अनुमति  देता हो और अंतिम सुनवाई भौतिक रूप से न्यायालयों में आयोजित की जाए।
  • केवल असाधारण मामलों में: हालाँकि प्रौद्योगिकी का उपयोग न्यायिक प्रशासन, अदालत प्रबंधन और मामले के बड़ी संख्या को संभालने की दृष्टि से काफी प्रभावी अवश्य है, किन्तु यह न्यायिक निर्णय की दृष्टि से एक व्यवहार्य समाधान नहीं है।

आगे की राह:

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सभी प्रकार की याचिकाओं की जाँच: शीर्ष अदालत में स्वीकार की जाने वाली याचिकाओं के प्रकार की जाँच के लिए एक तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • कई कैसेशन अदालतों के साथ एक स्थायी अपीलीय अदालत की स्थापना: फ्रांस के समान, कई कैसेशन अदालतों के साथ एक स्थायी अपीलीय अदालत की प्रणाली को स्थापित किया जा सकता है (विधि आयोग ने अपनी 95वीं और 229वीं रिपोर्ट में इसकी सिफारिश की थी)।
    • अमेरिका में, स्थायी अपीलीय अदालत केवल संवैधानिक मामलों की सुनवाई करती है जबकि कैसेशन अदालतें गैर-संवैधानिक मामलों से संबंधित अपीलों पर फैसला सुनाती हैं।
  • न्यायाधीशों की संख्या में आनुपातिक वृद्धि: पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। ऐसे मामलों की संख्या बहुत अधिक है जिन्हें न्यायिक प्रणाली में वकीलों और न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाकर हल किया जा सकता है।

कैसेशन अदालतें (Cassation Court):

  • यह एक न्यायालय है जो कुछ न्यायिक प्रणालियों में मौजूद है। 
  • यह किसी मामले के तथ्यों की दोबारा जाँच नहीं करता है बल्कि केवल प्रासंगिक कानून की व्याख्या करता है।

निष्कर्ष:

सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की स्थापना का विचार महत्वपूर्ण प्रतीत होता है, ध्यातव्य है कि भारत के संविधान में सर्वोच्च न्यायालय की कुछ विशेष शक्तियाँ भी हैं ये शक्तियाँ क्रमशः अनुच्छेद 131 के तहत इसका मूल क्षेत्राधिकार, अनुच्छेद 143 के तहत इसका सलाहकार क्षेत्राधिकार और संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इसका रिट क्षेत्राधिकार।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न : सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्रीय पीठों की स्थापना के विचार को लगातार ख़ारिज किया जाना,क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बाधित करता है ? न्यायालय के समक्ष लंबित मुद्दों तथा भौगोलिक बाधाओं को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्रीय पीठों की स्थापना का विचार कहाँ तक तर्कसंगत है। टिप्पणी कीजिए।  


News Source: The Hindu

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