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भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में मंदी

Lokesh Pal September 12, 2024 05:15 34 0

संदर्भ :

भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, वर्तमान में आर्थिक चुनौतियों, उच्च करों तथा वैश्विक व्यवधानों सहित कई कारकों के कारण मंदी का सामना कर रहा है। विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और उद्योग के प्रयासों के बावजूद, इस क्षेत्र को वर्तमान चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके लिए सुधार संबंधी व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • वैश्विक मंदी और द्वितीय विश्व युद्ध : वर्ष 1929 की वैश्विक मंदी ने विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को बुरी तरह प्रभावित किया; साथ ही 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हो गया, जिससे स्थिति और भी खराब हो गई। युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाला जर्मनी 1945 में युद्ध के अंत तक खंडहर में तब्दील हो गया। मित्र देशों की सेनाओं ने देश को कब्जे वाले क्षेत्रों में विभाजित कर दिया, यहाँ तक ​​कि बर्लिन भी विभाजित हो गया। जर्मन अर्थव्यवस्था को तबाही का सामना करना पड़ा | कृषि और उद्योग बर्बाद हो गए, बुनियादी ढाँचा नष्ट हो गया और मुद्रास्फीति बढ़ गई। लोगों को खाद्यान्न समस्या का सामना करना पड़ा, जिसने एक गहरे मानवीय संकट में योगदान दिया। 
  • जर्मनी की स्थिति में सुधार  : कुछ ही समय में जर्मनी ने उल्लेखनीय प्रगति की। यह बदलाव इसके ऑटोमोबाइल उद्योग- वोक्सवैगन, डेमलर-बेंज, बीएमडब्ल्यू आदि के कारण संभव हुआ, जिससे जर्मनी को यूरोप के ‘कार हब’ का खिताब मिला। जल्द ही जर्मनी को एक विकसित राष्ट्र के रूप में मान्यता मिल गई और जर्मन निर्मित कारों को वैश्विक प्रशंसा मिली। 

भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग

भारत में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है, जहाँ टाटा मोटर्स और महिंद्रा जैसी बड़ी कंपनियों ने देश के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इन कंपनियों की वृद्धि ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, जिससे भारत वैश्विक ऑटोमोबाइल उद्योग में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित हुआ है।

हालिया समस्याएँ

  • भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग वर्तमान में मंदी का सामना कर रहा है, जो चिंता का विषय है।
  • FADA रिपोर्ट (2024) के अनुसार, भारत में 8,00,000 कारों की बिक्री नहीं हुई है, जिनकी कीमत लगभग ₹77,000 करोड़ है।
  • छूट देने के बावजूद, उपभोक्ता नई कारें खरीदने से कतरा रहे हैं, जो उद्योग के लिए परेशानी का सबब बन गया है।

योगदान और महत्त्व

  • भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7.1% है। 
  • विनिर्माण क्षेत्र में इसकी भागीदारी 49% है |
  • गुणक प्रभाव और उद्योग प्रभाव : ऑटोमोबाइल उद्योग का अन्य क्षेत्रों पर गहरा गुणक प्रभाव पड़ता है, जिनमें शामिल हैं :
    • रसायन
    • इस्पात
    • एल्युमीनियम
    • सूचना प्रौद्योगिकी
    • वित्त
    • लॉजिस्टिक्स

         ये अंतर्संबंध विभिन्न उद्योगों में विकास को बढ़ावा देने में मदद करते हैं तथा समग्र आर्थिक परिदृश्य में योगदान देते हैं।

  • रोजगार सृजन : यह उद्योग सीधे तौर पर 1.5 से 2 मिलियन लोगों को रोजगार देता है। यह डीलरशिप, सर्विस सेंटर, लॉजिस्टिक्स और बीमा जैसे आश्रित क्षेत्रों में कई रोजगारों का समर्थन करता है, जिसका कुल रोजगार प्रभाव लगभग 30 मिलियन है। इसमें मैकेनिक से लेकर ऑटो पार्ट्स निर्माताओं तक कई तरह के कुशल और अकुशल पद शामिल हैं।
  • विदेशी मुद्रा और निर्यात योगदान : उद्योग ने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि में भी योगदान दिया है। भारत छोटी कारों के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है तथा एक प्रमुख निर्यातक है, जिसमें ऑटोमोबाइल निर्यात भारत के कुल निर्यात का लगभग 8% है। देश अफ्रीका सहित विभिन्न राष्ट्रों को निर्यात करता है।
  • तकनीकी नवाचार एवं कौशल विकास
    • ऑटोमोबाइल उद्योग अपने वार्षिक राजस्व का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (5% से 7% तक) अनुसंधान और विकास के लिए आवंटित करता है। निवेश का यह उच्च स्तर नवाचार और नई प्रौद्योगिकियों की उन्नति का समर्थन करता है।
    • फोकस के प्रमुख क्षेत्रों में ईंधन दक्षता में सुधार, वाहन सुरक्षा को बढ़ाना और बदलते पर्यावरणीय मानकों को पूरा करने के लिए वैकल्पिक ईंधन विकसित करना शामिल है।
    • उद्योग कार्यबल के कौशल को बढ़ाने के लिए स्किल इंडिया जैसे सरकारी कार्यक्रमों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करता है।

मंदी के कारण

साझा गतिशीलता और सार्वजनिक परिवहन

  • यातायात भीड़ : दिल्ली, मुंबई और बंगलुरू जैसे प्रमुख शहरों में यातायात की भीड़ बहुत ज़्यादा होती है, जिससे निजी वाहन रखने का आकर्षण कम हो जाता है। टॉमटॉम रिपोर्ट, 2023 के अनुसार यातायात में बिताया गया समय इस प्रकार है :
    • दिल्ली : 81 घंटे/वर्ष
    • मुंबई : 92 घंटे/वर्ष
    • बंगलूरू : 132 घंटे/वर्ष
  • साझा परिवहन की लोकप्रियता : मेट्रो और बसों सहित अच्छी तरह से विकसित सार्वजनिक परिवहन प्रणालियाँ निजी वाहनों की आवश्यकता को और कम करती हैं। ओला, उबर और रैपिडो जैसी राइड-शेयरिंग सेवाएँ तेज़ी से लोकप्रिय हो रही हैं, जो निजी वाहनों के लिए सुविधाजनक विकल्प प्रदान करती हैं।

कोविड-19 का प्रभाव

  • महामारी का प्रभाव : महामारी के दौरान, लॉकडाउन और गैर-ज़रूरी वस्तुओं पर उपभोक्ता खर्च में कमी के कारण वाहनों की बिक्री में गिरावट आई।
  • बिक्री के प्रति आकर्षण : 2021 में बिक्री में 20% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई और 2022 में फिर से 5-10% की वृद्धि हुई। हालाँकि 2024 में बिक्री स्थिर हो गई है, जो दर्शाता है कि मांग अपने चरम पर पहुँच गई है।

आर्थिक मंदी और मुद्रास्फीति

  • बेरोज़गारी दर : भारत बढ़ती मुद्रास्फीति और बेरोज़गारी सहित आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। हाल की बेरोज़गारी दरें हैं :
    • मई 2024 : 7%
    • जून 2024 : 9.2%
  • उपभोक्ता प्राथमिकताएँ : क्रय शक्ति में कमी के कारण उपभोक्ता, विशेष रूप से मध्यम वर्ग, आवश्यक खर्चों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे कारों जैसी विलासिता की वस्तुओं की मांग प्रभावित हो रही है।

उच्च कर और शुल्क

  • कर का बोझ : वाहनों पर उच्च कर और शुल्क उनकी उच्च लागत में योगदान करते हैं, जिससे वे कम किफायती हो जाते हैं। उदाहरण के लिए
    • कारों पर जीएसटी 28% है, जबकि लग्जरी कारों और एसयूवी पर 1-22% का अतिरिक्त उपकर है। 
    • ये भारी कर प्रीमियम कारों को आम उपभोक्ता के लिए विशेष रूप से अप्राप्य बनाते हैं।

वैश्विक कारक

  • भू-राजनीतिक तनाव : चीन और लद्दाख के बीच 2020 के संघर्ष के बाद से भारत चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए विशेष रूप से सेमीकंडक्टर क्षेत्र में कार्य कर रहा है । चल रही सेमीकंडक्टर की कमी ने वाहन आपूर्ति शृंखला को प्रभावित किया है। भारत सेमीकंडक्टर निर्माण में आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहा है और अन्य देशों के साथ साझेदारी कर रहा है। हालाँकि, इस प्रक्रिया में समय लगेगा और इस बीच भारत, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे मित्र देशों से आयात की मांग कर रहा है।
  • युद्ध और वैश्विक तनाव : यूक्रेन-रूस तथा ईरान-हम्मास युद्ध जैसे वैश्विक संघर्षों ने ईंधन की कीमतों में वृद्धि और दुनिया भर में आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान पैदा किया है।
  • सख्त उत्सर्जन मानक : भारतीय वाहन वर्तमान में BS-6 उत्सर्जन मानदंडों का अनुपालन करते हैं। हालाँकि, अमेरिका जैसे देशों में लागू टियर 3 मानदंडों जैसे सख्त उत्सर्जन मानक भारत की वाहन निर्यात क्षमता के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।

क्षेत्र को पुनर्जीवित करने हेतु सरकारी प्रयास

  • पीएलआई योजना : उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना में ₹25,938 करोड़ का पर्याप्त निवेश शामिल है, जिसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना और ऑटोमोटिव क्षेत्र में निवेश आकर्षित करना है। 
  • ऑटोमोटिव मिशन योजना (AMP) 2026 : यह योजना ऑटोमोटिव उद्योग के लिए रणनीतिक दृष्टि और रोडमैप की रूपरेखा तैयार करती है, जिसका लक्ष्य विकास, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाना है। 
  • राष्ट्रीय ऑटोमोटिव परीक्षण और अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना परियोजना (एनएटीआरआईपी) : एनएटीआरआईपी ऑटोमोटिव उद्योग की उन्नति का समर्थन करने और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए विश्व स्तरीय परीक्षण और अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना विकसित करने पर केंद्रित है। 
  • स्क्रैपेज नीति : यह नीति पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पुराने वाहनों को नए वाहनों से बदलने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है।

उपर्युक्त प्रयासों के बावजूद, इस क्षेत्र में उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए अन्य पहलों की आवश्यकता है, जैसे- 

  • टियर-2 और टियर-3 शहरों पर ध्यान केंद्रित करना : उद्योग को टियर-2 और टियर-3 शहरों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जहाँ बड़े महानगरीय क्षेत्रों में धीमी मांग की तुलना में अभी भी निजी वाहनों की महत्त्वपूर्ण मांग है। 
  • ग्रामीण बाजारों का लाभ उठाएँ : ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ कारों को अक्सर स्टेटस सिंबल माना जाता है, इस महत्त्वाकांक्षी बाजार को पूरा करके बिक्री बढ़ाने का अवसर है। 
  • सीमित सार्वजनिक परिवहन वाले क्षेत्रों में उपस्थिति बनाएँ : उन क्षेत्रों में मजबूत उपस्थिति विकसित करना जहाँ सार्वजनिक परिवहन अवसंरचना अविकसित है, उन क्षेत्रों में निजी वाहनों की मांग को पूरा करने में मदद कर सकता है।

निष्कर्ष

भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में मंदी से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें लक्षित रिकवरी रणनीतियाँ और निरंतर सरकारी सहायता शामिल है। उद्योग में नवाचार भी महत्त्वपूर्ण है। इन प्रयासों को व्यापक आर्थिक और बुनियादी ढाँचे के लक्ष्यों के साथ जोड़कर, उद्योग वर्तमान चुनौतियों को नियंत्रित कर दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित कर सकता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न

 भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में मंदी के लिए मुख्य रूप से कौन-से कारक उत्तरदायी हैं? इस क्षेत्र के विकास को पुनर्जीवित करने के लिए भारतीय सरकार और ऑटोमोबाइल निर्माता इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकते हैं, विश्लेषण कीजिए?

(15 अंक, 250 शब्द)

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