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पंचायती राज सस्थाओं की स्थिरता : विद्यमान चुनौतियाँ एवं उपाय

Lokesh Pal February 17, 2025 05:30 89 0

संदर्भ:

भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर संसद में हाल ही में हुई चर्चाओं में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि स्थानीय शासन को मजबूत करने की दिशा में गति रुक ​​गई है।

73वें संशोधन की मुख्य विशेषताएँ

  • 73वां संविधान संशोधन (1992) : 73वें संविधान संशोधन (1992) ने गाँव, ब्लॉक और जिला स्तर पर त्रिस्तरीय प्रणाली स्थापित करके ग्रामीण भारत में विकेंद्रीकरण को संस्थागत रूप दिया।
  • लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण: ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों के माध्यम से सशक्त स्थानीय स्वशासन स्थापित करने पर बल दिया। 
  • नियमित चुनाव: निरंतर लोकतांत्रिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हर पाँच साल में अनिवार्य चुनाव करने पर बल दिया।
  • आरक्षण: पंचायतों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण का प्रावधान किया गया है। राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है ।

पंचायती राज संस्थाओं की उपलब्धियाँ

  • बढ़ी हुई राजनीतिक भागीदारी: राज्यों में पंचायत चुनावों के संबंध में काफ़ी उत्साह है।
  • महिला नेतृत्व: 14 लाख से ज़्यादा निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों ने नेतृत्व की भूमिकाएँ संभाली हैं।
  • ग्राम स्तर पर नौकरशाही की स्थापना: संविधान ने राज्य वित्त आयोग और प्रशासनिक तंत्र को पंचायती राज संस्थाओं को मज़बूत करने का अधिकार दिया है।
  • सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों का कार्यान्वयन: कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में ग्राम पंचायतें अहम भूमिका निभाती हैं।

पंचायती राज संस्थाओं के पतन के कारण:

  • सामान्य कारण:
    • सार्वजनिक भागीदारी में गिरावट: स्थानीय शासन निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अपना  महत्व खो रहा है।
    • अतिनिर्भरता: सशर्त वित्त पोषण (बंधे हुए अनुदान) के कारण पंचायतों में स्वायत्तता का अभाव है।
    • राजनीतिकरण: पंचायतें राजनीतिक दलों से तेजी से प्रभावित हो रही हैं, जिससे उनकी तटस्थ कार्यप्रणाली प्रभावित हो रही है।
  • गतिरोध: राज्य सरकारों ने ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 विषयों पर कर्मचारियों और निर्णय लेने की शक्तियों को पूरी तरह से हस्तांतरित नहीं किया है। 20% से भी कम राज्यों ने सभी 29 विषयों को हस्तांतरित किया है (पंचायती राज मंत्रालय की रिपोर्ट, 2022)।
    • पंचायती राज संस्थाओं में नौकरशाही समर्थन की कमी है, जिससे वे निर्णयों को लागू करने के लिए राज्य एजेंसियों पर निर्भर हो जाते हैं।
  • कम राजकोषीय स्वायत्तता
    • निधि आवंटन में वृद्धि: वित्त आयोगों से हस्तांतरण ₹1.45 लाख करोड़ (13वें वित्त आयोग) से बढ़कर ₹2.36 लाख करोड़ (15वें वित्त आयोग) हो गया है।
    • अनटाइड अनुदानों में कमी: अनटाइड फंड (जिसे पीआरआई स्वतंत्र रूप से उपयोग कर सकते हैं) का हिस्सा 85% से घटकर 60% हो गया है, जिससे केंद्रीय नियंत्रण बढ़ गया है। 
      • इससे पंचायतों की स्थानीय विकास प्राथमिकताओं की स्वतंत्र रूप से योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • कल्याण वितरण मॉडल में बदलाव: जन धन-आधार-मोबाइल (जेएएम) के माध्यम से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) ने पीआरआई को दरकिनार कर दिया है, जिससे कल्याण कार्यान्वयन में उनकी भूमिका कम हो गई है।
    • उदाहरण के लिए : पीएम-किसान (प्रति किसान सालाना 6,000 रुपये) पंचायत की भागीदारी के बिना सीधे लाभार्थियों को हस्तांतरित किया जाता है, जिससे स्थानीय जवाबदेही और शासन की भागीदारी कम हो जाती है।
  • तेजी से बढ़ता शहरीकरण:
    • ग्रामीण जनसंख्या में गिरावट: तीव्र शहरीकरण के कारण ग्रामीण जनसंख्या 1990 से  75% से घटकर वर्तमान में 60% हो गई है, जिसके कारण ग्रामीण शासन पर ध्यान कम हो गया है। सरकार की प्राथमिकताएँ शहरी शासन और नगरपालिका सुधारों की ओर स्थानांतरित हो गई हैं, जिससे पंचायती राज संस्थाओं को कम वित्त पोषण और राजनीतिक रूप से उपेक्षित किया जा रहा है।

आगे की राह :

  • विकेंद्रीकरण को मजबूत करना: ग्यारहवीं अनुसूची के अंतर्गत सभी 29 विषयों का पूर्ण हस्तांतरण पंचायती राज संस्थाओं को करना। 
    • पंचायतों को स्थानीय विकास पर स्वतंत्र निर्णय लेने की अनुमति देते हुए, अनटाइड फंड में वृद्धि करना।
    • पंचायत स्तर पर स्थायी कर्मचारियों की तैनाती करके प्रशासनिक स्वायत्तता को मजबूत करना।
  • डिजिटलीकरण: योजना, बजट और शिकायत निवारण में नागरिक भागीदारी बढ़ाने के लिए शासन के लिए डिजिटल उपकरणों का उपयोग करना।
  • एकीकृत मॉडल: एकीकृत शासन मॉडल के माध्यम से ग्रामीण-शहरी विभाजन को समाप्त करने के लिए नेटवर्क वाली एकीकृत पंचायती राज प्रणाली को महत्त्व देना ।
  • प्रमुख क्षेत्रों में पंचायत की भूमिका का विस्तार करना
    • प्रवासन सहायता: सुरक्षित आंतरिक प्रवास में सहायता करना, प्रवासी परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना और आजीविका सृजन में सहायता करना।
    • जल संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा: सतत विकास के लिए वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके साझा संसाधनों का प्रबंधन करना।
    • आपदा जोखिम प्रबंधन: प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली लागू करना, आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचा विकसित करना और सामुदायिक तैयारी कार्यक्रम आयोजित करना।
  • सामुदायिक भागीदारी को मजबूत करना
    • नेतृत्व कौशल में सुधार के लिए निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों और एससी/एसटी नेताओं के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करना।
    • लिंग-संवेदनशील शासन सुनिश्चित करना और महिला-नेतृत्व वाली पंचायतों के प्रति नौकरशाही प्रतिरोध को कम करना।
    • हाशिए पर पड़े समूहों के लिए नेतृत्व प्रशिक्षण और वित्तीय संसाधनों तक पहुँच बढ़ाकर सामाजिक समावेश को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण-शहरी विकास में संतुलन: अर्ध-शहरीकृत गांवों को मान्यता देना और हाइब्रिड ग्रामीण-शहरी शासन मॉडल (जैसे, PURA मॉडल) बनाना। तेजी से शहरीकरण की चुनौतियों से निपटने वाली पेरी-अर्बन पंचायतों के लिए विशेष वित्तीय प्रावधान पेश करना।
    • सेवा वितरण और बुनियादी ढांचे की योजना में सुधार के लिए ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों के बीच संबंधों को मजबूत करना।
  • पंचायती राज 2.0 के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाना: वर्तमान सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के अनुरूप पंचायती राज संस्थाओं के शासन को आधुनिक बनाने के लिए संवैधानिक ढांचे पर फिर से विचार करना।
    • पंचायतों की शक्तियों, वित्त और विकास भूमिकाओं का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना करने पर बल देना। 
    • वास्तविक समय की निगरानी और फीडबैक के आधार पर आवधिक प्रदर्शन मूल्यांकन और निरंतर सुधार सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष: 

यद्यपि भारत की कुल आबादी के 95 करोड़ से ज़्यादा लोग अभी भी ग्रामीण भारत में रहते हैं। अतः समावेशी विकास हेतु, भारत के विकास परिदृश्य को बदलने में पंचायतों की भूमिका को फिर से परिभाषित करने के लिए एक नई दृष्टि की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न. संवैधानिक जनादेश के बावजूद, भारत में पंचायती राज संस्थाएँ (PRI) सीमित वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता के साथ अपनी कार्यान्वयन नीतियों का संचालन करने के लिए मजबूर हैं। वास्तविक विकेंद्रीकरण प्राप्त करने में, पंचायती राज संस्थाओं के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों  की चर्चा करें और स्थानीय शासन में उनकी प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द) 

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