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भारत में स्टेबलकॉइन और इसका भविष्य

Lokesh Pal September 23, 2025 05:15 90 0

संदर्भ:

स्टेबलकॉइन भुगतान के डिजिटल भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, और भारत में वित्तीय स्थिरता और नवाचार सुनिश्चित करने के लिए उन्हें विनियमित करना समय की आवश्यकता है।

स्टेबलकॉइन्स के बारे में:

  • स्थिरता पर ध्यान: स्टेबलकॉइन अंतर्निहित क्रिप्टो तकनीक का उपयोग करते हैं, लेकिन इनका उद्देश्य अस्थिरता को कम करना है। इसे वर्ष 2015 में पेश किया गया था।
  • पेगिंग मैकेनिज्म: स्टेबलकॉइन अपनी कीमत को स्थिर रखने के लिए किसी स्थिर एसेट, आमतौर पर अमेरिकी डॉलर (USD) से जोड़े जाते हैं, और अक्सर 1:1 के अनुपात में इनका आदान-प्रदान होता है (उदाहरण: 1 टोकन = 1 USD)।
  • उदाहरण: टीथर(Tether) और यूएसडी कॉइन(USD Coin) स्टेबलकॉइन के उदाहरण हैं।

मुद्रा मूल्य की अवधारणा:

  • फिएट करेंसी (INR): भौतिक मुद्रा की कीमत कागज पर नहीं, बल्कि सरकार के भरोसे और उसकी गारंटी पर निर्भर करती है, जैसा कि आरबीआई गवर्नर के आश्वासन से स्पष्ट है।
    • वेनेजुएला में देखी गई अति मुद्रास्फीति (100,000%) के कारण लोगों का अपनी स्थानीय मुद्रा पर से भरोसा उठ गया, जिसके कारण उन्हें अमेरिकी डॉलर या क्रिप्टोकरेंसी जैसे विकल्पों को अपनाना पड़ा।

बिटकॉइन के बारे में:

  • विकेंद्रीकृत लक्ष्य: बिटकॉइन का उद्देश्य एक विकेंद्रीकृत मुद्रा होना था, जो बिना सरकारी हस्तक्षेप के कंप्यूटर कोड द्वारा संचालित हो।
  • विफलता के कारण: बिटकॉइन की कीमत में बहुत उतार-चढ़ाव होता है। नतीजतन, यह लेन-देन का एक व्यवहार्य माध्यम या मूल्य संचय का साधन नहीं बन पाया।

स्टेबलकॉइन उपयोगिता और भारत की स्थिति:

  • भारत में उच्च मांग: भारत में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक स्टेबलकॉइन धारक हैं, जिनकी अनुमानित संख्या 314 मिलियन है, बावजूद इसके कि RBI इन्हें कानूनी समर्थन/सहयोग प्रदान नहीं करता है।
  • प्राथमिक उपयोग (प्रेषण): स्टेबलकॉइन प्रेषण के लिए लोकप्रिय हैं क्योंकि वे पारंपरिक बैंकिंग से जुड़ी उच्च लेनदेन लागत की समस्या का समाधान करते हैं।
    • भारत में 1,000 डॉलर भेजने वाला व्यक्ति लगभग पूरी राशि डिजिटल वॉलेट में भेज सकता है, जिसकी लागत अक्सर 1 डॉलर से भी कम होती है, जबकि बैंकों द्वारा इसके लिए अधिक शुल्क आरोपित किया जाता है।
  • दक्षता: स्थानान्तरण तत्काल,सस्ता और बैंक अवकाश के बिना 24/7 उपलब्ध है।

स्टेबलकॉइन से जुड़े जोखिम-टेरायूएसडी केस स्टडी (TerraUSD Case Study):

  • टेरायूएसडी क्रैश: एल्गोरिदम पर आधारित क्रिप्टोकरेंसी टेरायूएसडी स्टेबलकॉइन अपने अस्थिर डिज़ाइन के कारण क्रैश(विफल) हो गया।
    • बड़े पैमाने पर बिक्री के कारण इसकी कीमत में गिरावट आई, एल्गोरिदम फेल हो गया, जिससे “डेथ स्पाइरल” की स्थिति पैदा हो गई और अंततः इसकी कीमत शून्य हो गई, जिससे 60 बिलियन डॉलर का निवेश बर्बाद हो गया।
    • यह केस स्टडी यह दर्शाती है कि निजी करेंसी विफल हो सकती है और इसे जारी करने वाले पक्ष भी भगोड़ा साबित हो सकते हैं।
  • अमेरिकी विनियमन: अमेरिकी सरकार ने स्टेबलकॉइन को विनियमित करने के लिए जीनियस अधिनियम (GENIUS-Guiding and Establishing National Innovation for US Stablecoins) पेश किया है।

भारत की सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी(CBDC) के बारे में:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) जोखिम के कारण निजी क्रिप्टो का विरोध करता है और अपनी स्वयं की डिजिटल मुद्रा, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) पेश कर रहा है, जिसे ई-रुपी भी कहा जाता है।
  • सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) भारत सरकार की संप्रभु गारंटी द्वारा समर्थित है और कभी विफल नहीं हो सकता। इसका उद्देश्य एक सुरक्षित, आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विकल्प प्रदान करना है।

स्टेबलकॉइन और सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) के बीच अंतर:

  • जारीकर्ता: स्टेबलकॉइन निजी कंपनियों द्वारा जारी किए जाते हैं, जबकि ई-रुपी जैसे CBDC RBI द्वारा जारी किए जाते हैं।
  • समर्थन:स्टेबलकॉइन आमतौर पर USD से जुड़े होते हैं, जबकि CBDC को RBI की सरकारी गारंटी प्राप्त होती है।
  • वैध मुद्रा: स्टेबलकॉइन आधिकारिक वैध मुद्रा नहीं हैं, लेकिन सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी को वैध मुद्रा के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • आर्किटेक्चर: स्टेबलकॉइन विकेंद्रीकृत प्रणालियों पर चलते हैं, जबकि CBDC एक केंद्रीकृत ढाँचे के तहत कार्य करते हैं।
  • प्राथमिक उपयोग: स्टेबलकॉइन मुख्य रूप से वैश्विक प्रेषण के लिए हैं, जबकि CBDC घरेलू भुगतान के लिए निर्मित किए गए हैं।

आगे की राह:

  • कानून: भारत को स्टेबलकॉइन को विनियमित करने वाला कानून बनाना चाहिए, तथा उनकी कानूनी स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए।
  • उपभोक्ता संरक्षण: यदि कोई स्टेबलकॉइन जारी करने वाली कंपनी विफल हो जाती है तो निवेशक/ग्राहक के धन का क्या होगा, इसके लिए नियमों की आवश्यकता है।
  • लाइसेंसिंग और ऑडिट: भारतीय रिज़र्व बैंक को उन कंपनियों को लाइसेंस देना चाहिए जो स्टेबलकॉइन जारी करती हैं और नियमित रूप से उनके खातों का ऑडिट करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनके पास पर्याप्त अमेरिकी डॉलर भंडार है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय रिज़र्व बैंक की सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) की तुलना निजी तौर पर जारी स्टेबलकॉइन से कीजिए। भारत में वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल मुद्राओं को विनियमित करने हेतु क्या उपाय अपनाए जाने चाहिए?

(10 अंक, 150 शब्द)

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