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राज्यों के लिए राजकोषीय संघवाद की स्थिति एवं वित्तीय स्वायत्तता

Lokesh Pal October 22, 2025 05:30 61 0

सन्दर्भ:

वर्ष 2017 में लागू किया गया वस्तु एवं सेवा कर (GST) – जिसे “एक राष्ट्र, एक कर” कहा गया – भारत का सबसे बड़ा कर सुधार था, लेकिन इसने राजस्व हानि और राजकोषीय स्वायत्तता को लेकर केंद्र तथा राज्यों के बीच तनावों में वृद्धि की।

विद्यमान समस्याएँ

  • क्षतिपूर्ति तंत्र की वापसी: केंद्र ने राज्यों को पाँच वर्षों (2017-2022) तक क्षतिपूर्ति की गारंटी दी थी, यदि उनकी राजस्व वृद्धि 14% से कम हो जाती है, जिसका वित्तपोषण विलासिता संबंधी वस्तुओं पर लगाए गए GST क्षतिपूर्ति उपकर द्वारा किया जाएगा।
    • अब जबकि क्षतिपूर्ति समाप्त हो गई है, राज्यों का कहना है कि उन्हें अभी भी राजस्व की हानि हो रही है तथा वे इसे एक महत्त्वपूर्ण वित्तीय सहायता की हानि के रूप में देखते हैं।
  • राजकोषीय स्वायत्तता की हानि: राज्यों का तर्क है कि वस्तु एवं सेवा कर ने कर दरों में परिवर्तन करने के उनके अधिकार को सीमित कर दिया है, जिससे राजकोषीय लचीलापन सीमित हो गया है।
  • GST परिषद की गतिशीलता: यद्यपि राज्यों के पास दो-तिहाई मतदान हिस्सेदारी है, लेकिन 75% बहुमत और केंद्र की मंजूरी की आवश्यकता अक्सर राज्यों के प्रभाव को प्रतिबंधित करती है, जिससे उनके पास निर्णय लेने की शक्ति सीमित हो जाती है।
  • अर्द्ध-संघीय राजकोषीय संरचना: केंद्र उच्च राजस्व वाले विषयों (निगम कर, आयकर, रक्षा, विदेशी मामले) को नियंत्रित करता है, जबकि राज्य उच्च व्यय वाले क्षेत्रों (स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस) का प्रबंधन करते हैं।
    • इससे निरंतर राजकोषीय निर्भरता उत्पन्न होती है, जहाँ राज्यों को अधिकांश आवश्यक सेवाओं के लिए उत्तरदायी होने के बावजूद केंद्रीय हस्तांतरण पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है।
  • विभाज्य पूल से बहिष्करण: उपकर और अधिभार से प्राप्त राजस्व पूरी तरह से केंद्र द्वारा रखा जाता है, भले ही वित्त आयोग निष्पक्ष वितरण सुनिश्चित करना चाहता है।
  • राजकोषीय विषमता: इन शुल्कों में बार-बार वृद्धि से केंद्र के राजस्व में वृद्धि होती है, जबकि राज्य के कोष में कमी आती है।
    • बिहार जैसे कुछ राज्य 70% से अधिक केन्द्र पर निर्भर हैं, जिससे राजकोषीय विषमता और भी गहरी हो गई है।

आगे की राह

  • राज्य राजस्व में वृद्धि: राज्यों को केंद्रीय करों का बड़ा हिस्सा प्राप्त होना चाहिए तथा कर दरें निर्धारित करने और समायोजित करने की सीमित शक्ति पुनः प्राप्त होनी चाहिए।
  • व्यक्तिगत आयकर हिस्सेदारी में वृद्धि: राजकोषीय आत्मनिर्भरता में सुधार के लिए व्यक्तिगत आयकर राजस्व का एक बड़ा हिस्सा राज्यों को मिलना चाहिए।
  • कनाडा मॉडल अपनाएँ: कनाडा में, प्रांत 54% राजस्व एकत्र करते हैं जबकि केंद्र 46% राजस्व एकत्र करता है, जो उनके उच्च व्यय उत्तरदायित्वों को दर्शाता है। भारत राजस्व और व्यय में संतुलन के लिए इसका अनुकरण कर सकता है।
  • उपकर और अधिभार के उपयोग को सीमित करना: उपकर और अधिभार राजस्व का पारदर्शी तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए तथा अत्यधिक केंद्रीय लाभ को रोकने के लिए इसे विभाज्य पूल में शामिल किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत के राजकोषीय संघवाद को बनाए रखने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (GST) के अंतर्गत केंद्र-राज्य राजस्व शक्तियों को पुनर्संतुलित करना आवश्यक है। अधिक वित्तीय स्वायत्तता और न्यायसंगत कर विभाजन के माध्यम से राज्यों को सशक्त बनाना सहकारी संघवाद को सुदृढ़ करने की कुंजी है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: चर्चा कीजिए कि केंद्र और राज्यों के बीच बढ़ता राजकोषीय असंतुलन भारत में सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद के सिद्धांतों को किस प्रकार कमजोर कर रहा है। राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता बढ़ाने के उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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