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किशोरावस्था में मोटापे से निपटने की रणनीति

Lokesh Pal May 20, 2025 05:15 5 0

संदर्भ:

भारत में किशोरावस्था में बढ़ता मोटापा एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है, जिससे न्यायपालिका, मंत्रालयों और सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनो की चिंता बढ़ गई है। खाद्य वातावरण और लेबलिंग सुधारों पर हाल ही में दिया गया ध्यान इस बढ़ते पोषण संकट से तत्काल सुलझाने की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

बढ़ती चिंता और नीतिगत प्रतिक्रिया

  • पोषण पखवाड़ा की प्रमुख बातें: 7वें पोषण पखवाड़ा के दौरान किशोरावस्था में मोटापे की समस्या को प्रारंभिक बाल्यकालीन पोषण के साथ समान रूप से प्रमुख विषय के रूप में रेखांकित किया गया।
  • नीतिगत सिफारिशें:लेट्स फिक्स अवर फूडसमूह ने किशोरों के लिए बेहतर खाद्य वातावरण सुनिश्चित करने हेतु नीतिगत सुझाव जारी किए है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप: सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को तीन महीने के भीतर पारदर्शी खाद्य लेबलिंग लागू करने का निर्देश दिया है।
  • विद्यालय स्तर पर निगरानी: केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (WCD) और एनसीईआरटी(NCERT) ने विद्यालय को भोजन में चीनी और नमक की मात्रा पर निगरानी हेतु दिशा-निर्देश जारी किए है।

भारत में पोषण का विरोधाभास

  • कुपोषण का दोहरा बोझ: भारत को पोषण से जुड़ी दोहरी समस्या का सामना करना पड़ रहा है: एक ओर लगातार बनी हुई कुपोषण की समस्या है, तो दूसरी ओर बढ़ता मोटापा तथा गैर-संचारी रोग तेजी से बढ़ रहे हैं।
  • वैश्विक मोटापा रैंकिंग: विश्व मोटापा एटलस 2024 के अनुसार, भारत उन देशों में शामिल है जहाँ बाल्यावस्था मोटापे में सबसे तेज़ वृद्धि देखी जा रही है।
  • राष्ट्रीय सर्वेक्षण निष्कर्ष: व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण से पता चलता है कि विभिन्न राज्यों में किशोरों में मोटापे की दर 5% से 15% के बीच है।

किशोरों और अस्वस्थ खाद्य वातावरण

  • किशोर की संवेदनशीलता: किशोर खाद्य विकल्पों में संवेदनशील होते हैं, लेकिन स्कूलों, साथियों और मीडिया द्वारा प्रभावित होकर वे इन खाद्य विकल्पों को चुनने में असमर्थ होते हैं।
  • जंक फ़ूड का प्रचलन: अत्यधिक प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों, मीठे पेय और नमकीन स्नैक्स का प्रचलन इस संकट में योगदान दे रहा है।
  • खराब पोषण का व्यापक प्रभाव: खराब पोषण केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि शिक्षा, मानसिक स्थिति और उत्पादकता पर भी नकारात्मक असर डालता है।
  • किशोरों को सशक्त बनाना: युवाओं को सशक्त बनाना और उनके अधिकारों को प्राथमिकता देना स्वस्थ और समान खाद्य प्रणालियों बनाने में मदद कर सकता है।

कमज़ोर विनियमन और विपणन से संबद्ध धमकियाँ

  • विनियामक अंतराल: वर्तमान खाद्य विनियम अपर्याप्त हैं, जिससे बच्चों को जंक फूड का आक्रामक विपणन करने की अनुमति मिलती है।
  • मजबूत उपायों की आवश्यकता: पोषण संबंधी जानकारी वाले लेबल को पैकेजिंग के सामने अनिवार्य करना, विज्ञापनों पर नियंत्रण लगाना और एचएफएसएस(HFSS) खाद्य पदार्थों पर स्वास्थ्य कर लागू करना जरूरी हो गया है।
  • सस्ती और स्वस्थ विकल्प: नीतियाँ पौष्टिक खाद्य पदार्थों को सस्ता और आकर्षक बनाएं, इसके लिए वित्तीय प्रोत्साहन और सब्सिडी का उपयोग किया जाए।

विद्यालयों की भूमिका और खाद्य साक्षरता

  • विद्यालयों की भूमिका: विद्यालय पोषण शिक्षा प्रदान कर सकते हैं और शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • खाद्य साक्षरता का विकास: किशोरों में खाद्य साक्षरता विकसित करने की आवश्यकता है ताकि वे:
    •  स्वस्थ और अस्वस्थ खाद्य पदार्थों में अंतर कर सकें
    •  लेबल और घटक सामग्री को समझें
    •  स्थानीय रूप से उगाए गए विविध आहार को चुन सकें

समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता

  • प्रशासनिक विखंडन: पोषण से संबंधित कार्य महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, उद्योग आदि जैसे विभिन्न मंत्रालयों में प्रसारित हैं।
  • समन्वय की आवश्यकता: प्रयासों का विखंडन उनके प्रभाव को कम करता है; मंत्रालयों के बीच आपसी समन्वय अत्यंत आवश्यक है।
  • मौजूदा संरचना: पोषण अभियान जैसे कार्यक्रम एक सहयोगात्मक संरचना प्रदान करते हैं, लेकिन अब भी एकीकृत और समन्वित कार्रवाई की कमी है।

निष्कर्ष

किशोरों में मोटापे की समस्या से निपटना केवल जागरूकता फैलाने से संभव नहीं है — इसके लिए ठोस नीतिगत हस्तक्षेप, युवाओं का सशक्तिकरण और बेहतर खाद्य वातावरण की आवश्यकता है। एक स्वस्थ भारत तभी बन सकता है जब हम पोषण, शिक्षा और शासन को समग्र दृष्टिकोण के साथ जोड़ें।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. भारत एक पोषण विरोधाभास का सामना कर रहा है, जहाँ कुपोषण और मोटापा विशेष रूप से किशोरों में एक साथ मौजूद हैं। इस चुनौती के बहुआयामी पहलुओं की जांच करें और एक व्यापक नीति ढाँचा प्रस्तावित करें, जिसमें विनियामक उपाय, शैक्षिक पहल और अंतर-मंत्रालयी समन्वय शामिल हों, ताकि इस बढ़ते संकट से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।

(15 अंक, 250 शब्द)

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