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ब्रिक्स द्वारा सुदृढ़ वैश्विक दक्षिण और पश्चिम पर निर्भरता में कमी का संकेत

Lokesh Pal July 09, 2025 05:00 10 0

संदर्भ:

ब्रिक्स एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा है, जो पश्चिमी देशों पर निर्भरता कम करने के लिए वैश्विक दक्षिण के मजबूत प्रयासों का संकेत देता है। यह 6-7 जुलाई, 2025 को ब्राजील द्वारा आयोजित रियो डी जेनेरियो शिखर सम्मेलन में स्पष्ट हुआ, जहाँ ब्रिक्स नेताओं ने रियो घोषणा-2025 जारी की, जो समूह की विकासशील यात्रा में एक महत्त्वाकांक्षी उपलब्धि को चिह्नित करता है।

ब्रिक्स का मुख्य दृष्टिकोण

  • पुरानी संस्थाएँ: ब्रिक्स रियो घोषणापत्र-2025 के मूल में यह कहा गया है, कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व बैंक और आईएमएफ जैसी वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ वर्तमान में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करती हैं।
  • सुधार का आह्वान: ब्रिक्स नेता ऐसे सुधारों का समर्थन करते हैं, जो विकासशील देशों को वैश्विक मामलों में अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान करें।
  • विघटन की अपेक्षा आधुनिकीकरण: इसका उद्देश्य मौजूदा वैश्विक व्यवस्था को विघटित करना नहीं है, बल्कि इसे वर्तमान बहुध्रुवीय वास्तविकता के साथ संरेखित करने के लिए आधुनिक बनाना है, जहाँ विभिन्न महाशक्तियाँ मौजूद हैं।
  • भारत का समर्थन: भारत लगातार इस दृष्टिकोण का समर्थन करती है, जैसा कि चीन सहित अन्य ब्रिक्स समूह राष्ट्र भी करते हैं, बावजूद इसके कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है।

प्रभाव और आर्थिक शक्ति का विस्तार

  • प्रतिनिधित्व: हाल ही में विस्तार से पूर्व भी, ब्रिक्स के सदस्य देश विश्व की 40% से अधिक जनसंख्या तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के एक महत्त्वपूर्ण भाग का प्रतिनिधित्व करते थे।
  • 2025 में नए सदस्य: नवीनतम विस्तार, जिसमें ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं, ने ब्रिक्स को एक मजबूत आर्थिक गठबंधन के रूप में सुदृढ़ किया है।
    • रणनीतिक संसाधन पहुँच: तेल की बड़ी कंपनियों और खनिज समृद्ध देशों, विशेष रूप से ईरान तथा संयुक्त अरब अमीरात को शामिल करने से, गैस और तेल सहित महत्त्वपूर्ण ऊर्जा बाजारों और आपूर्ति शृंखलाओं पर समूह की पहुँच में वृद्धि हुई है।
  • आर्थिक संस्थाओं का दावा: यह विस्तार स्पष्ट रूप से इंगित करता है, कि वैश्विक दक्षिण वैश्विक आर्थिक शक्तियों पर केवल प्रतिक्रिया करने की बजाय उन्हें सक्रिय रूप से आकार देने का उद्देश्य रखता है।

रियो घोषणा की मुख्य प्राथमिकताएँ

  • समावेशी विकास: यह सुनिश्चित करना, कि विकास से सभी को लाभ हो और कोई भी पीछे न छूटे।
  • सतत विकास: दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों की दिशा में कार्य करना।
  • डिजिटल सहयोग: महिलाओं के डिजिटल समावेशन सहित डिजिटल क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देना।
  • जलवायु कार्रवाई: ब्रिक्स नेता जलवायु कार्रवाई का समर्थन करते हैं, जो विकास को बाधित करने की बजाय उसका समर्थन करती है।
    • एक महत्त्वपूर्ण विकास ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फंड (TFFF) का समर्थन है, जिसे उष्णकटिबंधीय वनों की सुरक्षा के लिए निरंतर वित्तपोषण सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • यह पहल नवंबर में COP30 के मेजबान के रूप में ब्राजील की भूमिका के अनुरूप है।
  • आधुनिक चुनौतियों से निपटना: घोषणापत्र में जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा और वैश्विक संघर्ष जैसी समकालीन चुनौतियों का समाधान किया गया है।
    • इसमें आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता, महत्त्वपूर्ण खनिजों और हरित प्रौद्योगिकी पर सहयोग को भी महत्त्वपूर्ण बताया गया है।

पश्चिमी निर्भरता में कमी हेतु आवश्यक रणनीतियाँ

  • स्थानीय मुद्राओं में व्यापार: अमेरिकी डॉलर, पाउंड स्टर्लिंग और यूरो जैसी मुद्राओं पर निर्भरता कम करने के लिए ब्रिक्स सदस्य देशों की स्थानीय मुद्राओं में व्यापार प्रक्रिया को बढ़ावा देना।
  • एकीकृत भुगतान प्रणाली: स्विफ्ट जैसे डॉलर-प्रधान नेटवर्क से स्वतंत्र, एक तटस्थ, एकीकृत भुगतान प्रणाली विकसित करना।
  • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) को सुदृढ़ बनाना: NDB को सदस्य देशों के लिए वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोत के रूप में स्थापित करना तथा समान विचारधारा वाले अन्य देशों को इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक पर निर्भरता कम हो सके।
  • आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (CRA): भुगतान संतुलन संकट जैसी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे सदस्य देशों के लिए वित्तीय सुरक्षा जाल प्रदान करना।
  • पश्चिमी प्रतिबंधों से प्रतिरक्षा: सदस्य देशों को प्रतिबंधों के प्रभाव से बचाने के लिए वैकल्पिक वित्तीय तंत्र और विविध व्यापार संबंधों का निर्माण करना, जैसा रूस से तेल आयात पर दबाव के प्रति भारत की प्रतिक्रिया में देखा गया है।

भारत की निर्णायक भूमिका और रणनीतिक संतुलन

  • वैश्विक दक्षिण की भूमिका: ब्रिक्स भारत को संयुक्त राष्ट्र सुधार, अधिक न्यायसंगत वैश्विक शासन और विकासशील देशों के लिए वित्तीय तंत्र की माँग को आगे बढ़ाने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
    • G20 (2023-शिखर सम्मेलन) में अफ्रीकी संघ को शामिल करने का समर्थन करने में भारत का नेतृत्व और आतंकवाद-निरोध पर मजबूत ब्रिक्स वक्तव्य (जैसे- पहलगाम हमले की निंदा) सुनिश्चित करने में इसकी भूमिका इस बात को उजागर करती है।
    • भारत को आशा है, कि वह अपने नेतृत्व का उपयोग अफ्रीकी बुनियादी ढाँचे और डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं जैसी विकासोन्मुखी परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए करेगा।
  • पश्चिम के साथ संबंध: भारत अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान सहित पश्चिमी देशों के साथ भी मजबूत संबंध बनाए रखता है, तथा व्यापार, रक्षा और प्रौद्योगिकी साझेदारी को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण के लिए, 2024 में अकेले अमेरिका के साथ भारत का व्यापार लगभग $130 बिलियन था।
    • ये साझेदारियाँ सेमीकंडक्टर, स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटल बुनियादी ढाँचे में भारत की महत्त्वाकांक्षाओं का समर्थन करती हैं।
  • चीन के साथ जटिल संबंध: ब्रिक्स सदस्य होने के बावजूद, भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं।
    • सीमा विवाद (जैसे- 2020 में गलवान घाटी संघर्ष), पाकिस्तान के लिए चीन का समर्थन और स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्सबंदरगाह रणनीति अविश्वास को बढ़ावा देती है।
    • रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद, चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा और चीन के महत्त्वपूर्ण खनिजों पर निर्भरता बनी हुई है।
    • रियो शिखर सम्मेलन में शी जिनपिंग की अनुपस्थिति तथा ईरान और सऊदी अरब जैसे नए सदस्यों के अलग-अलग हित, समूह के भीतर आंतरिक मतभेदों को दर्शाते हैं।
  • भारत का सामरिक संतुलन: भारत की रणनीति में राष्ट्रीय हितों को अधिकतम करने के लिए दोनों शक्ति समूहों – चीन-रूस और पश्चिम – के साथ सक्रिय संबंध शामिल है।
    • इसमें पश्चिमी प्रभुत्व को सीमित करने के लिए ब्रिक्स का उपयोग तथा विकास के लिए पश्चिमी प्रौद्योगिकी और बाजारों का लाभ उठाना शामिल है।

भविष्य का दृष्टिकोण और 2026 में भारत की अध्यक्षता

  • रियो शिखर सम्मेलन ने ब्रिक्स के लिए वैश्विक विकास में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का मंच तैयार किया।
  • विस्तारित वित्तपोषण, डिजिटल सहयोग और वैश्विक दक्षिण नेतृत्व की योजनाएँ इस समूह की महत्त्वाकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करती हैं।
  • हालाँकि, चुनौतियाँ बनी हुई हैं – तकनीकी क्षमताएँ, आंतरिक सामंजस्य और भू-राजनीतिक तनाव प्रगति में बाधा बन सकते हैं।

निष्कर्ष

2026 में भारत की आगामी ब्रिक्स अध्यक्षता महत्त्वपूर्ण होगी। इसकी कूटनीति को केवल वैचारिक बयानों पर नहीं, बल्कि ठोस परिणाम देने पर केंद्रित होना चाहिए। मुख्य चुनौती यह होगी, कि बहुध्रुवीय दृष्टिकोण को पश्चिम के साथ स्थापित संबंधों के साथ संतुलित किया जाए, साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि ब्रिक्स एक और ध्रुवीकरणकारी शक्ति बनने की बजाय एक अधिक न्यायसंगत विश्व व्यवस्था के लिए एक सेतु बने।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

ब्रिक्स में भारत की भूमिका दक्षिण-दक्षिण एकजुटता और पश्चिम के साथ रणनीतिक संबंधों के बीच संतुलन को दर्शाती है। ब्रिक्स-2025 के घटनाक्रमों के आलोक में इस द्वंद्व का परीक्षण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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