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आत्महत्या को सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखने की आवश्यकता

Lokesh Pal September 12, 2024 05:45 40 0

संदर्भ :

प्रति वर्ष 10 सितंबर को ‘विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस’ के अवसर पर आत्महत्या को एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष लगभग 7,00,000 आत्महत्याएँ होती हैं, जिसमें भारत पहले स्थान पर है | यह दिन व्यापक रोकथाम रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है, जो मानसिक स्वास्थ्य और व्यापक सामाजिक कारकों दोनों को संबोधित करती हैं।

एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता

  • समस्या की जटिलता : आत्महत्या एक जटिल स्वास्थ्य समस्या है, जो अक्सर मुख्य रूप से चिंता और अवसाद से जुड़ी होती है। हालाँकि, इसे केवल मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखना अपर्याप्त है, जो पश्चिमी ज्ञान पर आधारित एक विकसित देश के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
  • व्यापक जोखिम कारक : भारत सहित विकासशील देशों में आत्महत्या के जोखिम कारकों में मानसिक स्वास्थ्य विकारों से परे कई सामाजिक मुद्दे शामिल हैं। आर्थिक समस्या, खराब पारिवारिक संबंध, घरेलू हिंसा, बचपन का आघात, नकारात्मक सहकर्मी दबाव, मादक द्रव्यों का सेवन तथा स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच की कमी आदि आत्महत्या के जोखिम में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता हैं। इस प्रकार, आत्महत्या को न केवल एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में पहचाना जाना चाहिए, बल्कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में भी पहचाना जाना चाहिए |

क्षेत्र विस्तार 

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम’ के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य आत्महत्या की रोकथाम का एक महत्त्वपूर्ण पहलू बना हुआ है। गरीबी, सामाजिक असमानता, जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता और अंतर-पीढ़ीगत समस्याएँ जैसे कारक आत्महत्या के जोखिम में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

 

आत्महत्या की दर और योगदान देने वाले कारक संबंधी तथ्य

लैंगिक असमानताएँ

  • वैश्विक स्तर पर पुरुषों में आत्महत्या की दर महिलाओं की तुलना में अधिक है। हालाँकि, भारत में महिलाओं में आत्महत्या की दर वैश्विक औसत से दुगुनी होने का अनुमान है, जो 15-39 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं की मृत्यु का प्रमुख कारण है।
  • युवा महिलाओं में आत्महत्या अक्सर अत्यधिक सामाजिक दबाव, आवश्यकता तथा समर्थन का अभाव आदि को दर्शाती है।

व्याप्त चुनौतियाँ

  • महिलाओं को अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें लैंगिक हिंसा, हीनता की भावना से संबंधित शरीर की छवि के मुद्दे और शैक्षणिक या करियर दबाव, जैसे कि निश्चित समय सीमा तक शादी करने की सामाजिक अपेक्षाएँ शामिल हैं। 
  • ये कारक महिलाओं में निराशा की भावना को बढ़ावा देते हैं।
  • जबकि पुरुषों को भी काफी दबाव का सामना करना पड़ता है, किंतु यह अलग-अलग होता है, जो सामान्यतः प्रारंभिक करियर की स्थापना और रोजगार की स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करता है। यह दबाव दोनों लिंगों के लिए एक सहायक वातावरण की कमी को उजागर करता है।

उच्च जोखिम वाले समूह

  • किसानों और विद्यार्थियों में आत्महत्या की दर उल्लेखनीय रूप से अधिक है, लेकिन आत्महत्या की अधिकांश मौतें 15-39 आयु वर्ग में होती हैं, जिसमें विद्यार्थी, श्रमिक, नौकरीपेशा और गृहिणियाँ शामिल हैं।
  • विद्यार्थियों और किसानों के अलावा अन्य समूहों में आत्महत्या संबंधी चर्चा और बहस का अभाव है, जो आबादी के व्यापक वर्गों को संबोधित करने में अंतराल को दर्शाता है।

आँकड़ों का संग्रहण 

  • आत्महत्या के बोझ को सही मायने में समझने और प्रभावी रोकथाम रणनीतियों को विकसित करने के लिए हमें बेहतर डेटा संग्रह की आवश्यकता है।
  • भारत में आत्महत्या से होने वाली मौतों के बारे में हमारी समझ ज्यादातर पुलिस द्वारा एकत्र किए गए और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा रिपोर्ट किए गए आँकड़ों से आती है। चूँकि आत्महत्या से होने वाली मौतों को अप्राकृतिक मौतें माना जाता है, इसलिए यह डेटा मानकीकृत प्रारूप में नहीं है, जिससे संकलन और शोध मुश्किल हो जाता है।
  • उपयोग किए जाने वाले प्रारूप पर पुलिस और स्वास्थ्य विभागों के बीच प्रभावी सहयोग के माध्यम से डेटा में सुधार किया जा सकता है। इससे आबादी में आत्महत्या के आयामों, निर्धारकों और गतिशीलता के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी। इस तरह के सुधार प्रभावी रोकथाम प्रयासों का मार्गदर्शन कर सकते हैं और आगे और लोगों की जान बचा सकते हैं।
  • बेहतर डेटा संग्रह के अलावा, उपलब्ध डेटा की उसकी सीमाओं के भीतर उचित व्याख्या करना भी महत्त्वपूर्ण है।

मीडिया प्रतिनिधित्व

  • मीडिया रिपोर्ट अक्सर ऐसी घटनाओं को उजागर करती हैं, जो व्यापक अनुमान के बजाय चेतावनी के रूप में काम करती हैं। इससे व्यापक मुद्दों की सीमित समझ बनती है।

जोखिम कारकों का विश्लेषण

  • एनसीआरबी रिपोर्ट व्यवसाय के आधार पर जोखिम कारकों की प्रत्यक्ष समझ प्रदान नहीं करती है। उदाहरण के लिए, यह नहीं बताया जाता है कि विद्यार्थी परीक्षा के दबाव, तनाव, रिश्ते की समस्याओं या अन्य कारकों के कारण आत्महत्या कर रहे हैं, लेकिन आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की उम्र के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है। 
  • बेहतर शोध और लक्षित हस्तक्षेप के लिए इन कारणों को समझना महत्त्वपूर्ण है।

डेटा संग्रहण में निवेश 

  • प्रासंगिक मात्रात्मक और गुणात्मक डेटा एकत्र करने के लिए निवेश की आवश्यकता है।
  • इससे हमें प्रवृत्तियों और जोखिम कारकों की पहचान करने, विभिन्न हस्तक्षेपों के प्रभाव का मूल्यांकन करने तथा संसाधनों को वहाँ आवंटित करने में मदद मिलेगी जहाँ उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।

सहायता प्रणाली की भूमिका

  • आत्महत्या की रोकथाम में सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक संबंधित व्यक्ति से की गई वार्ता है। आत्महत्या के बारे में खुलकर बात करने से इस विषय से जुड़े कलंक को दूर करने में मदद मिल सकती है, जिससे व्यक्तियों के लिए मदद मांगना आसान हो जाता है।

पारिवारिक सहायता 

  • यह परिवारों में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, जहाँ स्पष्ट और ईमानदार संचार जीवनरक्षक हो सकता है। भावनात्मक सहायता प्रदान करने, चेतावनी के संकेतों को पहचानने और प्रियजनों को मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करने में परिवार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक सहायक पारिवारिक वातावरण बनाना जहाँ हर कोई अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में सुरक्षित महसूस करता है, आत्महत्या की रोकथाम पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

व्यापक रोकथाम रणनीतियाँ

  • प्रशिक्षण और संसाधन : आत्महत्या को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए शिक्षकों, नियोक्ताओं और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं जैसे मदद करने वाले पदों पर बैठे लोगों को संकट प्रबंधन के लिए बेहतर प्रशिक्षण और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • सामुदायिक संबंधों को मजबूत करना : सामुदायिक संबंधों को मजबूत करना भी आवश्यक है, क्योंकि इससे उन व्यक्तियों की पहचान करने और उनका समर्थन करने में मदद मिलती है जो कमज़ोर हो सकते हैं। सामाजिक अलगाव एक महत्त्वपूर्ण जोखिम कारक है तथा एक जुड़े हुए और सहायक समुदाय को बढ़ावा देना एक महत्त्वपूर्ण अंतर ला सकता है।

निष्कर्ष 

सटीक और व्यापक आँकड़ों के बिना हम आत्महत्या और इसकी रोकथाम संबंधी लड़ाई को अंधकार में ही लड़ते रहेंगे। प्रभावी रणनीतियों के लिए मज़बूत सामुदायिक सहभागिता, लक्षित शोध और डेटा संग्रह में निवेश की आवश्यकता है, जिससे समस्या की वास्तविक सीमा को उजागर कर प्रभावशाली हस्तक्षेप को सुनिश्चित किया जा सके।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

“स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक कल्याण में महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, आत्महत्या आज भी एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है।” इस कथन के आलोक में भारत में आत्महत्या को सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखने की आवश्यकता की जाँच कीजिए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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