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सुप्रीम कोर्ट: कांवड़ यात्रा मार्गों पर सांप्रदायिक भेदभाव भरे कानूनों, पुलिस बल प्रयोग पर रोक

Lokesh Pal July 23, 2024 05:00 74 0

संदर्भ:

उच्चतम न्यायालय ने भाजपा शासित उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के उस विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि पुलिस इस प्रकार के सांप्रदायिक भेदभाव भरे कानूनों को लागू नहीं करा सकती है और हालांकि वह केवल उनसे हिन्दू धार्मिक कांवड़ यात्रियों की आस्था के चलते खाद्य सामग्री प्रदर्शित करने के लिए कह सकती है।

 

प्रारम्भिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 2,संविधान की प्रस्तावना आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: गोपनीयता का अधिकार, भारतीय गणराज्य का धर्मनिरपेक्ष चरित्र, अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21, मानवाधिकार आदि।

पृष्ठभूमि :

  • प्रतिष्ठानों का नाम प्रदर्शित करने के निर्देश: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्राधिकारियों ने भोजनालयों और खाद्य दुकानों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश जारी किए, जिसके कारण विवाद प्रारभ हो गया।
  • उद्देश्य: अधिकारी यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कांवड़ियों (हिन्दू शिवभक्त या तीर्थयात्रियों) को उनकी पसंद के अनुसार शाकाहारी भोजन परोसा जाए (और) स्वच्छता मानकों को बनाए रखा जाए।
  • याचिका दायर: सर्वोच्च न्यायालय में, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सांप्रदायिक भेदभाव भरे कानूनों को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई की गयी, जिनमें एनजीओ एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) की एक याचिका भी शामिल थी।
    • दोनों राज्यों में इस कदम को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में दो और याचिकाएं भी दायर की गईं।

इस मुद्दे से जुड़ी नैतिक चिंताएं:

  • अल्पसंख्यकों के विरुद्ध संभावित भेदभाव: ये निर्देश केवल धार्मिक और जातिगत पहचान के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देते हैं, क्योंकि इनमें परोसे जाने वाले खाद्य पदार्थों के प्रदर्शन या यह कथन करने की आवश्यकता नहीं है कि कोई मांसाहारी या गैर-सात्विक भोजन नहीं परोसा जा रहा है, बल्कि केवल व्यक्ति के नाम में स्पष्ट रूप से धार्मिक या जातिगत पहचान का प्रदर्शन करने की आवश्यकता है।
    • तर्क यह है कि यह सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।
  • गोपनीयता का अधिकार: सभी मालिकों को उनके कर्मचारियों के नाम और पते प्रदर्शित करने के लिए बाध्य करना, अधिकारियों के इच्छित उद्देश्य को शायद ही प्राप्त कर सकता है। यह मालिकों के निजता या गोपनीयता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • भारतीय गणराज्य का धर्मनिरपेक्ष चरित्र: ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीति से प्रेरित होकर एक विशेष वर्ग अर्थात मुस्लिम स्वामित्व वाले व्यवसायों को विभिन्न लोगों द्वारा प्रसारित मनगढ़ंत और दुर्भावनापूर्ण सूचनाओं के आधार पर सक्रिय रूप से निशाना बनाया जा रहा है।
    • यदि प्रावधानों के समर्थन के बिना सरकारों के ऐसे निर्देश को लागू करने की अनुमति दी जाती है… तो यह भारत गणराज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का उल्लंघन होगा।
  • पुलिस का दुरुपयोग: यह एक सबसे चिंताजनक स्थिति है कि कानून व्यवस्था की रक्षक कहलाने वाली पुलिस स्वयं ही विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रही थी। उसके द्वारा अल्पसंख्यकों की पहचान कर, उनका बहिष्कार किया जा रहा था।
    • सरकार ने दावा किया कि यह स्वैच्छिक है: संदर्भ उस निर्देश के प्रवर्तन से था जिसे प्राधिकारियों ने “स्वैच्छिक रूप से” पालन करने का निर्देश बताया था।
      • कोई वैधानिक समर्थन नहीं: कोई भी कानून पुलिस को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता। यह निर्देश प्रत्येक फल विक्रेताओं, चाय की दुकानों, भोजनालयों के लिए है…मालिकों और कर्मचारियों के नाम देने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता।
  • अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन: निर्देश भोजनालय मालिकों और खाद्य-विक्रेताओं की व्यावसायिक गतिविधियों पर अनुचित प्रतिबंध लगाते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत किसी भी व्यवसाय, व्यापार या कारोबार को चलाने की उनकी स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं।
    • ये आदेश स्पष्टतः मनमाने, असंगत हैं तथा अनुच्छेद 14 के अंतर्गत दी गयी समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का रुख:

  • भोजन प्रदर्शित करें, नाम नहीं: उच्चतम न्यायालय ने कांवड़ यात्रा के मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के निर्देशों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी, लेकिन कहा कि उन्हें कांवड़ियों को बेचे जा रहे भोजन की प्रकृति प्रदर्शित करनी होगी ताकि भक्तों की सात्विक आस्था बनी रहे।
    • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, “आप किसी रेस्टोरेंट में मेनू के आधार पर जाते हैं, न कि यह देखकर कि कौन परोस रहा है। इस निर्देश का विचार पहचान के आधार पर बहिष्कार है। यह वह भारतीय गणतंत्र नहीं है जिसकी हमने संविधान में कल्पना की थी।”

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