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मामलों के निपटान की दर बढ़ाने में सर्वोच्च न्यायालय की सफलता एक रूपरेखा/खाका तैयार कर सकती है

Lokesh Pal August 23, 2025 05:15 15 0

संदर्भ:

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने लंबित मामलों को कम करने की उल्लेखनीय क्षमता का प्रदर्शन किया है, तथा देश भर में न्यायिक दक्षता के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है।

  • यह उपलब्धि दर्शाती है कि रणनीतिक सुधारों के साथ, सबसे अधिक बोझ से दबी न्यायिक प्रणालियां भी अपने निपटान दरों को बढ़ा सकती हैं और समय पर न्याय के सिद्धांत को लागु कर सकती हैं।

विलंबित न्याय की चुनौती:

  • सर्वोच्च न्यायालय एक “जनता की अदालत” के रूप में: अपने विस्तृत क्षेत्राधिकार के कारण इसे जनता की अदालत के रूप में जाना जाता है तथा यह संवैधानिक मामलों और आम नागरिकों की अपीलों दोनों पर सुनवाई करता है।
  • लंबित मामलों का बैकलॉग: सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष वर्त्तमान में 80,000 से अधिक लंबित मामलों है, जिसके परिणामस्वरूप देरी न्याय के सिद्धांत को कमजोर करती है, क्योंकि “न्याय में देरी न्याय से इनकार के समान है”।
  • विलंब के परिणाम:
    • निर्दोष व्यक्ति वर्षों तक जेल में बंद रहते हैं।
    • संपत्ति विवादों के समाधान से पहले ही अपीलकर्ता की मृत्यु हो जाती है।
    • व्यवसायों का न्यायिक दक्षता और विश्वसनीयता पर विश्वास खत्म हो जाता है।
  • शीघ्र सुनवाई का संवैधानिक अधिदेश: हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि शीघ्र सुनवाई अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का भाग है।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अनूठा दायित्व: वैश्विक स्तर पर अनेक सर्वोच्च न्यायालयों के विपरीत, जो मुख्य रूप से संवैधानिक मामलों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, भारत का सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों की अपीलों पर भी सुनवाई करता है।
    • अनुच्छेद 136 – विशेष अनुमति याचिकाएं (SLP) इसके भारी मुकदमों के बोझ को और बढ़ा देती हैं।

एक उल्लेखनीय बदलाव: नवंबर 2024 – मई 2025

  • नवंबर 2024 और मई 2025 के बीच, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने लंबित मामलों में उल्लेखनीय कमी दर्ज की।
  • लगभग 100 दिनों में पंजीकृत मामलों में लंबित मामलों की संख्या में 4.83% की कमी आई, जिससे कुल संख्या 71,223 से 67,782 हो गई।
    • दोषपूर्ण मामलों को शामिल करते हुए, कमी 2.53% थी।
  • औसत निपटान दर बढ़कर 341 मामले प्रतिदिन हो गई, तथा केस निपटान अनुपात (CCR) अभूतपूर्व 106.60% तक पहुंच गया
    • इसका अर्थ यह है कि 33,639 नये मामले दर्ज किये गये तथा 35,870 मामलों का निपटारा किया गया।
    • यह महत्वपूर्ण सुधार, जो पिछले वर्ष के औसत 96.59% से 9.32% अधिक है, 2022 से नए मामला दाखिल करने में 25% की वृद्धि के बावजूद दर्ज हुआ है।

पंजीकृत मामलों में लंबित मामलों को कम करने का सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण:

  • बैकएंड सुधार:
    • इंजन कक्ष में बदलाव: न्यायालय की रजिस्ट्री, “इंजन कक्ष” जहां मामले दायर किए जाते हैं और उन पर कार्यवाही की जाती है
    • त्वरित सत्यापन: संबंधित सूचीकरण विभाग (धारा 1B) को मामले के सत्यापन की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कार्य के घंटे और कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने का निर्देश दिया गया।
      • इससे बारी-बारी से सत्यापन की आवश्यकता नहीं रह गई तथा प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो गई
      • परिणामस्वरूप, औसत दैनिक सत्यापन 184 से बढ़कर 228 हो गया।
    • विशेषज्ञ परामर्श: न्यायालय ने धारा 1B प्रक्रियाओं का अध्ययन करने और डेटा-संचालित दृष्टिकोण अपनाते हुए सुधार की सिफारिश करने के लिए भारतीय प्रबंधन संस्थान बैंगलोर की एक टीम को नियुक्त किया।
    • स्वचालित आवंटन: सत्यापन के बाद बेंचों को मामलों के स्वचालित आवंटन के लिए एकीकृत मामला प्रबंधन और सूचना प्रणाली (ICMIS) को लागू किया गया, जिससे मानवीय हस्तक्षेप में भ कमी आई और सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में पक्षपात या भ्रष्टाचार समाप्त हो गया।
  • प्रक्रियात्मक सुधार:
    • द्वितीय रजिस्ट्रार न्यायालय: अपूर्ण दस्तावेजीकरण जैसे प्रक्रियागत दोषों के कारण अटके मामलों को शीघ्रता से निपटाने के लिए द्वितीय रजिस्ट्रार न्यायालय को पुनः शुरू किया गया।
    • अनिवार्य पुनः सूचीबद्धता: दो से तीन सप्ताह के भीतर सुनवाई न होने वाले मामलों को पुनः सूचीबद्ध करने के लिए एक नियम स्थापित किया गया, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी मामला प्रणाली में “खो” न जाए और समय पर सुनवाई की संभावना बढ़ जाए।
    • अत्यावश्यक मामलों के लिए ई-मेल: अत्यावश्यक मामलों के लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा मौखिक “उल्लेख” करने की पिछली प्रथा, जिसमें अदालत का बहुमूल्य समय खर्च होता था, को ई-मेल अनुरोधों की प्रणाली द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
      • इससे न्यायिक समय की बचत हुई तथा सभी वादियों के लिए समान अवसर उपलब्ध हुआ।
  • वर्गीकरण और पहचान: न्यायालय ने मामलों को उनकी प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत किया
    • इसमें लगभग 16,000 ऐसे मामलों की पहचान की गई, जिन्हें कभी सूचीबद्ध नहीं किया गया था, तथा 42,206 “विविध नोटिस के बाद” मामलों का एक विशाल बैकलॉग पाया गया (प्रवेश स्तर पर, जिनमें से कुछ एक दशक से अधिक समय से लंबित थे)।
      • इन्हें “आसान समाधान” माना गया, जिसका शीघ्र समाधान किया जा सकता था।
  • विभेदित मामला प्रबंधन की शुरुआत की गई: न्यायालय ने विशेष दिन (मंगलवार और बुधवार) निर्धारित किए, शुरू में तीन दिन और फिर दो दिन, केवल इन पुराने, विविध मामलों की सुनवाई के लिए।
    • अनुसंधान विंग का समर्थन: सर्वोच्च न्यायालय के अनुसंधान एवं योजना केंद्र (अनुसंधान विंग) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
      • 30 सदस्यों की एक समर्पित टीम ने 10,000 से अधिक मामलों का विश्लेषण किया और न्यायाधीशों के लिए संक्षिप्त, तर्कपूर्ण केस ब्रीफ (1-2 पृष्ठ) तैयार किए, जिनमें मुख्य बिंदुओं का सारांश दिया गया।
      • इससे पीठों को ऐसे लगभग 10 पुराने मामलों का निपटारा मात्र 30-45 मिनट में करने में सहायता मिली।
      • इस प्रक्रिया से 1,025 मुख्य मामलों और विविध श्रेणी के 427 संबद्ध मामलों का निपटारा हुआ।
      • पुराने, छोटे और असूचीबद्ध मामलों को नियमित सुनवाई के लिए प्राथमिकता दी गई, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 15 नियमित दिनों में लगभग 500 मुख्य मामलों और 66 संबद्ध मामलों का निपटारा किया गया, जिनमें 376 आपराधिक मामले शामिल थे।
  • मामला वर्गीकरण ढांचा: पिछली असंगठित प्रणाली को एक मजबूत मामला वर्गीकरण ढांचे से प्रतिस्थापित किया गया, जिसमें दायर मामलों को 48 मुख्य श्रेणियों और 182 उप-श्रेणियों में विभाजित किया गया।
    • इससे पैटर्न की पहचान आसान हो जाती है, समान मामलों को कुशलतापूर्वक एक साथ रखा जा सकता है (जैसे, सभी सरकारी विभाग से संबंधित मामले) तथा लक्षित निपटान किया जा सकता है

प्रभावशाली भारतीय न्यायपालिका के निर्माण में सुझाव:

  • प्रक्रिया-उन्मुख न्यायिक सुधार: केवल रिक्तियों को भरने पर ही नहीं बल्कि प्रक्रियाओं और न्यायिक प्रबंधन को सुव्यवस्थित करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए।
  • बार और बेंच सहयोग: सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए वकीलों और न्यायाधीशों के बीच मजबूत सहयोग को बढ़ावा देना।
  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग। SUPACE जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) उपकरणों का उपयोग।
    • SUPACE (न्यायालय की दक्षता में सहायता के लिए सर्वोच्च न्यायालय पोर्टल) न्यायिक प्रणाली में एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित पोर्टल है जिसका उद्देश्य न्यायाधीशों को कानूनी अनुसंधान में सहायता करना है।
    • इसे प्रासंगिक तथ्यों और कानूनों को एकत्रित करके तथा उन्हें व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करके न्यायाधीशों को कानूनी अनुसंधान में सहायता करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
    • SUPACE कोई निर्णय लेने वाला उपकरण नहीं है; बल्कि यह प्रक्रम तैयार करता है और इनपुट प्रदान करता है, तथा न्यायिक विवेक को पूरी तरह से न्यायाधीशों के पास छोड़ देता है।
  • सशक्त नेतृत्व और इच्छाशक्ति: विधिक और न्यायिक क्षेत्र के नेताओं में महत्वाकांक्षी सुधारों को लागू करने का दृढ़ संकल्प होना चाहिए। बार और बेंच के बीच सहयोग सुधारों को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर रहा है।

निष्कर्ष:

  • यद्यपि न्यायिक मंचों पर लंबित मामले एक सामान्य चिंता का विषय हैं, लेकिन इसका कोई रामबाण इलाज नहीं है
  • न्यायिक मंचों को सावधानीपूर्वक अध्ययन और अनुभवजन्य आंकड़ों के उपयोग के माध्यम से अपने समक्ष उपस्थित स्थिति का आकलन करना चाहिए ताकि उचित रणनीति तैयार की जा सके।
  • सर्वोच्च न्यायालय में यही किया गया।
  • अंततः, यह न्यायाधीशों और बार की इच्छा ही है जो महत्वपूर्ण अंतर स्तापित करती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: न्यायिक लंबित मामले भारत की न्याय व्यवस्था को लगातार अवरुद्ध कर रहे हैं। इस लंबित मामले के पीछे का मुख्य कारण क्या हैं, सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में संस्थागत और प्रक्रियात्मक सुधारों के माध्यम से इसका समाधान कैसे किया है?

(10 अंक, 150 शब्द)

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