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उत्तर भारत में पराली जलाने की समस्या से निपटना

Lokesh Pal September 19, 2025 05:00 34 0

संदर्भ:

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रबी की फसल की तैयारी के लिए अपने खेतों में आग लगाने वाले किसानों पर मुकदमा चलाने की संभावना का सुझाव दिया है।

  • दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में वायु प्रदूषण में पराली जलाना एक प्रमुख योगदानकर्ता है, विशेषकर अक्टूबर-नवंबर के दौरान।

प्रणाली विफलता और न्यायिक हस्तक्षेप:

  • सख्त न्यायिक रुख: इससे उत्पन्न प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया है और सुझाव दिया है कि पराली जलाने वाले किसानों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए और उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए।
  • नियामक तंत्र की विफलता: न्यायालय का गुस्सा इस तथ्य से उपजा है कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए स्थापित मौजूदा निकाय अपने कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से निभाने में विफल हो रहे हैं।

पराली जलाने के बारे में:

  • परिभाषा: पराली जलाने से तात्पर्य धान (चावल), जो एक खरीफ फसल है, की कटाई के बाद बचे हुए फसल अवशेषों को आग लगाने की प्रथा से है, ताकि गेहूं (एक रबी फसल) के लिए खेतों को जल्दी से साफ किया जा सके।
  • क्षेत्रीय संकेन्द्रण: यह पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संकेन्द्रित है, जहां मशीनीकृत कटाई के कारण पराली बच जाती है, जिसका प्रबंधन किसानों को महंगा पड़ता है।

किसान पराली क्यों जलाते हैं?

  • लघु बुवाई अवधि: धान की कटाई (अक्टूबर-नवंबर) और गेहूं की बुवाई के बीच केवल 10-20 दिन का अंतर होता है, जिससे किसानों को त्वरित निपटन के तरीके अपनाने पड़ते हैं।
  • मशीनों द्वारा छोड़ा गया अवशेष: कंबाइन हार्वेस्टर धान को ऊपर से काटते हैं, तथा जड़ें और ठूंठ पीछे छोड़ देते हैं, जो गेहूं की बुवाई में बाधा डालते हैं।
  • आर्थिक बाधाएं: हैप्पी सीडर, बेलर और डीकंपोजर जैसे विकल्प कई छोटे किसानों के लिए सुलभ या वहनीय नहीं हैं।
  • आवश्यकता की धारणा: विभिन्न पारिस्थितिक परिणामों के बावजूद, पराली जलाना को त्वरित, सस्ता और सबसे विश्वसनीय समाधान माना जाता है।

पराली जलाने के परिणाम:

  • वायु प्रदूषण: कणीय पदार्थ (PM 2.5, PM 10) और कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन और ब्लैक कार्बन जैसी गैसें उत्सर्जित होती हैं, जिससे सर्दियों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में धुंध और प्रदुषण में बढ़ोत्तरी होती है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: लाखों लोगों को सांस लेने में कठिनाई, अस्थमा, आंखों में जलन और हृदय संबंधी बीमारियां का सामना करना पड़ता हैं।
  • मृदा क्षरण: कार्बनिक पदार्थ, नाइट्रोजन और मृदा सूक्ष्मजीवों को जलाता है, जिससे दीर्घकालिक मृदा उर्वरता और जल धारण क्षमता में कमी आती है।
  • जलवायु प्रभाव: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और क्षेत्रीय तापमान वृद्धि में योगदान देता है।
  • दृश्यता संबंधी खतरे: घने धुएं के कारण उत्तर भारत में सड़क दुर्घटनाएं और उड़ान में बाधा उत्पन्न होती है।

सर्दियों में प्रदूषण बढ़ने के कारण:

  • वायु की दिशा: वायु आमतौर पर पंजाब और हरियाणा से धुएं को राजधानी क्षेत्र की ओर प्रवाहित करती हैं।
  • वायु की गति: वायु की गति बहुत धीमी होती है, जिससे धुआं और प्रदूषण का बिखराव नहीं हो पाता; बल्कि यह एक क्षेत्र में इकट्ठा हो जाता है।
  • तापमान व्युत्क्रमण:
    • सामान्य स्थिति: भूमि के पास की वायु आमतौर पर गर्म और हल्की होती है, जो ऊपर उठती है और धुएं को ऊपर की ओर प्रवाहित करती है।
    • शीतकालीन स्थिति: जमीन जल्दी ठंडी हो जाती है, जिससे ठंडी वायु सतह के पास इकट्ठा हो जाती है।
      • इस ठंडी वायु के ऊपर गर्म वायु की एक परत होती है।
      • गर्म वायु की यह परत एक ढक्कन की तरह कार्य करती है, जो धुएं को रोक लेती है और उसे ऊपर जाने तथा फैलने से रोकती है, जिससे वह जमीन के करीब ही रहता है।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) की विफलता:

  • एक वैधानिक निकाय: वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) एक वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना चार वर्ष पहले पड़ोसी राज्यों (पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान) के बीच नियंत्रण में समन्वय स्थापित करने तथा दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण को रोकने के लिए की गई थी।
  • CAQM विफलता के कारण:
    • राजनीतिक दबाव: निकाय स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर रहा है, राजनीतिक दबाव के आगे झुक रहा है।
    • पारदर्शिता का अभाव: वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के अनुसार, पंजाब सरकार गलत आंकड़े उपलब्ध करा रही थी, लेकिन निकाय ने इस जानकारी को जनता के समक्ष उजागर नहीं किया।
    • अपूर्ण चित्र: वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग न्यायालय को यह प्रभावी ढंग से बताने में विफल रहा कि पूरी समस्या केवल पराली जलाने वाले किसानों के कारण नहीं है
      • अन्य कारक, जैसे उद्योगों और परिवहन से होने वाला उत्सर्जन, भी प्रमुख योगदानकर्ता हैं, लेकिन प्राथमिक ध्यान अनुचित रूप से किसानों पर केंद्रित रहता है।

आगे की राह:

  • इन-सीटू प्रबंधन (क्षेत्र के अंदर):
    • पूसा डीकंपोजर: यह एक तरल रासायनिक स्प्रे है।
      • जब इसका इस्तेमाल बची हुई पराली पर किया जाता है, तो यह 15 से 20 दिनों के भीतर कचरे को सड़ाकर खाद में बदल देता है। सरकार को इसके उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
    • हैप्पी सीडर/सुपर सीडर: ये मशीनें पिछली फसल के बचे हुए अवशेषों पर सीधे गेहूं बोने के लिए डिज़ाइन की गई हैं
      • सरकार को इन मशीनों के लिए सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए।
  • एक्स-सीटू प्रबंधन (क्षेत्र के बाहर):
    • संसाधन के रूप में पराली: पराली को एक संसाधन बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए ताकि किसानों को इसके लिए भुगतान मिले और वे इसे जलाने के बजाय इसे बेचना पसंद करें।
    • जैव ऊर्जा: पराली का उपयोग जैव ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है। इसके लिए संयंत्र स्थापित किए जाने चाहिए।
    • एथेनॉल उत्पादन: पराली से एथेनॉल का उत्पादन किया जा सकता है। इन संयंत्रों की स्थापना की प्रक्रिया को त्वरित एवं सरल बनाया जाना चाहिए।
  • शासन समाधान:
    • सख्त प्रवर्तन: मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे किसानों और उद्योगपतियों सहित सभी हितधारकों पर समान रूप से लागू हों।
    • पारदर्शिता: वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) जैसी संस्थाओं को पारदर्शी होना चाहिए तथा राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराए गए गलत आंकड़ों को सार्वजनिक रूप से उजागर करना चाहिए।
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति: स्थायी समाधान के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, न कि केवल राजनीति की।

निष्कर्ष:

हालांकि नागरिकों का कोई भी वर्ग – किसान या उद्योगपति – कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता, लेकिन उचित प्रोत्साहन देना, मौजूदा कानूनों को लागू करना और वास्तविक रूप से प्राप्त करने योग्य चीजों के बारे में पारदर्शी होना, ‘आकर्षक और दंडात्मक’ दृष्टिकोण की तुलना में अधिक उचित कदम हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पराली जलाने से, खासकर अक्टूबर-नवंबर के दौरान, वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। इस प्रथा के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों का परीक्षण कीजिए और इस समस्या को कम करने के लिए प्रभावी उपाय सुझाइए।

 (10 अंक, 150 शब्द)

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