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प्रौद्योगिकी और समतापूर्ण शिक्षा की चुनौती

Lokesh Pal February 08, 2025 05:30 19 0

संदर्भ: 

वर्तमान समय में, भारत की डिजिटल पहुंच में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जो स्मार्टफोन और प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित है। हालांकि प्रौद्योगिकी शिक्षा में क्रांति लाने का वादा करती है परंतु फिर भी इस क्षेत्र में, चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

ग्रामीण भारत में डिजिटल शिक्षा का विकास:

  • 1990 और 2000 के दशक में शिक्षा क्रांति: 1990 और 2000 के दशक के प्रारम्भ में भारत में शैक्षिक गतिविधियों में तीव्र वृद्धि देखी गई, जिसमें स्कूल नामांकन बढ़ाने और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए जोरदार प्रयास किया गया।
  • विरोधाभासी परिणाम : हालांकि, इस दौरान वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) सर्वेक्षणों से ज्ञात होता है कि अधिक बच्चे स्कूल जा रहे थे, लेकिन सीखने के परिणामों में उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ।
  • डिजिटल प्रौद्योगिकियों का आगमन: इसी समय, कंप्यूटर और मोबाइल फोन जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकियों ने लोकप्रियता हासिल करना शुरू कर दिया, जिससे शिक्षा और व्यवसाय में डिजिटल समाधान की संभावनाओं से परिपूर्ण वातावरण तैयार होने लगा था।

एएसईआर सर्वेक्षण:

  • यह एक वार्षिक नागरिक-आधारित सर्वेक्षण है, जो ग्रामीण भारत में बच्चों की स्कूली शिक्षा और सीखने के स्तर का विश्वसनीय अनुमान प्रदान करता है।
  • संचालनकर्ता: असर सर्वेक्षण का समन्वय असर केंद्र द्वारा किया जाता है तथा एनजीओ प्रथम नेटवर्क द्वारा इसे सुगम बनाया जाता है।

चित्र: गैर-सरकारी संगठन प्रथम फाउंडेशन द्वारा जनवरी 2025 में जारी की गई 14वीं वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर)

कोविड-19, डिजिटल शिक्षा एवं प्रभाव :

  • 2018: इस अवधि में, लगभग 90% ग्रामीण परिवारों के पास बुनियादी मोबाइल फोन थे, और 36% के पास स्मार्टफोन थे।
  • 2022: इस अवधि में, स्मार्टफोन वाले घरों का अनुपात 74% से अधिक हो गया था। 
  • 2024: इस अवधि में, यह संख्या और बढ़कर 84% हो गयी।
  • शिक्षा में स्मार्टफोन की भूमिका: महामारी से उत्पन्न संकट ने शिक्षा के उपकरण के रूप में स्मार्टफोन की भूमिका को उजागर किया है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से पाठ्य पुस्तकों, कार्यपत्रकों और वीडियो को वितरित करने के लिए किया जाता है, जिसने पारंपरिक पाठ्यपुस्तकों का स्थान ले लिया है।
    • वर्चुअल प्रशिक्षण सत्र भी अधिक आम हो गए, जिससे छात्रों और शिक्षकों को दूरस्थ शिक्षा के अनुकूल होने में मदद मिली।
  • अभिभावकों (माताओं) के पास स्मार्टफोन: हालांकि, एएसईआर डेटा इस बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं देता है कि छोटे बच्चों की माताओं या उनके अभिभावकों के पास स्मार्टफोन है या नहीं, जो उनके बच्चों की शिक्षा और सीखने के लिए महत्वपूर्ण है।
    • महत्व: जिन माताओं या अभिभावकों के पास स्मार्टफोन तक पहुंच है, वे अपने बच्चों की शैक्षिक प्रगति को निर्देशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
    • माताओं या अभिभावकों की शिक्षा: भारत में स्कूली बच्चों की 40% से अधिक माताएं या तो स्कूल नहीं गयी हैं या केवल पांचवीं कक्षा तक ही शिक्षा प्राप्त हैं, अतः उनके पास तकनीकी ज्ञान का अभाव है।
      • अन्य 40% ने कक्षा 6 से कक्षा 10 के बीच स्कूली शिक्षा पूरी की है, तथा केवल एक छोटा सा हिस्सा ही कक्षा 10 या उससे अधिक की शिक्षा पूरी कर पाया है। हालांकि तकनीकी शिक्षा या संसाधनों तक उनका ज्ञान भी सीमित बना हुआ है। 

ग्रामीण परिवारों में स्मार्टफोन का स्वामित्व लगातार बढ़ रहा है, तथा स्मार्टफोन तक पहुंच रखने वाले बच्चों की संख्या में भी महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है:

  • 2018: 14 से 16 वर्ष की आयु के लगभग 19% बच्चों के पास स्मार्टफोन था।
  • 2022-2024: एक वर्ष के भीतर यह आंकड़ा लगभग 31% तक बढ़ गया, जो युवा वर्ग के लिए स्मार्टफोन की बढ़ती पहुंच को दर्शाता है।

तकनीकी प्रगति और शिक्षा का चक्र:

  • क्रान्तियाँ: भारत ने कई तकनीकी क्रान्तियों का उदय देखा है। उदाहरण के लिए, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल फोन और अब एआई।
  • वहनीयता का प्रश्न: प्रत्येक लहर शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव की नई उम्मीद लेकर, विशेष रूप से वंचितों के लिए, उभर रही है। 
    • हालाँकि, इन तकनीकों का वादा अभी तक इस समूह के लिए पूरी तरह से साकार नहीं हुआ है। एक बड़ी बाधा सस्ती डिवाइसों की उपलब्धता रही है।

निष्कर्ष:

हालांकि भारत को एक व्यापक रोडमैप विकसित करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रौद्योगिकी का लाभ समाज के उस वर्ग तक पहुंच सके जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: डिजिटल क्रांति ने ग्रामीण भारत में प्रौद्योगिकी तक पहुँच काफ़ी बढ़ा दी है, फिर भी सीखने के परिणाम एक चुनौती बने हुए हैं। भारत में शैक्षिक असमानताओं को दूर करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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