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तीस्ता बांध-3 : जलवायु परिवर्तन एवं ग्लेशियर चुनौतियाँ

Lokesh Pal February 15, 2025 05:45 114 0

संदर्भ:

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने सिक्किम में तीस्ता नदी पर तीस्ता-3 बांध के पुनर्निर्माण के प्रस्ताव की सिफारिश की है।

जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर पिघलना: 

  • ग्लोबल वार्मिंग: ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघलने की गति बढ़ रही है। 
  • ब्लैक कार्बन का प्रभाव: ब्लैक कार्बन (कालिख) के कण ग्लेशियरों के पिघलने की गति को बढ़ा देते हैं। 
  • ग्लेशियल झीलों में वृद्धि: 2011 से 2024 तक ग्लेशियल झीलों में 33.7% की वृद्धि हुई है। 
  • विस्तार: दक्षिण ल्होनक झील का विस्तार 1960 के दशक से 2023 में 167 हेक्टेयर तक हो जाएगा।

तीस्ता-3 बांध पुनर्निर्माण में प्रमुख मुद्दे:

  • आपदा-पूर्व व्यवहार्यता: आपदा से पहले  बांध को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य माना जाता था।
  • जोखिम कारक: संबंधित चिंताओं में भूकंप और भूस्खलन का जोखिम शामिल है। 
  • विनियामक मुद्दे: विनियमों का गैर-अनुपालन और कथित भ्रष्टाचार इस बांध के पुनर्निर्माण से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक हैं। 
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएं: पर्यावरणविद हिमालय में बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं की सुरक्षा पर सवाल उठा रहे हैं।

तीस्ता-3 हेतु तीस्ता 2.0 का प्रस्तावित डिज़ाइन:

  • निर्माण सामग्री: केवल कंक्रीट (कोई चट्टान नहीं) का उपयोग करके निर्मित। 
  • उन्नत स्पिलवे क्षमता: स्पिलवे (जल निकासी प्रणाली) तीन गुना बड़ी होगी। 
  • सुरक्षा उपाय: एक पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित की जाएगी। 
  • जलवायु लचीलापन: आईएमडी द्वारा ‘सबसे खराब स्थिति’ के वर्षा पूर्वानुमानों पर आधारित।

नये डिजाइन की सुरक्षा:

  • अप्रत्याशितता: हालांकि जलवायु परिवर्तन की घटनाएँ अप्रत्याशित है, और बाढ़ पिछली घटनाओं से भिन्न हो सकती है। 
  • वर्षा-आधारित मॉडलिंग की सीमाएँ:  विशेषज्ञों का तर्क है कि वर्षा-आधारित मॉडलिंग अविश्वसनीय है। इसके अंतर्गत मुख्यतः तलछट परिवहन, कटाव और नदी तल में होने वाले परिवर्तनों को पूरी तरह से ध्यान में नहीं रखा जाता है। 
  • अधिक तीव्र बाढ़ का खतरा: यदि अधिक तीव्र बाढ़ आती है, तो नुकसान और भी अधिक हो सकता है।

विशेषज्ञों की राय और चिंताएँ:

  • खामियां: आईआईटी भुवनेश्वर, आईआईएससी बैंगलोर और आईटीबीपी के अध्ययन ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ़्लड (जीएलओएफ़) मॉडलिंग में खामियों को उजागर करते हैं। 
  • जलवायु पूर्वानुमान में चुनौतियाँ: जलवायु मॉडल अत्यधिक वर्षा का सटीक पूर्वानुमान लगाने में संघर्ष करते हैं।
  • इंजीनियरिंग समाधानों की सीमाएं: अमेरिकी विशेषज्ञों का तर्क है कि, “इंजीनियरिंग जलवायु परिवर्तन का समाधान नहीं कर सकती; पीछे हटना अपरिहार्य है।”
  • जोखिम-केंद्रित निर्णय लेने की आवश्यकता: प्राथमिकता जोखिम शमन तंत्रों को मजबूत करने पर आधारित होनी चाहिए, न कि केवल आर्थिक व्यवहार्यता पर आधारित होनी चाहिए।

संभावित समाधान:

  • फोकस केंद्रों में बदलाव: कम जोखिम वाली लघु-स्तरीय जलविद्युत परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने पर बल देना पूर्व चेतावनी और निगरानी प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है।
  • नदी बेसिन प्रबंधन: प्रभावी नदी बेसिन प्रबंधन को लागू करना। 
  • आपदा-रोधी अवसंरचना: एक मजबूत आपदा-रोधी अवसंरचना तंत्र का  निर्माण किया जाना चाहिए।
  • जोखिम मूल्यांकन: सुरक्षा सीमाओं के साथ एक स्पष्ट जोखिम मूल्यांकन ढांचा विकसित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष:

सिक्किम में प्रस्तावित तीस्ता-3 बांध परियोजना का मुद्दा पर्यावरणीय कारकों के मद्देनजर कुशल शासन स्थापित करने की दिशा में, एक महत्वपूर्ण सबक है।  बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लाभ से ज़्यादा सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। क्योंकि जलवायु परिवर्तन आपदा जोखिमों को अप्रत्याशित और गंभीर बनाता है। अतः जोखिम प्रबंधन हेतु एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो आर्थिक विकास के साथ स्थिरता भी सुनिश्चित कर सके।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: 2023 सिक्किम ग्लेशियल झील के फटने से आई बाढ़ ने हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत अवसंरचना की कमज़ोरियों को उजागर किया था। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिमों और पर्यावरणीय स्थिरता के संदर्भ में, हिमालयी क्षेत्र में वृहद बांध परियोजनाओं की व्यवहार्यता की आलोचनात्मक जाँच करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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