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भारतीय अर्थव्यवस्था में रोज़गार का बदलता परिदृश्य

Lokesh Pal July 14, 2025 05:15 24 0

संदर्भ:

भारतीय रोजगार परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन हो रहे हैं, जिससे शिक्षा और रोज़गार बाजार की माँग के बीच का अंतर उजागर हो रहा है।

औपचारिक रोजगार की आवश्यकता और प्रवृत्तियाँ

  • कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) भारत में औपचारिक रोजगार प्रवृत्तियों के प्रमुख संकेतक के रूप में कार्य करता है, जो 7 करोड़ से अधिक सदस्यों की सेवानिवृत्ति बचत का प्रबंधन करता है।
    • EPFO के बारे में: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय के अधीन एक वैधानिक निकाय है।
    • इसकी स्थापना कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 के तहत की गई थी।
    • संचालित योजनाएँ:
      • कर्मचारी भविष्य निधि (EPF): अनिवार्य सेवानिवृत्ति बचत योजना।
      • कर्मचारी पेंशन योजना (EPS): सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन प्रदान करती है।
      • कर्मचारी जमा लिंक्ड बीमा योजना (EDLI): कर्मचारियों को जीवन बीमा कवर प्रदान करती है।
  • महामारी के कारण 2019 के बाद शुद्ध नए नामांकन में गिरावट के बाद, मार्च 2025 के आँकड़े औपचारिक कार्यबल भागीदारी में निरंतर वृद्धि दर्शाते हैं।
  • युवा पेशेवर, विशेष रूप से 18 से 25 आयु वर्ग के नए स्नातक, इन नए नामांकनों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिसमें 18 से 21 आयु वर्ग का हिस्सा 18-22% है।
  • यह प्रवृत्ति अर्थव्यवस्था के औपचारीकरण की ओर बढ़ने का संकेत देती है।
    • हालाँकि, इसके लिए रोज़गार की स्थिरता, वेतन और दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा का गहन विश्लेषण आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान संविदात्मक और फ्रीलांसिंग मॉडल नौकरी की सुरक्षा के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करते हैं।

युवा बेरोजगारी और बेरोजगारी का संकट

भारत के समक्ष न केवल बेरोजगारी की चुनौती है, बल्कि बेरोजगारी का संकट भी है।

  • भारत की बेरोजगार आबादी में युवाओं की हिस्सेदारी 83% है।
  • चिंताजनक बात यह है, कि पिछले दो दशकों में माध्यमिक या उच्चतर शिक्षा प्राप्त बेरोजगार व्यक्तियों का अनुपात लगभग दुगुना हो गया है।
    • इससे यह स्पष्ट होता है, कि मात्र शैक्षिक योग्यता ही रोजगार की गारंटी नहीं है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 से पता चलता है, कि भारत के केवल आधे युवा ही स्नातक होने के बाद रोज़गार के लिए तैयार माने जाते हैं।
    • एक महत्त्वपूर्ण भाग में नियोक्ताओं द्वारा माँगे जाने वाले आवश्यक डिजिटल और व्यावसायिक कौशल का अभाव है।
    • उदाहरण के लिए, 75% युवा बुनियादी डिजिटल कार्यों में संघर्ष करते हैं, जैसेअटैचमेंट (अनुलग्नक) के साथ ईमेल भेजना
      • 60% से अधिक लोग सरल फ़ाइल संचालन नहीं कर सकते, तथा 90% लोगों में बुनियादी स्प्रेडशीट कौशल का अभाव है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का बढ़ता प्रभाव पारंपरिक रोज़गार भूमिकाओं के लिए खतरा पैदा कर रहा है, जिससे स्नातकों और उपलब्ध अवसरों के मध्य बढ़ते अंतराल को रोकने के लिए पर्याप्त पुनर्कौशल और अपस्किलिंग प्रयासों की आवश्यकता बढ़ गई है।

अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व और सामाजिक सुरक्षा चिंताएँ

  • लगभग 90% रोजगार अनौपचारिक है, तथा 2018 के बाद से वेतनभोगी, नियमित नौकरियों में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
  • संविदात्मक और स्वतंत्र रोजगार मॉडल में वृद्धि का अर्थ है, कि स्वास्थ्य, शिक्षा और वृद्धावस्था सेवाओं सहित रोज़गार की सुरक्षा और सामाजिक कल्याण के संबंध में चिंताएँ, विशाल कार्यबल के लिए व्यापक सीमा तक अनसुलझी रह जाती हैं।

भविष्य की रोज़गार गतिशीलता और तत्काल कौशल अंतराल

विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा जारीफ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट-2025″ में रोजगार की गतिशीलता में बड़े परिवर्तनों का अनुमान लगाया गया है:

  • अनुमान है, कि 2030 तक 170 मिलियन नए रोजगार सृजित होंगे, जो कुल रोजगार का 14% होगा।
  • हालाँकि, स्वचालन और संरचनात्मक परिवर्तनों के कारण 92 मिलियन मौजूदा नौकरियाँ, या कुल रोजगार का 8%, समाप्त हो जाएंगी।
  • इसका अर्थ है, कि अगले पाँच वर्षों में लगभग 78 मिलियन नौकरियों अर्थात कुल रोजगार में 7% की वृद्धि होगी।
  • ये अनुमान कौशल अंतराल को कम करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत का कार्यबल इस उभरते रोजगार परिदृश्य के लिए पर्याप्त रूप से तैयार है।

आगे की राह

भारत एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जहाँ अवसर और चुनौतियाँ दोनों मौजूद हैं। लाखों स्नातकों को सार्थक रोज़गार सुनिश्चित करने के लिए, लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप और व्यापक पुनर्कौशल पहल अनिवार्य हैं।

  • उद्योग और शिक्षा जगत के बीच मजबूत सहयोग: उच्चतर शिक्षा संस्थानों और उद्योग भागीदारों के बीच औपचारिक साझेदारी होनी चाहिए।
    • इससे सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक अनुप्रयोग के बीच के अंतराल को कम करने में मदद मिलेगी तथा प्लेसमेंट के अवसर बेहतर होंगे।
  • प्लेसमेंट के लिए शैक्षिक संस्थानों की जवाबदेही: शैक्षिक संस्थानों को अपने विद्यार्थियों को रोज़गार दिलाने के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए, न कि केवल डिग्री प्रदान करने के लिए।
    • मान्यता प्रणालियों को अपने रैंकिंग मानदंडों में रोज़गार नियुक्ति दरों को एकीकृत करना चाहिए।
    • प्रयोग और ज्ञान के वास्तविक जीवन अनुप्रयोग को बढ़ावा देने के लिए हाई स्कूलों और उच्चतर शिक्षा संस्थानों में आइडिया लैब्स और टिंकर लैब्स को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
    • शिक्षा के सभी स्तरों पर मानविकी, विदेशी भाषा शिक्षण और सॉफ्ट स्किल्स का एकीकरण अनिवार्य होना चाहिए
  • राष्ट्रीय सीमाओं से परे कार्य: भारत को वृद्ध होते पश्चिमी देशों की श्रम माँगों को पूरा करने के लिए कौशल और प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करने चाहिए।
  • भारतीय शिक्षा सेवा की स्थापना: भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के समान एक भारतीय शिक्षा सेवा (IES) की स्थापना की जानी चाहिए।
    • इससे शिक्षा क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएँ आकर्षित होंगी तथा आवश्यक परिवर्तन होंगे।
  • उद्योग जगत के पेशेवरों के लिए खुली शिक्षण प्रणाली: शिक्षा प्रणाली को उद्योग जगत के पेशेवरों को शिक्षण भूमिकाओं में सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए।
    • उनका व्यावहारिक अनुभव विद्यार्थियों के लिए सिद्धांत और वास्तविक विश्व के अनुप्रयोग के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर को कम करने में सहायक होगा।

निष्कर्ष

ये सुधार केवल सुझाव नहीं हैं, ये भारत के लिए महत्त्वपूर्ण आवश्यकताएँ हैं, जिससे वह अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति के एक शक्तिशाली इंजन में परिवर्तित कर सके।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

“विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी का घर होने के बावजूद, भारत उच्च बेरोज़गारी और अपने स्नातकों के बीच कम रोज़गार क्षमता से जूझ रहा है।” भारत के रोज़गार परिदृश्य के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए। युवाओं की रोज़गार क्षमता बढ़ाने और जनसांख्यिकीय लाभांश का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए कौन-से संरचनात्मक सुधार और नीतिगत उपाय आवश्यक हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

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