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मध्य एशिया में शक्ति का बदलता स्वरूप तथा भारत की उपस्थिति

Lokesh Pal October 22, 2025 05:15 51 0

सन्दर्भ:

वैश्विक मध्यस्थता में, पश्चिमी प्रभुत्व से उभरती हुई मध्य शक्तियों और क्षेत्रीय अभिनेताओं की ओर, शक्ति परिवर्तन हो रहा है

मध्यस्थता का बदलता परिदृश्य

  • पश्चिमी से क्षेत्रीय नेतृत्व की ओर परिवर्तन: 20वीं सदी में, प्रमुख शांति वार्ताएँ पश्चिमी शहरों जैसे जिनेवा (1980 के दशक में अफगानिस्तान से सोवियत संघ की वापसी) और ओस्लो (1993 में इजराइल-फिलिस्तीन समझौता) में आयोजित की गईं।
    • आज, शांति प्रयास मध्य पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गए हैं, जहाँ कतर, तुर्की, सऊदी अरब, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात गाजा, अफगानिस्तान-पाकिस्तान और रूस-यूक्रेन जैसे संघर्षों में मध्यस्थता कर रहे हैं।
    • यह कूटनीति के एक नए भूगोल को दर्शाता है, जहाँ क्षेत्रीय शक्तियाँ विभाजित पश्चिम द्वारा छोड़े गए शून्य को भर रही हैं।

संयुक्त राष्ट्र की अप्रासंगिकता

  • संघर्ष समाधान में भूमिका में कमी: संयुक्त राष्ट्र, जो कभी अफगान एकॉर्ड (1980 के दशक) और ओस्लो समझौते जैसी शांति प्रक्रियाओं के लिए केंद्रीय भूमिका निभाता था, समकालीन संकटों में व्यापक सीमा तक अप्रासंगिक हो गया है।
    • यूक्रेन, गाजा या अफगानिस्तान में चल रहे संघर्षों में इसकी कोई निर्णायक भूमिका नहीं है।
  • सुरक्षा परिषद की निष्क्रियता: सुरक्षा परिषद के भीतर वीटो की राजनीति – एक ओर रूस और चीन तथा दूसरी ओर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस – ने सामूहिक कार्रवाई को पंगु बना दिया है।
    • इस आंतरिक विभाजन ने मध्यस्थता को क्षेत्रीय तथा द्विपक्षीय हाथों में धकेल दिया है, जिससे वैश्विक शांति निर्माता के रूप में संयुक्त राष्ट्र की वैधता समाप्त हो गई है।

आधुनिक मध्यस्थता में प्रेरणाएँ और उत्प्रेरक तत्त्व

  • राजनयिक मुद्रा के रूप में प्रतिष्ठा: आज मध्यस्थता को प्रतिष्ठा और प्रभाव के प्रतीक के रूप में अपनाया जाता है।
    • देश सफल शांति-मध्यस्थता को वैश्विक प्रासंगिकता स्थापित करने तथा कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करने के साधन के रूप में देखते हैं।
  • उत्प्रेरक भूमिका: प्रभावी मध्यस्थता युद्धरत पक्षों को प्रभावित करने या उन पर दबाव डालने की क्षमता, पर निर्भर करती है
    • आर्थिक शक्ति, रणनीतिक गठबंधन और राजनीतिक विश्वसनीयता यह निर्धारित करती है, कि कोई राष्ट्र कितना प्रभाव डाल सकता है।

उभरते वैश्विक मध्यस्थ

  • तुर्की: तुर्की सीरिया में रूस के साथ मिलकर कार्य करता है, साथ ही यूक्रेन को ड्रोन की आपूर्ति भी करता है, जिससे दोनों पक्षों के मध्य रणनीतिक संतुलन बना रहता है।
    • इसने ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव को सुविधाजनक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और सक्रिय कूटनीति के माध्यम से मुस्लिम विश्व का नेतृत्व करने की आकांक्षा रखता है।
  • सऊदी अरब: अपनी आर्थिक संपदा और धार्मिक प्रभाव का लाभ उठाते हुए, सऊदी अरब ने यूक्रेन पर जेद्दा शिखर सम्मेलन और अमेरिका तथा रूस को शामिल करते हुए रियाद बैठकों जैसे प्रमुख शिखर सम्मेलनों की मेजबानी की है।
  • कतर: अपने छोटे आकार के बावजूद, कतर ने अपनी अपार संपत्ति और संबंधों का उपयोग- विशेष रूप से तालिबान के साथअमेरिका-तालिबान वार्ता को सुविधाजनक बनाने के लिए किया है
  • संयुक्त अरब अमीरात (UAE): यूएई एक प्रमुख शांति निर्माता के रूप में कार्य करता है, अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच मध्यस्थता, रूस-यूक्रेन कैदी आदान-प्रदान की सुविधा, और कथित तौर पर भारत-पाकिस्तान LOC युद्धविराम (2021) को पुनर्जीवित करने में मदद करता है।
  • चीन: चीन ने सऊदी अरब और ईरान के बीच सुलह की मध्यस्थता करके एक कूटनीतिक उपलब्धि हासिल की, एक ऐसी उपलब्धि जो अमेरिका प्राप्त नहीं कर सका।
    • इसका उद्देश्य हांगकांग में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता संगठन (IOM) जैसी पहलों के माध्यम से वैश्विक शासन को नया आकार देना है, तथा स्वयं को पश्चिमी व्यवस्था के विकल्प तथा वैश्विक शांति निर्माता के रूप में प्रस्तुत करना है

भारत की स्थिति और क्षमता

  • मध्यस्थता में ऐतिहासिक विरासत: शांति कूटनीति में भारत का लंबा रिकॉर्ड रहा है, जिसमें तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग (कोरियाई युद्ध, 1950) का नेतृत्व करने से लेकर नेपाल, मालदीव और श्रीलंका में संकटों में मध्यस्थता करना शामिल है।
    • हालाँकि, ऐसे हस्तक्षेपों से कभी-कभी राजनीतिक लागत भी उठानी पड़ती है, जिसमें श्रीलंका में हानि और क्षेत्र में “बिग ब्रदर” के दृष्टिकोण की धारणा शामिल है।
  • संघर्ष समाधान में घरेलू सबक: भारत के आंतरिक शांति प्रयास, जैसे- मिजो समझौता (1986), जिसमें विद्रोही नेता लालडेंगा मुख्यमंत्री बने और माओवाद में जारी गिरावट समावेशी वार्ता और पुनर्वास के लिए इसकी क्षमता को प्रदर्शित करते हैं।
  • वैश्विक प्रभाव के लिए लाभ का निर्माण
    • वैश्विक स्तर पर मध्यस्थता की बड़ी भूमिका निभाने के लिए भारत को अपनी आर्थिक शक्ति को बढ़ाना होगा, जो कूटनीतिक लाभ की नींव का काम करती है।
    • इसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति बढ़ाने, विविध पक्षों के साथ जुड़ने तथा तटस्थता और विश्वास पर आधारित विश्वसनीय प्रभाव विकसित करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

भारत का अनुभव और विश्वसनीयता उसे तेजी से बहुध्रुवीय विश्व में एक तटस्थ और विश्वसनीय मध्यस्थ के रूप में उभरने की स्थिति में रखती है। हालाँकि, इस भूमिका को साकार करने के लिए उसे आर्थिक शक्ति को सक्रिय कूटनीति और वैश्विक शक्ति प्रतिद्वंद्विता के प्रति संतुलित दृष्टिकोण के साथ जोड़ना होगा

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: मध्य-शक्ति मध्यस्थता का उदय पश्चिमी प्रभुत्व से एक अधिक बहुलवादी वैश्विक व्यवस्था की ओर बदलाव का प्रतीक है। कूटनीतिक संतुलनकर्ता और संघर्ष मध्यस्थ के रूप में भारत की बढ़ती भूमिका के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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