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आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024

Lokesh Pal December 26, 2024 05:15 13 0

संदर्भ :

आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 को अगस्त 2024 में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था। विधेयक “आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005” (Disaster Management Act, 2005) में संशोधन करता है।

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और  हालिया संशोधन प्रस्ताव 

  • हिंद महासागर सुनामी (2004) : आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को भारत में 26 दिसंबर, 2004 की विनाशकारी हिंद महासागर सुनामी के बाद लागू किया गया था, जिसने मुख्य रूप से तमिलनाडु और अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह के तटीय क्षेत्रों को प्रभावित किया था।
  • अधिनियम का उद्देश्य : यह अधिनियम शासन के सभी स्तरों पर रोकथाम, शमन और तैयारी पर ध्यान केंद्रित करके देश के आपदा प्रबंधन ढाँचे को मजबूत करता है। 
  • यह निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करता है:
    • ज्ञान का प्रसार : समुदायों और हितधारकों के बीच आपदा जोखिमों और प्रबंधन रणनीतियों के बारे में जागरूकता और समझ को बढ़ावा देना।
    • आपदा का आकलन और निगरानी : आपदा जोखिमों का व्यवस्थित आकलन, साथ ही समय पर प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए निरंतर निगरानी।
    • शमन और अनुकूलन उपाय : आपदा शमन रणनीतियों को लागू करना, जो आधुनिक तकनीक, पारंपरिक ज्ञान और पर्यावरणीय रूप से संधारणीय प्रक्रियाओं को जोड़ती हैं।
  • आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 की आवश्यकता : सरकार के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की बदलती प्रकृति से उत्पन्न नई चुनौतियों के समक्ष वर्ष 2005 का अधिनियम अब उतना कारगर नहीं रहा है।

विधेयक से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ

  • समुदाय-केंद्रित भाषा का अभाव : विधेयक में ‘निगरानी’ और ‘दिशा-निर्देश’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष-से-नीचे (टॉप-डाउन) दृष्टिकोण को व्यक्त करते हैं।  
  • इसके विपरीत ‘पर्यवेक्षण’ और ‘निर्देश’ जैसे शब्द स्थानीय समुदायों और सरकारों के साथ अधिक विश्वास और सहयोग को बढ़ावा दे सकते थे।
    • वैश्विक विधिक शोध दस्तावेज़ : योकोहामा रणनीति, ह्योगो फ्रेमवर्क फ़ॉर एक्शन और सेंडाई फ्रेमवर्क जैसे वैश्विक ढाँचे स्थानीय समुदायों को आपदाओं के दौरान “प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता” के रूप में मान्यता देते हैं, जो उन्हें अधिक समावेशी और सहभागी भाषा के माध्यम से सशक्त बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
    • स्थानीय समुदायों का महत्त्व : सुंदरबन में चक्रवात आइला (2009), केदारनाथ बाढ़ (2013) और केरल बाढ़ (2018) जैसे ऐतिहासिक उदाहरणों से इस बात की पुष्टि होती है, कि किस प्रकार से स्थानीय ग्रामीण और मछुआरे सामान्यतः राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) या तटरक्षक बल के प्रभावित क्षेत्रों में पहुँचने से पूर्व ही बचाव अभियान शुरू कर देते थे।
  • अंतर-विभागीय असमानता तथा भेदभाव : विधेयक अंतर-विभागीय असमानता तथा भेदभाव को हल करने में विफल रहता है, जो आपदा स्थितियों में भेद्यता को समझने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
    • समावेशी आपदा प्रतिक्रिया की आवश्यकता : असमानता तथा भेदभाव के कई रूपों का सामना करने वाले लोग, जैसे-महिलाएँ, दिव्यांग व्यक्ति, हाशिए पर व्याप्त समुदाय और LGBTQIA+ समुदाय, जो अधिक जोखिम का सामना करते हैं, को उत्तरदाताओं द्वारा उपेक्षा या प्राथमिकताओं के रूप में अनदेखा किया जाना शामिल है।
  • मूल्यांकन तंत्रों का अभाव : इस विधेयक में आपदा तैयारियों में जिला अधिकारियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए स्पष्ट प्रावधानों का अभाव है।
    • इससे आपदाओं के दौरान दोष-स्थानांतरण, जवाबदेही में कमी तथा राजनीतिक शोषण होता है, जिससे शासन वयवस्था के कमजोर होने की संभावना रहती है।
  • कानून और व्यवस्था संबंधी विरोधाभास : जबकि विधेयक स्पष्ट रूप से आपदा प्रबंधन के दायरे से “कानून और व्यवस्था” को बाहर करता है, यह विरोधाभासी रूप से राज्य कार्यकारी समितियों (SEC) में राज्य पुलिस महानिदेशकों को शामिल करता है।
  • राहत मानकों और प्रावधानों का अभाव : आपदा प्रबंधन अधिनियम (DMA) की धारा 12 और 13, जिसमें न्यूनतम राहत मानकों और ऋण के भुगतान को रेखांकित किया गया था, को हटा दिया गया है।
    • धारा 19 को हटाना : धारा 19, जिसमें राज्यों को राहत दिशा-निर्देशों का पालन करने की आवश्यकता थी, को हटा दिया गया है। 
      • इन धाराओं में विधवा, अनाथ, बेघर, जीवन की हानि, घर के नुकसान और आजीविका के लिए वित्तीय सहायता संबंधी प्रावधान शामिल थे। 
    • कोई प्रतिस्थापन नहीं : विधेयक उपर्युक्त प्रावधानों को प्रतिस्थापित नहीं करता है। 
  • पशु कल्याण की उपेक्षा : विधेयक आपदाओं के बाद पशु कल्याण के महत्त्वपूर्ण मुद्दे को शामिल करने में विफल रहता है। 
    • आपदाओं के दौरान हजारों पशु मर जाते हैं, फिर भी विधेयक में पशु संरक्षण या पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2023 को लागू करने में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (DDMA) की भूमिका का उल्लेख नहीं है। 
  • एक नया प्राधिकरण : विधेयक धारा 41A के तहत एक शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (UDMA) प्रस्तावित करता है, लेकिन इस निकाय का उद्देश्य अभी भी अस्पष्ट है। 
    • नगर निगम : शहरों में प्रमुख राजस्व स्रोत के रूप में नगर निगम आपदा प्रबंधन को प्रभावित करते हैं। 
    • शहरी बाढ़ में उनकी भूमिका : हालाँकि, आपदा प्रबंधन में उनकी भागीदारी संदिग्ध है, क्योंकि वे सामान्यतः जलभृतों, जल निकायों, शहरी वनों, नदी के किनारों और बाजारों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर अतिक्रमण की अनुमति देकर शहरी बाढ़ को बढ़ावा देते हैं। 
    • इसे सुधारने की आवश्यकता है, क्योंकि नगर निगम प्राकृतिक आपदाओं से निपटने हेतु आवश्यक हैं। 
  • क्षेत्रीय कार्रवाई : जूनोटिक बीमारियों और सीमापार पर्यावरणीय जोखिमों से उत्पन्न वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए, विधेयक आपदा प्रबंधन में क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता पर बल  देने में विफल रहता है। 
    • 2011 का सार्क समझौता : प्राकृतिक आपदाओं पर त्वरित प्रतिक्रिया पर 2011 के सार्क समझौते जैसे अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे को सीमापार आपदा प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए शामिल किया जा सकता था।

निष्कर्ष

विधेयक की समग्र विषयवस्तु को ध्यान में रखते हुए यह आकलन करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है, कि क्या इसमें उपर्युक्त   चिंताओं को सही ढंग से दूर किया गया है| साथ ही यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि आपदा प्रबंधन प्रभावी, न्यायसंगत और प्रभावित समुदायों की विविध आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी बना रहे। 

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 जमीनी स्तर पर विकेन्द्रीकरण से दूर जाते हुए सत्ता को केंद्रीकृत करता प्रतीत होता है। इस परिवर्तन का दक्षिण एशिया में आपदा प्रबंधन, स्थानीय शासन और क्षेत्रीय सहयोग पर व्यापक  प्रभाव पड़ सकता है, आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए । अधिक समावेशी ढाँचे हेतु आवश्यक उपाय भी सुझाइए ।

(15 अंक, 250 शब्द) 

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