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वैश्विकता की समाप्ति: भारत के समक्ष क्षेत्रीय नेतृत्व का अवसर

Lokesh Pal April 07, 2025 05:15 63 0

संदर्भ:

हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (अप्रैल 2025) श्रीलंका और हिंद महासागर के देशों के साथ नए सिरे से संपर्क स्थापित करने की बात कही है, जो क्षेत्रीय एकीकरण को पुनर्जीवित करने के लिए भारत के रणनीतिक प्रयास का संकेत है।  

बहुपक्षवाद का उदय:

  • उत्पत्ति: वैश्विकता का पहला वास्तविक प्रयास 1918 में वुडरो विल्सन द्वारा उनके 14 सूत्री एजेंडे के साथ किया गया था, जिसमें शांति और न्याय पर आधारित युद्धोत्तर विश्व के लिए एक रूपरेखा का प्रस्ताव दिया गया था।
  • राष्ट्र संघ का गठनराष्ट्र संघ का गठन इस दृष्टिकोण के एक भाग के रूप में किया गया था, लेकिन इसे शुरुआती असफलताओं का सामना करना पड़ा जब विल्सन के उत्तराधिकारी वॉरेन हार्डिंग ने संयुक्त राज्य अमेरिका को अलगाववाद की ओर पुनः आकर्षित किया।
    • लीग अपनी गति को कायम रखने में असफल रही और अंततः उसका पतन प्रारंभिक वैश्विक महत्वाकांक्षाओं की विफलता का प्रतीक था
  • बहुपक्षवाद का पुनः उदय: विंस्टन चर्चिल और फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने 1941 में अटलांटिक चार्टर पेश किया, जिसमें आत्मनिर्णयआर्थिक सहयोग और  निरस्त्रीकरण जैसे सिद्धांतों को प्राथमिकता दी गई।
    • इन सिद्धांतों के कारण द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सहित बहुपक्षीय निकायों का गठन हुआ, जिससे वैश्विक शासन में विश्वास मजबूत हुआ।

वैश्वीकरण के पतन के कारण:

  • क्षेत्रीय गुटों का उदय: वैश्विकतावादी अनेक वक्तव्यों के बावजूद, प्रमुख शक्तियों ने भू-राजनीतिक प्रभाव के लिए क्षेत्रीय और गुट-आधारित रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया
  • सोवियत संघ की नीतियाँ: सोवियत संघ ने वारसा संधि बनाने और पूर्वी यूरोप पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए सैन्य शक्ति का प्रयोग किया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका की नीतियाँ: मार्शल योजनाआर्थिक शक्ति और नाटो के गठन के माध्यम से अमेरिका ने पश्चिमी यूरोप में अपना प्रभाव बढ़ाया।
  • चीन की नीतियाँमाओत्से तुंग के नेतृत्व में चीन ने अपने भू-राजनीतिक क्षेत्र का विस्तार करने के लिए सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया, विशेष रूप से कोरिया और वियतनाम में
  • भारत का दृष्टिकोण: स्वतंत्रता के बाद भारत ने वैश्विक राजनीति के प्रति एक तटस्थ दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें जवाहरलाल नेहरू ने शुरू में गुटनिरपेक्षता और तीसरी दुनिया की राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया।
    • नेहरू के एशियाई संबंध सम्मेलन (1947) ने यथार्थवादी दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया, लेकिन बाद में वैश्विकता के उनके आदर्शवादी प्रयास ने इसे ढक दिया
  • क्षेत्रवाद का उदय: 20वीं सदी के अंत तक, वैश्विक स्वप्न परियोजनाओं को अव्यावहारिक माना जाने लगा और क्षेत्रवाद हावी होने लगा।
  • क्षेत्रीय हित: क्षेत्रीय हितों ने वैश्विक शासन पर वरीयता स्थापित कर ली थी, जिससे वैश्विकता से क्षेत्रवाद और लघुपक्षवाद की ओर बदलाव हुआ।
    • जैसे-जैसे वैश्विकता पीछे हट रही हैक्षेत्रीय समूह नए शक्ति-समूहों के रूप में उभर रहे हैं, जो 21वीं सदी की बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का निर्माण कर रहे हैं।
  • यूरोप का क्षेत्रीय एकीकरण:  क्षेत्रीय ब्लॉकों के महत्व को पहचानने और उनके एकीकरण में शामिल सबसे पहली शक्तियाँ यूरोपीय थी।
    • 1957 में बेल्जियम, फ्रांस, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड और पश्चिम जर्मनी ने यूरोपीय आर्थिक समुदाय (ईईसी) का गठन किया, जो बाद में 1993 में यूरोपीय संघ (ईयू) के रूप में विकसित हुआ।
    • इसने वैश्विक शासन के विकल्प के रूप में क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग और एकीकरण के उदय को चिह्नित किया।
  • आसियान का उदय: 1967 में पांच दक्षिण पूर्व एशियाई देशों- इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशियासिंगापुर और थाईलैंड – ने दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) का गठन किया
    • समय के साथ, आसियान का विस्तार 11 देशों के संगठन के रूप में हुआ, जिसका ध्यान क्षेत्रीय सुरक्षाआर्थिक सहयोग और राजनीतिक स्थिरता पर केंद्रित था। 

दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय एकीकरण से जुड़ी चुनौतियाँ: 

  • एकीकरण का अभाव: भौगोलिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सर्वाधिक समीपस्थ होने के बावजूददक्षिण एशिया सबसे कम एकीकृत क्षेत्र बना हुआ है। 
  • सार्क की विफलता: सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) की स्थापना 1985 में बांग्लादेश के जियाउर रहमान के प्रयासों से की गई थी, जिन्होंने शुरुआत में नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव को क्षेत्रीय समूह बनाने के लिए सहमत कराया था।
    • हालांकि प्रारंभ में, भारत और पाकिस्तान को अनिच्छा से इसमें शामिल किया गया था, लेकिन द्विपक्षीय तनाव के कारण इस संगठन की क्षमता कभी पूरी तरह से साकार नहीं हो सकी।
  • बिम्सटेक का उदय: आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए 1997 में BIST-EC (बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड आर्थिक सहयोग) का गठन किया गया था।
    • 2004 में इसमें नेपाल, भूटान और म्यांमार को शामिल करते हुए इसका विस्तार किया गया। इस पहल के पश्चात यह बिम्सटेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) बन गया।
  • आईओआरए का उदय इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) का प्रस्ताव 1995 में नेल्सन मंडेला द्वारा दिया गया था और 1997 में इसका गठन किया गया, जिसका उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना था।

आगे की राह:

  • क्षेत्रीय दृष्टिकोण: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्षेत्रीय भू-राजनीति को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।
  • हिंद महासागर के व्यापक महत्त्व का संकेत : प्रधानमंत्री मोदी की मॉरीशस यात्रा और हिंद महासागर की पहचान पर उनका जोर इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती रुचि का संकेत है।
  • क्वाड समूह में भारत की भूमिका : क्वाड में एक विशिष्ट हिंद महासागर एजेंडा बनाने में भारतीय नेतृत्व की भूमिका अधिक क्षेत्रीय एकीकरण और सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम है।
  • सार्क और बिम्सटेक का पुनरुद्धार: 2014 के अपने शपथ ग्रहण समारोह में इन समूहों के शीर्ष नेताओं को आमंत्रित करके सार्क को पुनर्जीवित करने के मोदी के प्रयासों ने क्षेत्रीय सहयोग के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया, लेकिन भारत-पाकिस्तान के बीच लगातार तनाव के कारण वर्तमान समय में सार्क निष्क्रिय बना हुआ है
    • दूसरी ओर, बिम्सटेक में विकास की अधिक संभावना है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण इसे काफी हद तक नजरअंदाज किया गया है। अपने 28 साल के इतिहास में इस संगठन द्वारा केवल छह नेतृत्व -स्तरीय बैठकें की हैं
  • भारत की भूमिका: सार्थक क्षेत्रीय एकीकरण प्राप्त करने के लिए, भारत को एक प्रमुख क्षेत्रीय मंच के रूप में बिम्सटेक को मजबूत करने और मॉरीशस और द्वीपीय देशों सहित हिंद महासागर क्षेत्र में अधिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए
    • भारत-पूर्वी अफ्रीका के आपसी सहयोग से हिंद महासागर क्षेत्र में मजबूत संबंध विकसित होने की संभावना है।
  • दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प: हालांकि क्षेत्रीय एकीकरण चुनौतीपूर्ण है, लेकिन क्षेत्रीय नेताओं की दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प की भावना सफल परिणाम सुनिश्चित कर सकती है।

निष्कर्ष:

भारत , खासकर हिंद महासागर और दक्षिण एशिया में, क्षेत्रीय एकीकरण प्रयासों के केंद्र में है। राजनीतिक इच्छाशक्तिपड़ोसी देशों से सहयोग और केंद्रित दृष्टिकोण के साथ, भारत इस क्षेत्र को क्षेत्रीय एकीकरण और भू-राजनीतिक स्थिरता के एक नए युग की ओर ले जा सकता है

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: समकालीन भू-राजनीति में वैश्विकता से क्षेत्रवाद की ओर बदलाव का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। भारत इस बदलाव का लाभ उठाकर हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव कैसे बढ़ा सकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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