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ब्रिक्स समूह की विकसित होती प्रकृति

Lokesh Pal July 24, 2025 05:00 13 0

संदर्भ:

ब्रिक्स समूह की शुरुआत विश्व की चार प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं के एक प्रतीकात्मक गठबंधन के रूप में की गई थी। परंतु इसमें समय के साथ महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है यही कारण है कि आज इसे वैकल्पिक वैश्विक शासन के लिए एक मंच के रूप में देखा जा रहा है।

  • इस समूह की शुरुआत “ब्रिक” (ब्राजील, रूस, भारत, चीन) के रूप में हुई थी। वर्तमान समय में इसमें कुछ नए सदस्यों को शामिल किया गया है ताकि इसका विस्तार हो सके, जो इसके बढ़ते प्रभाव और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वैश्विक मांग को दर्शाता है।

ब्रिक्स का विकास और वर्तमान स्थिति:

  • विस्तार: वर्ष 2024 में, ब्रिक्स ने आपसी सहमति से मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को इस समूह का हिस्सा बनाया है।
  • वैश्विक योगदान: विस्तारित ब्रिक्स समूह में अब विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 46% हिस्सा शामिल है तथा क्रय शक्ति समता (PPP) के संदर्भ में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान लगभग 40% है।

ब्रिक्स के विस्तार के प्रमुख कारण:

विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिक्स का विस्तार केवल पश्चिम विरोधी भावना नहीं है, बल्कि विभिन्न देशों द्वारा एक अधिक समतापूर्ण और बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की महत्त्वाकांक्षा का प्रतिबिंब है। इसमें प्रत्येक नए सदस्य की अपनी विशिष्ट रणनीतिक प्रेरणाएँ हैं जिनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है:

  • ईरान पश्चिमी प्रतिबंधों से बचने के लिए इसमें शामिल हुआ क्योंकि प्रतिबंधों के कारण उसे वैश्विक व्यापार से अलग कर दिया गया था।
  • संयुक्त अरब अमीरात (UAE) अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाना चाहता है तथा तेल पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है, तथा ब्रिक्स की सदस्यता को सदस्य देशों के साथ व्यापक व्यापारिक संबंधों के अवसर के रूप में देखता है।
  • इथियोपिया अपने राष्ट्रीय विकास हेतु वित्तीय वृद्धि की, विशेष रूप से ब्रिक्स के राष्ट्रीय विकास बैंक से उम्मीद कर रहा है
  • मिस्र का मुख्य उद्देश्य अफ्रीकी-अरब विभाजन को समाप्त करना है तथा अपनी भू-राजनीतिक स्थिति को बढ़ाना है।

ब्रिक्स समूह से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:

  • आंतरिक जटिलताएं: संगठनात्मक विस्तार के बावजूद, ब्रिक्स को महत्वपूर्ण आंतरिक जटिलताओं और तनावों का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से भारत और चीन जैसे प्रमुख सदस्यों के बीच यह स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है।
  • भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण: सदस्य देश अक्सर विभिन्न मुद्दों पर भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण रखते हैं, जिससे समूह की एकता प्रभावित होती है।
    • उदाहरण: चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग वर्ष 2025 के रियो शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए।
  • महत्वपूर्ण खनिज: रियो शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने महत्वपूर्ण खनिजों पर निर्भरता के बारे में चिंता जताई, जिसका चीन द्वारा समर्थन किया जाना संभव नहीं है, क्योंकि वर्तमान संदर्भ में वह इस क्षेत्र पर अपना कब्ज़ा स्थापित कर रखा है।
  • चीन का प्रभुत्व: एक विकसित राष्ट्र के रूप में ब्रिक्स में चीन का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है। ब्रिक्स के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में चीन का योगदान तकरीबन 70% है।
    • चीन का राष्ट्रीय विकास बैंक (NDB), ब्रिक्स वेतन और डिजिटल मानदंडों की परिभाषा के नेतृत्व पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
    • हालांकि भारत वेतन और डिजिटल मानदंडों के संदर्भ में, इसका विरोध करता है तथा अमेरिकी प्रभुत्व से चीनी प्रभुत्व की ओर स्थानांतरण के बजाय एक वास्तविक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का पक्ष रखता है।

पश्चिमी संस्थाओं के विकल्प के रूप में ब्रिक्स:

ब्रिक्स ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी प्रभुत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (WB) जैसे वैश्विक शासन संरचनाओं का सामना करने के लिए सक्रिय रूप से वैकल्पिक संस्थानों का निर्माण किया है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे पश्चिमी देशों के पक्षधर हैं।

  • राष्ट्रीय विकास बैंक (NDB): ब्रिक्स द्वारा स्थापित, राष्ट्रीय विकास बैंक (NDB) विश्व बैंक (WB) के समान ही कार्य करता है, तथा परियोजनाओं के लिए ऋण प्रदान करता है
    • हाल के वर्षों में इसने 32 बिलियन डॉलर से अधिक का ऋण वितरित किया है
    • ब्रेटन वुड्स संस्थाओं के विपरीत, राष्ट्रीय विकास बैंक अपने सदस्यों को समान मतदान अधिकार प्रदान करता है तथा ऋण पर कम शर्तें लगाता है।
  • आकस्मिक वित्तीय रिजर्व व्यवस्था (CRA): यह व्यवस्था सदस्य देशों के लिए 100 बिलियन डॉलर तक की मुद्रा के साथ तरलता प्रदान करती है
    • आकस्मिक वित्तीय रिजर्व व्यवस्था उन सदस्यों को प्रत्यक्ष ऋण के बजाय डॉलर या अन्य मुद्राओं की आवश्यकता वाले मुद्रा विनिमय प्रावधान प्रदान करता है, जिन्हें इसकी तत्काल आवश्यकता है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के विकल्प के रूप में कार्य करता है, जो पश्चिमी देशों की व्यवस्था से काफी प्रभावित है।
  • ब्रिक्स पे नीति: इसे वर्ष 2018 में शुरू किया गया था। वर्ष 2025, ब्रिक्स पे एक सीमा पार डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म है, जिससे संयुक्त अरब अमीरात (UAE), ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश पहले से ही जुड़े हुए हैं।
    • यह मंच पश्चिमी नियंत्रित स्विफ्ट प्रणाली के विकल्प के रूप में महत्वपूर्ण है, जिसे हथियार बना दिया गया है (उदाहरण के लिए, रूस को खदेड़कर)।
    • ब्रिक्स पे, धन प्रेषण और लघु और मध्यम उद्यम (SME) व्यापार के लिए वास्तविक समय में, कम लागत वाले लेनदेन को सक्षम बनाता है।
    • वर्ष 2022 के बाद रुपया-रूबल निपटान के साथ भारत की कठिनाइयाँ और वैश्विक भुगतान नेटवर्क से रूस और ईरान के बहिष्कार ने संप्रभु विकल्पों की आवश्यकता को अत्यावश्यक बना दिया है।
  • भारत की UPI प्रणाली: भारत का यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) एक अत्यधिक सफल और स्केलेबल प्लेटफॉर्म है, जिसने जून 2024 में 14.3 बिलियन लेनदेन दर्ज किए हैं।
    • डिजिटल भुगतान के एक मॉडल के रूप में वैश्विक दक्षिण देशों, विशेषकर अफ्रीकी देशों ने भारतीय UPI में गहरी रुचि दर्ज की है
    • भारत पहले ही सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात और केन्या जैसे देशों में UPI को लागू कर चुका है, जिससे वहां भारतीय भुगतान आसानी से स्वीकार्य हो गए हैं।
  • खाद्य सुरक्षा और निर्यात नीतियां: ब्रिक्स वैश्विक खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो वैश्विक चावल का 52% और गेहूं का 42% उत्पादन करता है।
  • रियो शिखर सम्मेलन (2025): रियो शिखर सम्मेलन (2025) में, ब्रिक्स सदस्यों ने खाद्य निर्यात के हथियारीकरण की निंदा की, तथा तर्क दिया कि खाद्य को राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, जैसा कि ऐतिहासिक उदाहरणों में पश्चिमी देशों (जैसे, भारत के साथ PL-480 कार्यक्रम के दौरान अमेरिका) द्वारा किया गया है।
    • भारत का रुख: सामूहिक रुख के बावजूद, भारत ने इस प्रस्ताव का विरोध किया हैभारत का तर्क है कि कभी-कभी उसे चावल या गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध किसी हथियार के तौर पर नहीं, बल्कि अपनी विशाल जनसंख्या (1.4 अरब लोग) और घरेलू खाद्यान्न की कमी की चिंताओं के कारण लगाना पड़ता है। हालांकि वैश्विक दृष्टि से भारत पर अपने कृषि बाज़ार को बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए खोलने का भी दबाव बनाया जाता रहा है।

सुधार के प्रमुख क्षेत्र:

  • सुसंगतता: जबकि ब्रिक्स पश्चिमी देशों के खिलाफ केवल “शिकायतों का एक समूह” होने से काफी आगे बढ़ चुका है। फिनटेक, खाद्य प्रणालियों और डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं में एक मजबूत अभिकर्ता के रूप में उभर रहा है परंतु इसके सदस्यों के बीच और अधिक सुसंगतता आवश्यक है।
  • बहुध्रुवीयता और नियम आधारित व्यवस्था: इस समूह को केवल अमेरिकी प्रभुत्व को चीनी प्रभुत्व से बदलने के बजाय वैश्विक शासन के लिए बेहतर विकल्प प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहिए।
  • व्यापार: महत्वपूर्ण व्यापार, विशेष रूप से विमान पट्टे (85% डॉलर में), बंदरगाह लॉजिस्टिक्स, पुनर्बीमा और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में, अभी भी व्यापारिक लेन-देन मुख्य रूप से अमेरिकी डॉलर में सम्पन्न होता है, जो दर्शाता है कि डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए ब्रिक्स को अभी बहुत अधिक प्रयास करना है।

निष्कर्ष:

विश्वसनीय संस्थाओं, बहुलतावादी शासन और लागू करने योग्य मानदंडों के बिना ब्रिक्स उन्हीं असमानताओं को दोहरा सकता है, जिनसे बचना उसका मुख्य लक्ष्य है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: ब्रिक्स उभरती अर्थव्यवस्थाओं के एक प्रतीकात्मक गठबंधन से वैश्विक शासन के वैकल्पिक मॉडलों को आगे बढ़ाने वाले एक मंच के रूप में विकसित हुआ है। हाल के वर्षों में ब्रिक्स द्वारा सुनिश्चित प्रमुख सकारात्मक पहलों पर प्रकाश डालिए विस्तार के। साथ ही इसके संगठनात्मक विस्तार के बाद इसके सामने आने वाली आंतरिक जटिलताओं और संरचनात्मक चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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