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भारत में शहरी स्थानीय निकायों की विफलता तथा आवश्यक समाधान

Lokesh Pal October 24, 2025 05:30 97 0

संदर्भ:

भारतीय शहर दीर्घकालिक ट्रैफिक जाम, प्रदूषण, जलभराव और टूटी हुई सड़कों का सामना कर रहे हैं, जिसका कारण प्रायः खराब शहरी नियोजन और शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) की विफलता को माना जाता है।

शहरी स्थानीय निकायों से संबंधित कैग (CAG) के निष्कर्ष

  • लेखा परीक्षा कवरेज: 2024 में, कैग ने 18 राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) का लेखा परीक्षण किया।
  • मुख्य निष्कर्ष: ULBs के पास प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए आवश्यक शक्तियों का अभाव है, जिससे शहरी शासन कमज़ोर हो रहा है।

शहरी स्थानीय निकायों की सशक्तता – संवैधानिक प्रावधान

  • 74वाँ संविधान संशोधन, 1992: इस संशोधन ने ULBs को संवैधानिक मान्यता प्रदान की, जिससे राज्य सरकारों द्वारा मनमाने नियंत्रण को सीमित किया गया।
  • 12वीं अनुसूची: इसमें 18 कार्य सूचीबद्ध हैं – जिनमें शहरी नियोजन, सड़कें, जल आपूर्ति, स्वास्थ्य, अपशिष्ट प्रबंधन और मलिन बस्तियों का सुधार शामिल हैं – जिन्हें ULBs को हस्तांतरित किया जाना चाहिए।

ULBs से संबंधित तीन ‘F’ की विफलता

  • कार्य
    • सीमित हस्तांतरण: राज्यों ने 18 कार्यों में से केवल लगभग 4 को ULBs में स्थानांतरित किया है।
    • अर्ध-राज्य नियंत्रण:: नियोजन अक्सर डीडीए (DDA) या दिल्ली जल बोर्ड जैसे निकायों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिससे ULB के अधिकार को दरकिनार किया जाता है।
  • कार्यकर्ता
    • भर्ती शक्ति: ULBs स्वतंत्र रूप से इंजीनियरों, योजनाकारों या स्वच्छता कर्मचारियों की भर्ती नहीं कर सकते हैं।
    • रिक्तियाँ: कई पद अधूरे रहते हैं; उदाहरण के लिए, शिमला नगर निगम को 720 कर्मियों की आवश्यकता है।
  • वित्त
    • राज्यों पर निर्भरता: ULBs वित्तपोषण के लिए पूरी तरह से राज्य सरकारों पर निर्भर रहते हैं।
    • राजस्व संग्रह संबंधी मुद्दे: राजनीतिक हस्तक्षेप या क्षमता की कमी के कारण संपत्ति कर जैसे स्थानीय करों का खराब संग्रह होता है।
    • राज्य वित्त आयोग (SFCs): प्रायः अनदेखा या गठित नहीं किया जाता है, जिससे वित्तीय स्वायत्तता सीमित हो जाती है।

ULBs द्वारा सामना की जाने वाली प्रणालीगत चुनौतियाँ

  • चुनावी देरी: राज्य निर्वाचन आयोग प्रायः ULB चुनावों में देरी करते हैं, जिससे शक्ति गैर-निर्वाचित नौकरशाहों को हस्तांतरित हो जाती है।
  • नियोजन समितियों की विफलता:
    • जिला नियोजन समिति (DPC, अनुच्छेद 243ZD): केवल 10 राज्यों ने इसे निर्मित किया है; केवल 3 प्रभावी ढंग से योजनाओं को लागू करते हैं।
    • महानगर नियोजन समिति (MPC, अनुच्छेद 243ZE): 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में आवश्यक; केवल 3 राज्यों ने इसे बनाया है।

आगे की राह

  • कार्यों का हस्तांतरण: राज्यों को 12वीं अनुसूची में सूचीबद्ध सभी 18 कार्यों को ULBs को हस्तांतरित करना चाहिए।
  • एसईसी (SEC) को सुदृढ़ करना: ULB चुनावों में देरी को रोकने के लिए राज्य निर्वाचन आयोगों को पूरी तरह से स्वतंत्र बनाया जाना चाहिए।
  • नियोजन निकायों को सशक्त बनाना: प्रभावी क्षेत्रीय नियोजन के लिए जिला नियोजन समितियों (DPCs) और महानगरीय नियोजन समितियों (MPCs) को वैधानिक प्राधिकरण प्रदान किया जाना चाहिए।
  • वित्तीय स्वायत्तता: स्वतंत्र राज्य वित्त आयोगों (SFCs) का नियमित रूप से गठन किया जाना चाहिए और उनकी सिफारिशों को अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए।
  • भर्ती शक्ति: ULBs को इंजीनियरों, योजनाकारों, स्वच्छता कर्मचारियों और अन्य कर्मियों की स्वतंत्र रूप से भर्ती करने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

शहरी संकट मुख्य रूप से राजनीतिक है, तकनीकी नहीं। राज्य सरकारें 74वें संविधान संशोधन को उसकी सही भावना में लागू करने में विफल रहने के लिए उत्तरदायी हैं, जिससे स्थानीय शासन की प्रभावशीलता कमज़ोर हुई है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: जबकि भारत के बढ़ते शहरी संकट के लिए प्रायः शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को दोषी ठहराया जाता है, एक हालिया कैग रिपोर्ट के अनुसार, उनके पास वास्तविक शक्ति का अभाव है। आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण कीजिए, कि 74वें संवैधानिक संशोधन का गैर-कार्यान्वयन ने, विशेष रूप से ‘3F’ (कार्य, कार्यकर्ता और वित्त) के संबंध में, प्रभावी शहरी प्रशासन को किस प्रकार पंगु बना दिया है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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