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प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने से जुड़ी वैश्विक प्रतिक्रिया

Lokesh Pal August 19, 2025 05:15 6 0

संदर्भ:

पिछले सप्ताह, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा 2022 के बाद से सदस्य देशों को प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक संधि पर सहमत कराने का छठा प्रयास विरोध के चिरपरिचित भंवर में फंस गया।

वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण:

  • विश्व में प्रतिवर्ष 430 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है।
  • इस प्लास्टिक का दो-तिहाई हिस्सा अल्पकालिक उत्पाद होते हैं जो शीघ्र ही अपशिष्ट बन जाते हैं।
  • चिंताजनक बात यह है कि 46% प्लास्टिक कचरा लैंडफिल में पहुंच जाता है, तथा 22% का कुप्रबंधन होता है, जो समय के साथ कचरा बन जाता है।
  • जीवाश्म कच्चे तेल से प्राप्त प्लास्टिक भी जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
    • 2019 में, प्लास्टिक से 8 बिलियन मीट्रिक टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हुआ, जो वैश्विक स्तर पर कुल उत्पादन का लगभग 3.4% था।

भारत का प्लास्टिक पदचिह्न (India’s Plastic Footprint):

  • भारत में प्रतिवर्ष लगभग 4 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है।
  • इस कचरे का केवल 30% ही पुनर्चक्रित किया जाता है।
  • भारत में प्लास्टिक की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, 2016-17 में 14 मीट्रिक टन से बढ़कर 2019-20 में 20 मीट्रिक टन से अधिक हो गया, जो 9.7% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से लगातार बढ़ रहा है।
  • भारत ने कप, स्ट्रॉ और चम्मच सहित लगभग 20 एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • हालाँकि इससे कुछ व्यवहारगत परिवर्तन हुए हैं, जैसे कागज और कपड़े के थैलों पर अधिक निर्भरता, लेकिन समग्र अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण पर इसका बहुत कम प्रभाव पड़ा है।

मुख्य असहमति- उत्पादन बनाम अपशिष्ट प्रबंधन:

  • अपशिष्ट प्रबंधन समस्या के रूप में प्लास्टिक: कुछ देश प्लास्टिक प्रदूषण को मुख्य रूप से अपशिष्ट प्रबंधन समस्या के रूप में देखते हैं
    • उनका मानना है कि कचरे को बेहतर ढंग से एकत्रित करने और पुनर्चक्रण करने के लिए बाजार को प्रोत्साहन देकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
    • हालाँकि, इस दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए दशकों के प्रयासों से प्राप्त साक्ष्य सीमित लाभ दर्शाते हैं।
  • स्रोत न्यूनीकरण समस्या के रूप में प्लास्टिक: कुछ देशों का यह तर्क है कि एकमात्र वास्तविक समाधान प्लास्टिक उत्पादन को उसके स्रोत पर ही कम करना है।
    • यह परिप्रेक्ष्य इस बात के बढ़ते प्रमाण से और मजबूत होता है कि गैर-जैवनिम्नीकरणीय प्लास्टिक, जिसमें दानेदार माइक्रोप्लास्टिक भी शामिल है, मानव, पशु और समुद्री खाद्य प्रणालियों में प्रवेश कर रहा है, जिससे संभावित नुकसान हो रहा है।
    • द्वीपीय राष्ट्र और क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित होते हैं, तथा प्रायः उनके तटों पर प्लास्टिक कचरा जमा हो जाता है।
    • प्लास्टिक के इस ‘विषाक्तता’ पहलू पर राष्ट्र सार्वभौमिक रूप से सहमत नहीं हैं।
    • उत्पादन में कटौती के आह्वान को अक्सर व्यापार पर बाधाएं लगाने तथा टैरिफ अनिश्चितता को बढ़ाने की रणनीति के रूप में देखा जाता है।

निष्कर्ष:

वैश्विक वार्ता में गतिरोध आपसी विश्वास की कमी से उत्पन्न होता है।

  • वे “सुखद दिन” कब के बीत चुके हैं जब कुछ देश आसानी से “सामान्य हित” के आधार पर पर्यावरणीय संकल्प लेते थे।
  • जब तक राष्ट्र ऐसी चर्चाओं से पहले विश्वास का निर्माण नहीं कर सकते और एक-दूसरे की बात ईमानदारी से नहीं सुन सकते, तब तक केवल बैठकें आयोजित करना निरर्थक साबित होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: प्लास्टिक प्रदूषण पर एक संधि बनाने के वैश्विक प्रयासों को, विशेष रूप से स्रोत पर उत्पादन कम करने के मुद्दे पर, प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक स्तर पर और भारत में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए। विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाने की रणनीतियाँ सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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