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वैश्विक दक्षिण तथा भारत की आर्थिक परिवर्तन की दिशा

Lokesh Pal October 16, 2025 05:15 65 0

संदर्भ:

अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता, डिजिटल प्रभुत्व और संरक्षणवाद के कारण वैश्विक आर्थिक व्यवस्था संरचनात्मक पुनर्संरेखण (structural realignment) से गुज़र रही है, जिससे असमानता का खतरा उत्पन्न हो रहा है, लेकिन यह वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) जिसमें भारत भी शामिल है, को एक अधिक निष्पक्ष विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देने के अवसर भी प्रदान करता है।

उभरते आर्थिक प्रतिमानों का विश्लेषण

  • राज्य-पूंजी गठबंधनों का उदय: लोकलुभावन-सत्तावादी शासन राज्य-पूँजी गठजोड़ को बढ़ावा दे रहे हैं, जो अल्पाधिकार (oligopolies) और क्रोनी-पूंजीपतियों की सेवा करता है।
    • मुक्त-बाज़ार (Laissez-faire) पूंजीवाद के विपरीत, यह मॉडल सार्वजनिक संपत्तियों को गिरवी रखता है और नागरिक कल्याण पर निगम कल्याण को प्राथमिकता देता है, जिससे सामाजिक अनुबंध विकृत और लोकतंत्र कमजोर होता है।
    • अल्पाधिकार (Oligopolies) कुछ शक्तिशाली फर्मों के प्रभुत्व वाले बाज़ार होते हैं, जो मूल्य-निर्धारण और कम प्रतिस्पर्धा को सक्षम बनाते हैं। क्रोनी पूंजीपति लाभ उठाने के लिए राजनीतिक संबंधों का लाभ उठाते हैं, जिससे किराया-माँग (rent-seeking), बाज़ार विकृतियाँ और असमानता उत्पन्न होती है।

    • आरंभिक शासन कला (Primordial Statecraft) का पुनरुत्थान: लोकलुभावन-सत्तावादी रणनीतिक राष्ट्रवाद और संसाधन नियंत्रण से प्रेरित होते हैं।
    • अमेरिका चिप उत्पादन को ताइवान से हटा रहा है, अफ्रीका में दुर्लभ पृथ्वी (rare earths) तत्त्वों को सुरक्षित तथा व्यापार मार्गों को मजबूत कर रहा है, जिससे प्रभाव क्षेत्र की राजनीति पुनर्जीवित हो रही है जो संघर्षों और नरसंहार को बढ़ावा देती है।
  • डिजिटल उपनिवेशवाद और बिग टेक का प्रभुत्व: बिग टेक और क्लाउड पूंजीपति मूल्य शृंखलाओं से किराया (rent) निकालते हैं और राजनीतिक परिणामों को प्रभावित करते हैं।
    • राज्य-समर्थित डिजिटल मुद्राएँ, स्विफ्ट (SWIFT) का शस्त्रीकरण और क्लाउड एक्ट (Cloud Act) आर्थिक संप्रभुता को खतरे में डालते हैं तथा एफएटीएफ (FATF) मानदंडों को कमजोर करते हैं।
  • विकास सहायता की वापसी: G7 द्वारा $44 बिलियन की सहायता कटौती से अफ्रीका में लाखों लोग गरीबी में धकेले जा सकते हैं।
    • नेपाल और साहेल क्षेत्र में वित्तीय समर्थन में कमी ने प्रवासन, मिलिशिया भर्ती और अस्थिरता को बढ़ावा दिया है, जिससे अलोकतांत्रिक शक्तियों को बल मिला है।
  • टैरिफ, प्रतिबंध और आर्थिक विखंडन: 70 से अधिक देशों पर अमेरिकी टैरिफ और 30 से अधिक अन्य पर प्रतिबंध व्यापार को बाधित करते हैं तथा जापान और चीन जैसी अधिशेष अर्थव्यवस्थाओं को दंडित करते हैं।
    • वैश्विक दक्षिण द्विपक्षीय संधियों, डी-डॉलराइज़ेशन और स्थानीयकरण के माध्यम से जवाब दे रहा है, जो आर्थिक बहुध्रुवीयता का संकेत देता है।

वैश्विक दक्षिण के लिए अवसर

  • आर्थिक प्रभुत्व का ऐतिहासिक संदर्भ: भारत और चीन ने 2,000 वर्षों में से 1,800 वर्षों तक वैश्विक जीडीपी पर प्रभुत्व बनाए रखा।
    • नवउदारवाद (Neoliberalism) ने ऋण जाल (debt traps), श्रम शोषण और असमानता के माध्यम से इसे परिवर्तित कर दिया, जिससे कल्याण के लिए राजकोषीय स्थान (fiscal space) कम हो गया।
  • वैश्विक असमानता को संबोधित करना: 2022 विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 47% लोग $6.85/दिन से कम पर जीवन यापन करते हैं और 735 मिलियन लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं।
    • ऐसी असमानताएँ सामाजिक अशांति को बढ़ाती हैं और लोकलुभावन हेरफेर को सक्षम बनाती हैं।
  • एक नए आर्थिक समझौते का निर्माण: भारत और ग्लोबल साउथ को वैश्विक वित्तीय शासन का पुनर्गठन, एक ऋण-राहत ढाँचा निर्माण और BRICS तथा दक्षिण-दक्षिण भागीदारी को मजबूत करना चाहिए, ताकि एक नियम-आधारित समतामूलक प्रणाली सुनिश्चित हो सके।

आगे की राह

  • संतुलित राज्य-बाज़ार तालमेल: भारत को एक मिश्रित मॉडल अपनाना चाहिए, जहाँ राज्य का हस्तक्षेप बाज़ार की दक्षता का पूरक हो, यह सुनिश्चित करते हुए कि विकास असमानता, स्थिरता और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को संबोधित करे।
  • सार्वजनिक क्षेत्र का रणनीतिक पुनरोद्धार: सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) को केवल निजीकरण की बजाय रणनीतिक रूप से पुन: तैनात किया जाना चाहिए – राजस्व उत्पन्न करने, महत्वपूर्ण उद्योगों को मजबूत और भारत की वैश्विक आर्थिक उपस्थिति को बढ़ाने के लिए।
  • संप्रभु संपत्ति का निर्माण: भारत नॉर्वे के उदाहरण का अनुकरण करके एक संप्रभु धन कोष (Sovereign Wealth Fund) निर्मित कर सकता है, ताकि राष्ट्रीय संसाधनों से लाभ को दीर्घकालिक सार्वजनिक निवेश, सामाजिक कल्याण और भविष्य के आर्थिक लचीलेपन में लगाया जा सके।
  • ज्ञान और नवाचार नेतृत्व: उच्चतर शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान और संस्थागत स्वायत्तता में भारी निवेश भारत को एक वैश्विक ज्ञान केंद्र और नवाचार नेता के रूप में उभरने में सहायता करेगा।
  • नैतिक और संप्रभु डिजिटल व्यवस्था: डिजिटल-वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत डेटा संप्रभुता, निजता संरक्षण तथा डिजिटल बुनियादी ढाँचे तक समान पहुँच के माध्यम से संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप होना चाहिए।
  • सिद्धांत-आधारित और सुसंगत विदेश नीति: भारत की कूटनीति को प्रदर्शनकारी हाव-भावों पर दीर्घकालिक रणनीतिक स्थिरता और वास्तविक गुटनिरपेक्षता को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि बहुध्रुवीय विश्व में स्वतंत्रता बनी रहे।
  • रणनीतिक निरंतरता के लिए द्विदलीय सहमति: प्रमुख विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर सर्वदलीय समझौता स्थापित करने से राजनीतिक संक्रमणों में निरंतरता, विश्वसनीयता और लचीलापन सुनिश्चित होगा।

निष्कर्ष

भारत और वैश्विक दक्षिण के लिए, यह घरेलू पुनर्समायोजन, रणनीतिक कौशल और निष्पक्षता तथा आत्मनिर्भरता में निहित सहकारी अंतर्राष्ट्रीयता के माध्यम से समावेशी तथा समतामूलक प्रणाली का सह-निर्माण करने का एक ऐतिहासिक अवसर है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच उभरती भू-आर्थिक प्रतिद्वंद्विता वैश्विक व्यापार, प्रौद्योगिकी और वित्तीय प्रणाली को एक नवीन आकार दे रही है। चर्चा कीजिए, कि यह प्रतिद्वंद्विता विकसित हो रही विश्व व्यवस्था में भारत के रणनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों को किस प्रकार प्रभावित करती है।

(10 अंक, 150 शब्द)

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