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“प्रगति का लक्ष्य केवल तीव्रता नहीं, बल्कि भविष्य के लिए स्थायित्व भी होना चाहिए।”

Lokesh Pal May 21, 2025 05:00 70 0

संदर्भ:

भारत चरम मौसम, बढ़ते तापमान और अनियमित मानसून के कारण बढ़ते जलवायु संकट का सामना कर रहा है। पर्याप्त वैज्ञानिक साक्ष्यों और बढ़ते खतरों के बावजूद, भारत की नीति प्रतिक्रिया अब भी समन्वित दृष्टिकोण से रहित है तथा जलवायु भौतिक जोखिम (Climate Physical Risk – CPR) के मूल्यांकन हेतु कोई व्यापक संस्थागत ढाँचा उपलब्ध नहीं है।

बढ़ते जलवायु भौतिक जोखिम:

  • उच्च जलवायु जोखिम: भारत की 80% से अधिक आबादी जलवायु जोखिम -प्रवण जिलों में निवास करती है
  • जलवायु जोखिम के प्रकार (CPR): इसमें तीव्र आपदायें (बाढ़, हीटवेव्स) और दीर्घकालिक तनाव (सूखा, मानसून में बदलाव) शामिल हैं।
  • प्रणालीगत प्रभाव: ये जोखिम सार्वजनिक स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संकट उत्पन्न करते हैं।

प्रतिक्रियात्मक अनुकूलन और असंतुलित नीतिगत दृष्टिकोण:

  • प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण: भारत की अनुकूलन रणनीतियाँ, अधिकांशतः अल्पकालिक हैं और भविष्य के जलवायु अनुमानों पर आधारित नहीं हैं।
  • वित्तीय अंतराल के कारण अनुकूलन पर कम ध्यान: जलवायु वित्त का ध्यान शमन उपायों पर केंद्रित है, इसके अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण अनुकूलन अवसंरचनाओं के लिए अपर्याप्त वित्तपोषण हो रहा है
  • अनुकूलन पर उच्च प्रतिफल: अनुकूलन में निवेश किए गए प्रत्येक $1 से $4 तक की हानि से बचा जा सकता है, जिससे यह आर्थिक रूप से उचित है।

CPR को समझना: संकट, अनावरण एवं भेद्यता:

  • संदर्भित: IPCC ढाँचा, CPR को इस प्रकार परिभाषित करता है:
    • संकट (जैसे – बाढ़, चक्रवात, हीट वेव)।
    • अनावरण (कौन/क्या जोखिम में है)।
    • भेद्यता (सहने और ठीक होने की क्षमता)।
  • पैमाना: ये तीन कारक जलवायु जोखिम के वास्तविक पैमाने को निर्धारित करते हैं

विकसित होता नियामक परिदृश्य:

  • वैश्विक प्रकटीकरण में बदलाव: स्वैच्छिक से अनिवार्य CPR प्रकटीकरण की ओर बदलाव, वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ रहा है
  • जलवायु जोखिम: भारतीय रिजर्व बैंक अपने वित्तीय विनियमनों में जलवायु जोखिम को शामिल कर रहा है।
  • वैश्विक मानक में परिवर्तन: IFRS, ISSBS2 जैसे ढाँचे जलवायु जोखिम को व्यावसायिक योजना में एकीकृत कर रहे हैं।

असंतुलित राष्ट्रीय दृष्टिकोण:

  • भारत में एकीकृत प्रणाली का अभाव: CPR से संबंधित संसाधन जैसे बाढ़ मानचित्र और भेद्यता एटलस, असमन्वित हैं
  • वैश्विक मॉडलों की अक्षमता: प्रतिनिधि संकेन्द्रण मार्ग और साझा सामाजिक-आर्थिक मार्ग जैसे मॉडल भारत के क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन को शामिल करने में विफल रहते हैं।
  • आँकड़ा आधारित चुनौतियाँ: मानकीकृत आँकड़ों की अनुपस्थिति, सरकारी नीति और व्यावसायिक निर्णय दोनों में बाधा डालती है।

उठाए गए प्रारंभिक कदम:

  • अनुकूलन संचार: भारत ने 2023 में पेरिस समझौते के अनुच्छेद 7 के तहत अपना पहला आधिकारिक अनुकूलन संचार प्रस्तुत किया।
  • व्यापक राष्ट्रीय योजना पर हो रहा कार्य: एक नई राष्ट्रीय अनुकूलन योजना (NAP) का लक्ष्य जिला स्तर पर नौ क्षेत्रों को कवर करना है।

आगे की राह:

  • विशेषीकृत CPR उपकरण की आवश्यकता: भारत को एक विशेषीकृत CPR उपकरण विकसित करना चाहिए जिसमें निम्नलिखित शामिल हों:
    • स्थानीयकृत जलवायु मॉडलिंग
    • विस्तृत जोखिम आकलन
    • एक केंद्रीकृत डेटा हब
    • पारदर्शी, विज्ञान-आधारित कार्यप्रणाली
    • पुनरावृत्तीय फीडबैक लूप
  • नीति और निजी क्षेत्र में सहायता: इससे सार्वजनिक नीति डिजाइन और निजी क्षेत्र के जोखिम प्रबंधन दोनों में सहायता मिलेगी।

निष्कर्ष:

भारत की जलवायु प्रत्यास्थता, प्रतिक्रियात्मक प्रतिक्रियाओं से सक्रिय, डेटा-संचालित जोखिम आकलन की ओर परिवर्तित होनी चाहिए। एक मजबूत CPR ढाँचा यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि विकसित भारत के तहत प्रगति,संधारणीय और भविष्य के लिए स्थाई हो।

PW ONLY IAS विशेष:

  • जलवायु भौतिक जोखिम (CPR): यह जलवायु से संबंधित घटनाओं, जैसे बाढ़, सूखा, तूफान और बढ़ते तापमान के कारण होने वाली संभावित वित्तीय और आर्थिक हानि को संदर्भित करता है
  • अनुकूलन: इसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, जैसे समुद्र का बढ़ता जलस्तर या हीटवेव, से होने वाले नुकसान या लाभ को कम करने के लिए प्राकृतिक या मानवीय प्रणालियों को समायोजित करना, तथा निरंतर कार्यशीलता और अस्तित्व सुनिश्चित करना शामिल है
  • शमन: यह उन प्रयासों को संदर्भित करता है जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करते या रोकते हैं, जिसका उद्देश्य समय के साथ जलवायु परिवर्तन की सीमा को धीमा या सीमित करना है।
  • प्रत्यास्थता: यह प्रणालियों की वह क्षमता है जो अपने मुख्य कार्यों को बनाए रखते हुए बाढ़, सूखा या तूफान जैसे जलवायु संबंधी आपदाओं का सामना करना, उनसे उबरने और उनके अनुकूल होने में सक्षम होती है

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत की जलवायु अनुकूलन रणनीति संस्थागत विखंडन और डेटा विषमता से ग्रस्त है। चर्चा कीजिए कि एकीकृत जलवायु भौतिक जोखिम (CPR) मूल्यांकन ढाँचे की अनुपस्थिति, दीर्घकालिक जलवायु प्रत्यास्थता और नीति सुसंगतता को कैसे कमजोर करती है। टिप्पणी कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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