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भारतीय अभिशासन में सुशासन की उपयोगिता : एक समग्र अवलोकन

Lokesh Pal December 25, 2024 05:15 11 0

संदर्भ :

भारत ने हाल ही में 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री “अटल बिहारी वाजपेयी” की जन्म शताब्दी मनाई है, जिसे “सुशासन दिवस” के रूप में भी मनाया जाता है | यह वर्तमान में तीव्र गति से बदलते विश्व में शासन की उभरती अवधारणा पर विचार करने का एक उपयुक्त अवसर है।

जन-उन्मुख अभिशासन की आवश्यकता

  • शासन की विफलता की ओर संकेत : हाल ही में अमेरिकी नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा एक नए सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) का निर्माण तथा स्वास्थ्य सेवा सीईओ की गोली मारकर हत्या, जैसी घटनाएँ एक बढ़ती हुई अनुभूति को उजागर करती हैं एवं विश्व को बेहतर हेतु अधिक जन-उन्मुख शासन की आवश्यकता पर बल देती हैं । 
  • भारत से सीख : भारत के अनुभव मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जो वैश्विक अभिशासन चर्चाओं को समृद्ध कर सकते हैं।

DOGE का उद्देश्य

  • अनावश्यक या समानांतर संगठनों को समाप्त करना
  • अनावश्यक व्यय में कटौती करना
  • जवाबदेही का परिचय देना

सुशासन पर पुनर्विचार की आवश्यकता

  • लोकतंत्र के प्रति वैश्विक मोहभंग : ऐसे युग में, जिसमें लोकतंत्र के प्रति मोहभंग बढ़ रहा है, विशेष रूप से विश्व के कई भागों में सुशासन की अवधारणा पर पुनर्विचार करना अत्यंत आवश्यक है।
    • एकीकृत सिद्धांत : हार्वर्ड एकेडमिक पिप्पा नोरिस के “एकीकृत सिद्धांत” के अनुसार, सार्थक प्रगति के लिए उदार लोकतंत्र और राज्य क्षमता दोनों संस्थाओं को एक साथ मजबूत किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण : वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मूल अधिकार महत्त्वपूर्ण हैं, किन्तु राज्य के पास उनकी रक्षा करने की शक्ति भी होनी चाहिए। 
      • उदाहरण के लिए, अमेरिका में एक सीईओ को गोली मारने से बचाने में राज्य की विफलता राज्य की अक्षमता के परिणामों को उजागर करती है।
  • सुशासन में मानवीय तत्त्व : सुशासन की सफलता इसे लागू करने वालों की मानसिकता पर निर्भर करती है। 
    • पिछले दशक में, भारत में चर्चाओं ने अभिशासन सिद्धांत को व्यवहार में लाने के लिए मानसिकता में परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया है। 
    • इस परिवर्तन के बिना सुशासन एक सैद्धांतिक अवधारणा बनकर रह जाएगा, जो अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असमर्थ होगा।
  • पारंपरिक ज्ञान को एकीकृत करना : एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है, कि कैसे पारंपरिक अवधारणाएँ, जैसे- राजधर्म (शासक का मूलभूत और नैतिक कर्तव्य) की भारतीय अवधारणा, आधुनिक शासन प्रथाओं को सूचित कर सकती है।
    • राजधर्म, जैसा कि भारतीय इतिहास और धर्मग्रंथों में व्यक्त किया गया है, नेतृत्व के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है जो वर्तमान में विशेष रूप से प्रासंगिक है।

सुशासन की परिभाषा

  • विश्व बैंक की परिभाषा : सुशासन की अवधारणा को पहली बार वर्ष 1992 में विश्व बैंक की रिपोर्ट “अभिशासन और विकास” (गवर्नेंस एंड डेवलपमेंट) के साथ औपचारिक मान्यता मिली। 
    • सुशासन के आठ सिद्धांत : रिपोर्ट में सुशासन की प्रमुख विशेषताओं को रेखांकित किया गया है, जिसमें सहभागिता, पारदर्शिता, जवाबदेही, अनामिता, दक्षता, ईमानदारी, समानता, समावेशिता और विधि का शासन शामिल है।
    • रिपोर्ट में कमियाँ : हालाँकि, रिपोर्ट में कार्यान्वयन चरण पर जोर नहीं दिया गया है, जो शासन की सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण है। 
    • कार्यान्वयन का महत्त्व : प्रभावी अभिशासन दोषरहित कार्यान्वयन से शुरू होता है, जो भूमिगत स्तर पर लोगों की प्रतिबद्धता और समर्पण पर निर्भर करता है। 

संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिए गए सुशासन के आठ सिद्धांत

  • सहभागिता : यह सिद्धांत व्यक्तियों को अपने विचार व्यक्त करने और अभिशासन प्रक्रिया में सक्रिय योगदानकर्ता बनने की अनुमति देने के महत्त्व को रेखांकित करता है।
    • उदाहरण : ग्राम सभा चुनावों में मतदाता नीति निर्माण प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
  • सर्वसम्मति-उन्मुख : आम सहमति को प्रोत्साहित करते हुए, यह सिद्धांत निर्णय प्रक्रिया को बढ़ावा देता है जो विविध हितधारकों के बीच सामूहिक समझौते को दर्शाता है।
    • उदाहरण : पेरिस जलवायु समझौता, जहाँ विभिन्न राष्ट्र इस विषय पर आम सहमति पर पहुँचे, कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने की आवश्यकता है तथा प्रत्येक ने उत्सर्जन में कमी के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित किए ।
  • जवाबदेहिता : यह अधिकारियों को उनके कार्यों और निर्णयों हेतु जनता के प्रति जवाबदेह बनाती है ।
    • उदाहरण : सूचना का अधिकार (RTI) सरकारी जवाबदेहिता सुनिश्चित करने का एक साधन है।
  • पारदर्शिता : यह अभिशासन में स्पष्टता सुनिश्चित करती है, जिससे नागरिकों को सरकारी कार्यों और निर्णयों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  • उत्तरदायित्व : यह सिद्धांत नागरिक शिकायतों के त्वरित और प्रभावी निवारण, नागरिक-केंद्रित नीतियों तथा आवश्यक सेवाओं की समय पर पहुँच की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • प्रभावी और कुशल : शासन को यह सुनिश्चित करते हुए कि सार्वजनिक संसाधनों का प्रभावी और कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सके, संसाधनों के इष्टतम उपयोग हेतु प्रयास करना चाहिए, । 
  • न्यायसंगत और समावेशी : समानता के सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए शासन को यह सुनिश्चित करना  चाहिए, कि समाज के सभी वर्गों को अवसरों और लाभों तक एकसमान पहुँच प्राप्त हो। 
  • विधि का शासन : विधिक ढाँचे के निष्पक्ष प्रवर्तन और मानवाधिकारों की सुरक्षा पर बल देते हुए, यह सिद्धांत एक न्यायपूर्ण और निष्पक्ष समाज की आधारशिला निर्मित करता है।

  • पी2जी2 (P2G2) की भूमिका : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पी2जी2 (प्रो-पीपुल्स गुड गवर्नेंस) की अवधारणा, जिसे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान शासन के सभी स्तरों पर संवेदनशीलता, प्रतिबद्धता और जिम्मेदारी पर बल देने के लिए गढ़ा गया था। 
    • इन मूल गुणों के बिना, सुशासन केवल एक सैद्धांतिक आदर्श बनकर रह जाता है।

भारतीय अभिशासन में नवाचार

भारत ने कई नवीन अभिशासन अवधारणाएँ प्रस्तुत की हैं, जो सुशासन पर वैश्विक चर्चा में योगदान देती हैं।

  • प्रौद्योगिकी का लोकतंत्रीकरण : उन्नत प्रौद्योगिकियों को सभी के लिए सुलभ बनाना; उदाहरण के लिए, यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) ने लाखों भारतीयों के लिए उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की चिंता किए बिना निर्बाध डिजिटल भुगतान को सक्षम किया है।
  • पर्यावरण संबंधी जीवनशैली : यह पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए संसाधनों के  विनाशकारी उपभोग के बजाय उचित और सतत उपयोग पर बल देता है।
  • महिलाओं के नेतृत्व में विकास : यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति को आगे बढ़ाने में नेतृत्व संबंधी भूमिकाएँ निभाने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाने पर जोर देता है।
  • सबका प्रयास : सबका प्रयास की अवधारणा विकास में सामूहिक भागीदारी के महत्त्व पर बल देती है, नागरिकों को केवल सरकार पर निर्भर रहने के बजाय स्वयं जिम्मेदारी लेने हेतु प्रोत्साहित करती है।

प्राचीन भारतीय ज्ञान

  • अंत्योदय : अंत्योदय का तात्पर्य समाज के हाशिए पर व्याप्त और वंचित वर्गों के उत्थान से है, जिसका ध्यान “अंतिम पंक्ति में” के जीवन को बेहतर बनाने पर केंद्रित है।
  • अर्थशास्त्र में राजधर्म : कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में व्यक्त राजधर्म का विचार इस बात पर बल देता है, कि शासकों को समाज के सबसे कमजोर वर्गों यथा- बच्चों, बुजुर्गों, निःसंतान महिलाओं और अशक्तों की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। अर्थशास्त्र में राजा को राज्य का सेवक भी बताया गया है।
  • शिवाजी महाराज का राजत्व : छत्रपति शिवाजी महाराज के राजत्व का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला “उपभोगशून्य स्वामी” (व्यक्तिगत अभिवृद्धि के बिना विषयों का पूर्ण स्वामित्व) का सिद्धांत, लोगों के कल्याण पर केंद्रित निस्वार्थ नेतृत्व का उदाहरण है ।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि भारत के सभ्यतागत विश्व दृष्टिकोण में वैश्विक अभिशासन चर्चाओं को आकार देने की क्षमता है। लोकतांत्रिक शासन की समृद्ध परंपरा वाले देश के रूप में, भारत वैश्विक अभिशासन तंत्र में सुधार के प्रयासों का नेतृत्व कर सकता है, विशेष रूप से दक्षिण-दक्षिण सहयोग मॉडल के माध्यम से यह और भी उपयोगी है ।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

भारत की पारंपरिक अवधारणाओं जैसे ‘राजधर्म’ और ‘अंत्योदय’ के ऐतिहासिक महत्त्व के परिप्रेक्ष्य में आधुनिक अभिशासन ढाँचे में इनकी प्रासंगिकता की जाँच कीजिए । साथ ही चर्चा कीजिए कि ये सिद्धांत लोकतांत्रिक शासन में समकालीन वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं।

(15 अंक, 250 शब्द)

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