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प्रतिनिधि लोकतंत्र के निर्धारण में निर्वाचन प्रक्रियाओं में ‘नोटा’ का महत्त्व

Lokesh Pal May 16, 2025 05:00 116 0

संदर्भ:

हाल ही में, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने एक जनहित याचिका (PIL) दायर की है, जिसमें यह माँग की गई है कि नोटा’ (None of the Above) को प्रत्येक चुनाव में अनिवार्य रूप से एक विकल्प के रूप में शामिल किया जाए, चाहे चुनाव में केवल एक ही उम्मीदवार क्यों न हो।

नोटा (NOTA) का परिचय

  • प्रारंभ वर्ष: 2013
  • प्रारंभ: पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) के माध्यम से।
  • उद्देश्य: मतदाता के मतदान न देने के अधिकार को मान्यता देना, साथ ही उस विकल्प की गोपनीयता सुनिश्चित करना।

भारतीय चुनावों में नोटा (NOTA) का महत्त्व

  • कम उपयोग: राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चुनावों में नोटा (NOTA) का सीमित उपयोग देखा गया है।
  • लोकतांत्रिक मूल्य: यह मतदाताओं को असहमति व्यक्त करने का एक माध्यम प्रदान करता है, विशेष रूप से बिना प्रतिद्वंद्वी वाले चुनावों में इसका महत्त्व बढ़ जाता है।
  • निर्वाचन आयोग द्वारा आलोचना: दावा है, कि नोटा (NOTA) से अपेक्षित चुनावी प्रभाव नहीं पड़ रहा है।

निर्वाचन आयोग (EC) का तर्क

  • जनहित याचिका (PIL) का विरोध: निर्वाचन आयोग सभी निर्वाचन क्षेत्रों में नोटा (NOTA) को अनिवार्य बनाने के विरुद्ध है।
  • सांख्यिकीय औचित्य:
    •  1971 के बाद केवल 6 बिना प्रतिद्वंदी (केवल एक उम्मीदवार) वाले लोकसभा चुनाव हुए हैं।
    •  1952 के बाद केवल 9 बिना विरोध के विजेता हुए हैं।
  • विधिक दृष्टिकोण:
    •  वर्तमान कानून (RPA, 1951 और निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961) अनिवार्य नोटा (NOTA) का समर्थन नहीं करते हैं।
    •  किसी भी परिवर्तन के लिए विधायी संशोधन की आवश्यकता होगी।

नोटा (NOTA) मतदान का पैमाना

  • मतदाताओं का प्रतिशत: 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में लगभग 1% मतदाताओं ने नोटा (NOTA) के पक्ष में मतदान किया।
  • संपूर्ण संख्या का महत्त्व: प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 25 लाख मतदाता होने के साथ, 1% वोट भी महत्त्वपूर्ण होता है।
  • राज्यवार उदाहरण: बिहार (2015)- 2.48% के साथ सबसे अधिक और गुजरात (2017)- 1.8%
  • मुख्य दृष्टिकोण: शुरुआत के बाद पहले चुनाव में नोटा (NOTA) का उच्च मतदान प्रतिशत, फिर धीरे-धीरे गिरावट— यह हमेशा रैखिक (linear) नहीं होता।

संभावित सुधार

  • वोट सीमा निर्धारित करना: एक उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम प्रतिशत वोट निर्धारित करें।
  • नोटा (NOTA) को सशक्त बनाना:
    •  यदि नोटा (NOTA) एक निश्चित सीमा तक वोट प्राप्त करता है, तो पुनः चुनाव कराने की माँग की जाए।
    •  यह मतदाता की असहमति को वैधता प्रदान करता है और लोकतंत्र को मज़बूत बनाता है।

निष्कर्ष

यद्यपि नोटा (NOTA) को वर्तमान में कम मतदाता समर्थन मिल सकता है, फिर भी इसका अनिवार्य समावेश—यहाँ तक कि निर्विरोध चुनावों में भी—लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति को बनाए रख सकता है, जवाबदेही को प्रोत्साहित कर सकता है, तथा वास्तविक मतदाता भावना को प्रतिबिंबित करने वाले चुनावी सुधारों को प्रेरित कर सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत में चुनावी परिणामों और राजनीतिक भागीदारी पर नोट के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए। क्या यह अपने निर्धारित उद्देश्य को पूरा करने में सफल रहा है या केवल एक प्रतीकात्मक उपकरण बनकर रह गया है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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