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भारतीय संविधान: सामूहिक बुद्धिमता और विविध आकांक्षाओं का प्रतिबिंब

Lokesh Pal June 16, 2025 05:00 11 0

संदर्भ:

हमें इस बात के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है कि संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह सम्पूर्ण देश के सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श का परिणाम है। यह पूरे राष्ट्र की सामूहिक बुद्धिमता और विविध आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है

तीन वर्षों की गहन संवैधानिक विचार-विमर्श:

  • संविधान वर्षों की बहस और दूरदर्शिता का परिणाम है। यह केवल एक नियमों की पुस्तक नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता का दर्पण है।
  • इतिहासकार ग्रेनविल ऑस्टिन ने संविधान सभा कोसूक्ष्म भारत कहा, जो विभिन्न विचारधाराओं का प्रतिबिंब थी।
  • संविधान सभा (सीए) ने अगस्त 1946 से 26 जनवरी, 1950 तक कार्य किया।
  • संविधान को 26 जनवरी को स्वीकृत कर उस पर हस्ताक्षर किए गए, और इसी तिथि को प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।

संविधान निर्माण की प्रारंभिक पहल:

  • 1933: संविधान की परिकल्पना सबसे पहले वी. के. कृष्ण मेनन द्वारा प्रस्तुत की गई।
  • 1936: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लखनऊ अधिवेशन में इसकी औपचारिक रूप से मांग की
  • 1940: अगस्त 1940 में ब्रिटिश सरकार द्वारा संविधान की मांग को स्वीकार कर लिया गया, जिससे कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा के चुनावों का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • 1946: जुलाई 1946 में संविधान सभा का चुनाव हुआ, लेकिन ये चुनाव सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर नहीं, बल्कि प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत कराया गया
    •  साथ ही, इसमें 93 रियासतों और 4 मुख्य आयुक्तों (दिल्ली, अजमेर-मेरवाड़ा, कूर्ग, बलूचिस्तान) से नामांकित सदस्यों को भी शामिल किया गया।
  • संविधान सभा की कुल संख्या: कुल 299 सदस्य, जिनमें रूढ़िवादी, प्रगतिशील, मार्क्सवादी, हिंदू पुनर्जागरणवादी, और इस्लामी विचारधाराओं के प्रतिनिधि शामिल थे।
    •  इन चुनावों में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 208 सीटें (लगभग 69%) मिलीं जबकि मुस्लिम लीग को 73 सीटें प्राप्त हुईं।
    •  इस चुनाव के बाद, मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया, जिससे राजनीतिक स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो गई।
    •  भारत के विभाजन की घोषणा के बाद लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किया, लेकिन इसके 73 में से 28 सदस्यों ने बहिष्कार को नज़रअंदाज़ करते हुए सभा में भाग लिया।
    •  इसके बावजूद, संविधान सभा की कुल 114 बैठकें हुईं, संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन का समय लगा था।

संविधान सभा के प्रमुख नेतृत्वकर्ता:

  • राजेंद्र प्रसाद: संविधान सभा के अध्यक्ष।
  • ​​ एच.सी. मुखर्जी: संविधान सभा के उपाध्यक्ष।
  • ​​ डॉ. बी.आर. अंबेडकर: प्रारूप समिति के अध्यक्ष।
  • ​​ बी.एन. राव: संवैधानिक सलाहकार जिन्होंने संविधान का प्रथम प्रारूप तैयार किया।

संविधान सभा में महत्त्वपूर्ण विषयों पर आधारित बहस:

  • सार्वभौमिक मताधिकार: अनेक लोगों का मानना ​​था कि भारतीय जनता मताधिकार के लिए तैयार नहीं थी।
    •  नेहरू ने आलोचकों के सामने इसका बचाव करते हुए कहा, किसान की आवाज़ एक प्रोफेसर की आवाज़ जितनी ही महत्वपूर्ण है।
    •  इस सोच ने सहभागी लोकतंत्र की नींव रखी और सभी नागरिकों को सशक्त बनाने पर बल दिया।
  • रियासतों का एकीकरण: भारतीय संघ में रियासतों के एकीकरण का नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया, जिसमें कूटनीति और दृढ़ता का संतुलित प्रयोग किया गया था। इसके माध्यम से 560 से अधिक विभिन्न रियासतों को एक राष्ट्र में राजनीतिक रूप से एकीकृत किया गया, जिसमें एकीकरण दस्तावेज और जनमत संग्रह जैसे माध्यमों का उपयोग हुआ था।
    •  हैदराबाद जैसी एकीकृत रियासतों ने ब्रिटिश प्रांतों के साथ मिलकर भारतीय संघ का गठन किया
    •  बाद में, इन राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर किया गया, जिसकी शुरुआत राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 से हुई, जो एक एकीकृत ढांचे के भीतर सांस्कृतिक और भाषा की पहचान को मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
  • संघवाद और आपातकालीन शक्तियों का उपयोग: इस बात पर पर्याप्त बहस हुई कि केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए या राज्यों को परंतु अंत में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया गया
    •  आपातकालीन शक्तियाँ केंद्र को प्रदान की गईं, जिन्हें असाधारण परिस्थितियों में प्रयोग करने के लिए आरक्षित रखा गया।
  • भाषा और भाषाई राज्य: हिंदी को आधिकारिक भाषा घोषित किया गया न कि राष्ट्रभाषा।
    •  संविधान सभा ने स्वतंत्रता के तुरंत बाद राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन नहीं करने का निर्णय लिया। इसके बजाय, उसने राजनीतिक एकीकरण और राष्ट्रीय स्थिरता को प्राथमिकता दी।
    •  यह मुद्दा स्थगित कर दिया गया और बाद में राज्य पुनर्गठन आयोग (1953) के माध्यम से उठाया गया, जिसके आधार पर राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 पारित हुआ और राज्यों का पुनर्गठन मुख्य रूप से भाषा के आधार पर किया गया।
  • अधिकार बनाम नीति निर्देशक सिद्धांत: इस विषय के संदर्भ में, संविधान सभा ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया, जिसमे मौलिक अधिकारों को न्यायोचित और विधिक रूप से लागू करने योग्य बनाया गया, जबकि नीति निर्देशक सिद्धांतों को गैर-न्यायसंगत रखा गया, लेकिन उन्हें शासन के लिए आवश्यक और राज्यों का नैतिक कर्तव्य माना गया
    •  यह दृष्टिकोण व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक-आर्थिक न्याय के बीच सामंजस्य स्थापित करने के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
  • आरक्षण और सामाजिक न्याय: संविधान सभा ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विधानसभाओं, नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण को स्वीकार किया, ताकि सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके और ऐतिहासिक रूप से शोषित समुदायों का उत्थान हो सके।
    •  डॉ अंबेडकर ने एससी/एसटी आरक्षण के पक्ष में मजबूती से अपने तर्क रखे और असमानता की उपेक्षा के खतरनाक परिणामों की चेतावनी दी।
    •  डॉ अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि “जो लोग असमानता से पीड़ित हैं, वे लोकतंत्र की संरचना को नष्ट कर देंगे
  • धर्मनिरपेक्षता: हिंदू सांस्कृतिक पहचान को मान्यता देने की मांग भी उठाई गई थी। लेकिन लंबी बहस के बाद, यह सहमति बनी कि नव गठित गणराज्य सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करेगा

संविधान को अपनाना:

  • 26 नवंबर 1949 को, संविधान बनकर तैयार हुआ। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह अपनी तरह का दुनिया का सबसे विस्तृत संविधान है, जिसमें 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियाँ, और 22 भाग शामिल हैं।
  • यह संविधान निर्माताओं की प्रतिबद्धता को दर्शाता है और 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ।

संविधान निर्माण में महिलाओं की भूमिका:

  • संविधान सभा में कुल 15 महिलाओं ने भाग लिया, जिनमें दुर्गाबाई देशमुख, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित और कमला चौधरी आदि शामिल थीं।
    •  उनकी आवाज़ों ने लैंगिक संवेदनशीलता और समावेशिता से युक्त प्रावधानों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

दक्षिण भारत से उल्लेखनीय योगदान:

  • प्रारूपण में दक्षिण भारतीय बुद्धिजीवियों का प्रभुत्व:
    •  प्रारूप समिति में अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, गोपाल स्वामी अयंगार, एन. माधव राव और टी.टी. कृष्णमाचारी शामिल थे।
    •  पट्टाभि सीतारमैया ने सदन की मुख्य समिति की अध्यक्षता की।
    •  वी.टी. कृष्णमाचारी बाद में संविधान सभा के दूसरे उपाध्यक्ष बने।
    •  बी. एन. राव, जो संविधान के सलाहकार थे, वे भी दक्षिण भारत से थे।

निष्कर्ष:

भारतीय संविधान राष्ट्र की सामूहिक सभ्यतागत बुद्धिमत्ता को दर्शाता है जैसे कि एकं सत् विप्रा बहुधा वदंति“, अशोक के अभिलेखों में दिखाई गई धार्मिक सहिष्णुता, आदि और प्रस्तावना गणराज्य की आत्मा को अभिव्यक्त करती है।

  •  जब नेता संविधान का उल्लेख करते हैं, तो उन्हें यह याद रखना चाहिए कि यह एक समृद्ध, विविध, और गहराई से भारतीय बौद्धिक परिश्रम का परिणाम है।

मख्यु परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. भारतीय संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह भारत की सभ्यता, सांस्कृतिक मूल्यों और बहुलतावादी विरासत का प्रतिबिंब है। संविधान सभा में हुए विचार-विमर्श और विविध प्रतिनिधित्व के संदर्भ में एक तर्कसंगत विवेचना प्रस्तुत कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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