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वर्तमान द्विध्रुवीय विश्व में भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख विकल्प

Lokesh Pal October 21, 2024 05:45 53 0

संदर्भ :

वर्तमान में अमेरिका और चीन के बीच वैश्विक तनाव बढ़ रहा है, इसलिए भारत को इस नए भू-राजनीतिक परिदृश्य में अलग-थलग होने से बचने के लिए सावधानीपूर्वक अपनी स्थिति बनाए रखनी होगी।

पृष्ठभूमि 

  • शीत युद्ध की गतिशीलता : शीत युद्ध में अमेरिका और USSR के बीच तीव्र प्रतिस्पर्द्धा देखी गई, जिसमें कोई कूटनीतिक संवाद नहीं था, परन्तु छद्म युद्ध और सैन्य शक्ति (जैसे- उपग्रह प्रक्षेपण, परमाणु हथियार) पर ध्यान केंद्रित किया गया था ।
  • शीत युद्ध के बाद का युग : शीत युद्ध के बाद अमेरिका एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा, लेकिन समय के साथ इसके प्रभुत्व को चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • चीन का उदय : 2008 के वित्तीय संकट के बाद से चीन तेजी से एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा है और विश्व का अग्रणी निर्माता बन गया है।
  • दृढ़ नेतृत्व : शी जिनपिंग के नेतृत्व में, चीन सक्रिय रूप से वैश्विक व्यवस्था को नया आकार देने और अमेरिकी आधिपत्य को चुनौती देने का प्रयास कर रहा है, जिसका लक्ष्य अधिक वैश्विक प्रभाव प्राप्त करना है।

शीत युद्धकालीन ध्रुवीयता और वर्तमान ध्रुवीयता के बीच अंतर

1. प्रतिद्वंद्विता का स्वरूप

  • शीत युद्ध : यह प्रतिद्वंद्विता मूल रूप से वैचारिक थी, जिसमें पूँजीवाद (अमेरिका) और साम्यवाद (USSR) के बीच अलग-अलग सहयोगी गुटों के मध्य संघर्ष था।
  • वर्तमान : आज की प्रतिस्पर्द्धा मुख्य रूप से आर्थिक है, जिसमें दो परस्पर संबंधित महाशक्तियाँ (अमेरिका और चीन) शामिल हैं, जिनके बीच कोई स्पष्ट वैचारिक विभाजन नहीं है।

2. आर्थिक निर्भरता

  • शीत युद्ध : आर्थिक संबंध न्यूनतम थे, देश अपने-अपने वैचारिक खेमों में काफी हद तक अलग-थलग थे।
  • वर्तमान : अमेरिका और चीन के बीच मजबूत व्यापार और निवेश प्रवाह की विशेषता के साथ महत्त्वपूर्ण आर्थिक निर्भरता व्याप्त है। 
    • अमेरिका चीन में भारी मात्रा में निवेश करता है, जिसके पास पर्याप्त मात्रा में अमेरिकी ट्रेजरी बांड हैं। 
    • चीन अमेरिकी पर्यटकों के लिए सबसे बड़ा गंतव्य है।

3. सैन्य संतुलन

  • शीत युद्ध : अमेरिका और USSR की सैन्य क्षमताएँ अपेक्षाकृत बराबर थीं।
  • वर्तमान : चीन तेजी से अमेरिका के साथ सैन्य समानता की ओर बढ़ रहा है, जिससे शक्ति गतिशीलता में परिवर्तन आ रहा है।
    • पेंटागन ने उल्लेख किया है कि चीनी नौसेना ने युद्ध-शक्ति वाले जहाजों के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है।
    • हालाँकि अभी भी क्षमता में काफी अंतर है, लेकिन चीन को अमेरिका के साथ सैन्य समानता हासिल करने में निश्चित रूप से कुछ समय लगेगा।

4. अलगाव की नीति

  • शीत युद्ध : अमेरिका ने USSR को पूरी तरह से अलग-थलग करने की कोशिश की, जिससे उसे प्रभाव विस्तार से रोका जा सके।
  • वर्तमान : इसके विपरीत, आर्थिक निर्भरता के उच्च स्तर और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका के कारण चीन को पूरी तरह से अलग-थलग करना संभव नहीं है। 
    • यह अमेरिका की ‘डिकॉप्लिंग’ (संबंधों को तोड़ना) की नीति से ‘डी-रिस्किंग’ (सहयोग बनाए रखते हुए जोखिमों का प्रबंधन करना) की नीति में बदलाव में परिलक्षित होता है।

रूस की भूमिका

  • आर्थिक सीमाएँ : रूस का सकल घरेलू उत्पाद इटली के बराबर है, जो इसकी सीमित आर्थिक क्षमता को दर्शाता है।
  • सैन्य क्षमताएँ : एक मजबूत सैन्य और महत्त्वपूर्ण परमाणु संसाधन होने के बावजूद, रूस का सैन्य बजट चीन की तुलना में बहुत कम है, जो इसके आधुनिकीकरण प्रयासों को सीमित करता है।
  • चीन के साथ भागीदारी : कुछ पर्यवेक्षक वर्तमान स्थिति को “दो-और-आधा शक्ति विश्व” के रूप में वर्णित करते हैं, जहाँ रूस चीन के लिए एक महत्त्वपूर्ण जूनियर भागीदार के रूप में कार्य करता है।
    • इस संबंध का उदाहरण यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों के लिए चीन का समर्थन है, जो पश्चिमी प्रभाव के विरुद्ध साझा हित को दर्शाता है।
  • उभरती हुई धुरी : यह प्रतिद्वंद्विता केवल अमेरिका और चीन के बीच नहीं है, इसमें चीन और रूस की धुरी भी शामिल है।
    • इसके अतिरिक्त, उत्तर कोरिया और ईरान का प्रभाव भू-राजनीतिक परिदृश्य को जटिल बना रहा है, जो सरल द्विध्रुवीयता से दूर जाने का संकेत देता है।

हिंद-प्रशांत : एक नया रणनीतिक क्षेत्र

  • सामरिक महत्त्व : चीन की महत्त्वाकांक्षाओं को संतुलित करने के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र महत्त्वपूर्ण बन गया है, जिसमें अमेरिका और भारत सहित उसके सहयोगी सक्रिय रूप से शामिल हैं।
  • चीन की नौसैनिक महत्त्वाकांक्षाएँ : चीन अपनी नौसेना क्षमताओं को आगे बढ़ा रहा है, जिसका लक्ष्य एक ‘ब्लू-वाटर नौसेना’ स्थापित करना है, जिससे वैश्विक स्तर पर अपनी शक्ति को प्रदर्शित करने की उसकी क्षमता में वृद्धि होगी।
  • क्षेत्रीय पहल : क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया) तथा AUKUS (अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया) जैसी पहलों को चीन की मुखरता का मुकाबला करते हुए “स्वतंत्र और खुले इंडो-प्रशांत क्षेत्र” को बढ़ावा देने के लिए निर्मित किया गया है।

भारत के लिए निहितार्थ

  • रणनीतिक स्थिति : भारत को अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता से बचने के लिए अपनी संप्रभुता का दावा करना चाहिए। एक संतुलित विदेश नीति आवश्यक है, जिसके लिए दोनों महाशक्तियों के साथ जुड़ाव अनिवार्य है।
  • संवाद बनाए रखना : भारत को राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए अमेरिका और चीन के साथ निरंतर संवाद को बढ़ावा देना चाहिए, मुख्य रूप से चीन के साथ अपनी साझा सीमा को देखते हुए यह और भी आवश्यक हो जाता है।
  • सहयोग का लाभ उठाना : भारत को अपने हितों के आधार पर रणनीतिक रूप से जुड़ना चाहिए – अमेरिका के साथ तकनीकी सहयोग करना चाहिए, जबकि लाभकारी होने पर चीन के साथ आर्थिक सहयोग करना चाहिए।
  • राष्ट्रीय हित : राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है, भारत को अपनी सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ाते हुए वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य की जटिलताओं को समझना चाहिए।

निष्कर्ष 

एक बार फिर उभरते द्विध्रुवीय विश्व में, भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए अमेरिका और चीन दोनों के साथ अपने संबंधों को रणनीतिक रूप से आगे बढ़ाना चाहिए। संप्रभुता की रक्षा और दीर्घकालिक सुरक्षा तथा विकास को बढ़ावा देने के लिए यह संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

वैश्विक द्विध्रुवीकरण से आप क्या समझते हैं ? शीत युद्धकालीन द्विध्रुवीकरण तथा वर्तमान द्विध्रुवीकरण के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए | वर्तमान द्विध्रुवीकरण के भारत पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट कीजिए |

(15 अंक, 250 शब्द) 

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