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CBSE की कक्षा 10वीं के लिए ‘दो-परीक्षा योजना’ की आवश्यकता एवं चुनौतियाँ

Lokesh Pal March 27, 2025 05:00 48 0

“वास्तविकता का निर्माण विचारों द्वारा होता है। हम अपने विचार बदलकर अपनी वास्तविकता को बदल सकते हैं।” – प्लेटो

संदर्भ:

सीबीएसई ने कक्षा 10 के विद्यार्थियों को वर्ष में दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति देने का प्रस्ताव दिया है, जो कि फरवरी/मार्च और मई के लिए संभावित है।

हालिया सुधार

  • मुख्य बिंदु: यह सुधार नई शिक्षा नीति, 2020 के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों पर दबाव कम करना, अंकों में सुधार का अतिरिक्त अवसर प्रदान करना एवं अधिक समग्र मूल्यांकन मॉडल प्रस्तुत करना है।
  • उद्देश्य: प्रस्ताव “2026 से दसवीं कक्षा के लिए दो परीक्षाओं हेतु मसौदा योजना”, का उद्देश्य शिक्षा परिचालन और शैक्षणिक चिंताओं को दूर करना है, लेकिन यह कई चुनौतियों को भी सामने लाता है।

संबंधित चुनौतियाँ

  • लॉजिस्टिक्स पर ध्यान: मसौदा संकल्पनात्मक शिक्षण पर शेड्यूलिंग और लॉजिस्टिक्स को प्राथमिकता देता है, जबकि NEP-2020 में योग्यता-आधारित मूल्यांकन और संकल्पनात्मक शिक्षण की ओर परिवर्तन पर ज़ोर दिया गया है।
  • अस्पष्ट प्रश्न-पत्र: यह अस्पष्ट है, कि प्रश्न-पत्र याद करने की बजाय मुख्य योग्यताओं का परीक्षण करने के परिवर्तन को कैसे दर्शाएंगे।
  • कोचिंग संस्थानों का प्रभुत्व: स्पष्टता की कमी के कारण कोचिंग-संचालित तैयारी हो सकती है, जो विद्यार्थियों के तनाव को कम करने के लक्ष्य को प्रभावित कर सकती है।
  • बढ़े हुए बोझ का जोखिम: दबाव को कम करने की बजाय, यह सुधार विद्यार्थियों को एक की बजाय दो परीक्षा चक्रों के लिए तैयारी करने हेतु मज़बूर कर सकता है, जिससे तनाव और कार्यभार बढ़ सकता है।
  • बढ़ी हुई अपेक्षाएँ: इसके अतिरिक्त, अच्छे अंकों के लिए माता-पिता की अपेक्षाएँ दुगुनी हो जाएंगी, जिससे विद्यार्थियों पर दबाव भी दुगुना हो सकता है।
  • कार्यान्वयन का पैमाना: CBSE के अनुमान के अनुसार, 2026 की परीक्षाओं में 26.6 लाख विद्यार्थी शामिल होंगे। दो परीक्षा चक्रों के साथ, मूल्यांकन के लिए उत्तर पुस्तिकाओं की कुल संख्या 1.72 करोड़ से अधिक हो जाएगी। इस पैमाने को प्रबंधित करने के लिए निम्नलिखित की आवश्यकता होगी:
    • मूल्यांकनकर्ताओं का एक विशाल समूह;
    • एक समान ग्रेडिंग मानकों को बनाए रखने के लिए एक प्रणाली।
  • 12वीं कक्षा बोर्ड के साथ ओवरलैप: कक्षा 12वीं की परीक्षाओं (लगभग 20 लाख विद्यार्थियों को शामिल करने का अनुमान) के साथ ओवरलैप के कारण जटिलता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • दो महीने का अंतराल: फरवरी में खराब प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों के पास मई में दूसरे प्रयास की तैयारी के लिए मात्र दो महीने होंगे।
  • संरचित समर्थन की कमी: संरचित सुधार के बिना, विद्यार्थी अपने अधिगम में मूलभूत अंतराल को दूर करने की बजाय पुनः याद करने का प्रयास कर सकते हैं। यह रटने की आदत को कम करने के NEP-2020 के दृष्टिकोण का खंडन करता है।
  • मूल्यांकनकर्ताओं की कमी: परीक्षाओं की संख्या में वृद्धि के कारण ग्रेडिंग लोड को प्रबंधित करने के लिए मूल्यांकनकर्ताओं के एक विशाल समूह की आवश्यकता होगी। 
  • सुरक्षा जोखिम: एक ही विषय के लिए अलग-अलग समय पर कई परीक्षाएँ आयोजित किए जाने से, प्रश्नपत्रों से जुड़े सुरक्षा जोखिम बढ़ जाते हैं।
  • राज्य बोर्डों के लिए अनुकूलन चुनौतियाँ: यदि इसे पर्याप्त तैयारी के बिना लागू किया जाता है, तो राज्य बोर्डों को दो-परीक्षा प्रणाली को अपनाने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
  • अनुचित शुल्क संरचना: नीति के अनुसार विद्यार्थियों को दोनों प्रयासों के लिए परीक्षा शुल्क का भुगतान करना होगा, भले ही वे केवल एक बार परीक्षा देना चाहते हों।
    • यह नीति उन विद्यार्थियों को दंडित करती है, जो पहली परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के प्रति आश्वस्त हैं, जिससे उन्हें दूसरे गैर-वापसी योग्य प्रयास के लिए भुगतान करने हेतु बाध्य होना पड़ता है।
    • यह निष्पक्षता और परिवारों पर संभावित वित्तीय बोझ के संबंध में भी चुनौतीपूर्ण है।
  • स्पष्टता का अभाव: इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, कि आर्थिक रूप से वंचित विद्यार्थियों के लिए शुल्क माफ़ी या रियायतें प्रदान की जाएंगी अथवा नहीं, 
    • वे विद्यार्थी जी कि अतिरिक्त परीक्षा शुल्क वहन करने में असमर्थ हैं।
  • असमानता: प्रति शैक्षणिक वर्ष दो परीक्षाओं की शुरुआत निजी कोचिंग केंद्रों को इस प्रणाली का लाभ उठाने का अवसर प्रदान करती है।
    • दूसरे प्रयास के लिए विशेष कोचिंग का खर्च वहन करने में सक्षम धनी विद्यार्थियों को अनुचित लाभ मिल सकता है, जिससे शिक्षा प्रणाली में असमानताएँ और बढ़ सकती हैं।
  • विदेशी विश्वविद्यालयों में आवेदनों पर प्रभाव: विलंबित परिणाम विदेशी विश्वविद्यालयों में आवेदन करने वाले विद्यार्थियों को भी प्रभावित कर सकता है।
    • ऐसा इसलिए होगा क्योंकि अधिकांश अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने प्रवेश के लिए एक समय सीमा तय की है।
      • इसकी तुलना यूपीएससी मुख्य परीक्षा के परिणामों से की जा सकती है, जहाँ परिणामों में देरी के कारण प्रायः अगले चरणों की तैयारी बाधित होती है।

आगे की राह

  • संरचित उपचारात्मक कार्यक्रम: पहले प्रयास में खराब प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों की मदद करने के लिए दो परीक्षा चक्रों के मध्य संरचित उपचारात्मक कार्यक्रम स्थापित किए जाने की आवश्यकता है।
  • पायलट कार्यक्रमों का विस्तार: नीति को राष्ट्रव्यापी रूप से लागू करने से पहले विभिन्न क्षेत्रों और संदर्भों में चल रहे पायलट प्रोजेक्टों का विस्तार  किए जाने की आवश्यकता है।
  • उचित शुल्क संरचना: एक उचित शुल्क संरचना लागू किया जाना चाहिए, जो कि विद्यार्थियों को केवल एक प्रयास के लिए भुगतान करने की अनुमति देती है यदि वे दूसरी परीक्षा नहीं देना चाहते हैं।
  • योग्यता-आधारित शिक्षा को बढ़ावा: रटने की बजाय योग्यता-आधारित आकलन को दर्शाने के लिए प्रश्न पत्रों को फिर से डिज़ाइन किया जाना चाहिए।
  • अंतर्राष्ट्रीय मॉडल: सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिए दो-परीक्षा प्रणाली या निरंतर मूल्यांकन के अंतर्राष्ट्रीय मॉडल का अध्ययन किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

कक्षा 10 के विद्यार्थियों के लिए प्रस्तावित दो-परीक्षा प्रणाली में निहित उद्देश्य सराहनीय है, जो तनाव को कम करने और समग्र शिक्षा को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। उपर्युक्त चुनौतियों के समाधान के माध्यम से इसका बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सकता है, जो अंततः इसकी सफलता सुनिश्चित करेगा। 

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

CBSE की प्रस्तावित दो-परीक्षा योजना प्रणाली शैक्षिक सुधारों में नीतिगत उद्देश्य और कार्यान्वयन चुनौतियों के मध्य अंतर को दर्शाती है। शैक्षणिक, सामाजिक-आर्थिक और प्रशासनिक आयामों में इसके निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए तथा इसे NEP-2020 के दृष्टिकोण के साथ जोड़ने के उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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