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युवाओं की मदद के लिए चिंतन और कार्रवाई की आवश्यकता

Lokesh Pal March 27, 2024 05:30 166 0

संदर्भ:

भारत में वर्तमान सामाजिक-शैक्षणिक माहौल छात्रों के पालन-पोषण के संदर्भ में महत्वपूर्ण चिंताएँ उत्पन्न करता है। 

  • सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता का परिवर्तन न केवल युवाओं में निराशा की भावना पैदा कर रहा है, बल्कि उनके शैक्षणिक प्रयासों में तनाव का कारण भी बन रहा है। 

मुख्य परीक्षा के लिये प्रासंगिकता : वर्तमान सामाजिक शैक्षणिक माहौल और युवाओं की भावनात्मक चुनौतियाँ और भारतीय शिक्षा तंत्र की कमियाँ तथा आगे की राह I

युवाओं के आत्महत्या से संबंधित आँकड़े:  

  • कोटा, राजस्थान (ट्यूशन/कोचिंग का केंद्र) में पढाई कर रहे बिहार के एक किशोर के सुसाइड नोट के अनुसार, वह छात्र ‘संयुक्त प्रवेश परीक्षा’ (JEE) की तैयारी के दौरान तनाव का सामना कर रहा था I
  • वर्ष 2023 में कोटा में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं द्वारा सुसाइड करने की कई खबरें सामने आई थी ।
  • पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2022 में 15 छात्र; 2019 में 18 छात्र और 2018 में 20 छात्रों के नहीं मिलने की सूचना दर्ज की गई थी । 
  • 2020-21 के COVID-19 महामारी के दौरान संबंधित डेटा नगण्य थे, क्योंकि पारंपरिक कोचिंग सेंटर या तो बंद थे या वस्तुतः संचालित थे।

कोटा में कोचिंग सेंटर्स एवं छात्र कल्याण: 

       कोचिंग सेंटर्स:

  • प्रत्येक वर्ष भारत के प्रत्येक स्थान से लगभग 2,00,000 से अधिक अभ्यर्थी ‘शैक्षणिक उत्कृष्टता’ की प्राप्ति हेतु कोटा आते हैं, ताकि भारत में क्रमशः इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा के प्रवेश द्वार यानि JEE एवं राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) जैसी ‘प्रतिष्ठित’ प्रवेश परीक्षाओं के लिए तैयारी कर सके। 
  • इन युवाओं द्वारा आवासीय कोचिंग संस्थानों में दाखिला लेने से कोटा की अर्थव्यवस्था में तीव्र वृद्धि होती है I
    • इन शैक्षिक गतिविधियों के कारण प्रतिवर्ष “लगभग ₹10,000 करोड़” के महत्वपूर्ण  वार्षिक राजस्व का सृजन होता है ।

       छात्र कल्याण:

  • हालाँकि तैयारी के दौरान इन संस्थानों के प्रबंधन द्वारा कई उपाय किए गए लेकिन परिणाम निराशाजनक ही रहें : 
    • बच्चों के छात्रावासों में छत के पंखों में उपकरण लगा कर ‘आत्महत्या रोधी विशेषताओं’ से लैस किया गया ताकि बच्चों को खुद को नुकसान पहुँचाने से रोका जा सके I
    • छात्रावास की बालकनियों और आने-जाने के रास्तों पर लोहे की ग्रिल लगाई गयी । 
    • हालाँकि, कोटा के लगभग 25,000 पेइंग गेस्ट आवास में एकरूपता बनाए रखना मुश्किल है।
    •  एक अन्य अस्थायी निवारक उपाय के रूप में स्थानीय सरकार द्वारा दो महीने से अधिक समय के लिए कोचिंग संस्थानों में बच्चों के सभी नियमित टेस्ट बंद कर दिए गए थे । 
    • छात्रावास के कर्मचारियों को भी बच्चों के कल्याण हेतु प्रशिक्षण के द्वारा तैयार किया जा रहा है। 
    • व्यावसायिक विकास की दिशा में मेस प्रशासन द्वारा विशेष प्रशिक्षण, मनोवैज्ञानिक सहायता, व्यवहार परामर्श और समग्र छात्र कल्याण पर जोर दिया जाता है। 
    • कोटा पुलिस द्वारा “दरवाज़े पर दस्तक” जैसे अभियानों का समर्थन करके हॉस्टल वार्डन को और अधिक सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया गया है I 
      • साथ ही रसोई कर्मचारियों और भोजन सेवा प्रदाताओं को छात्रों को अपना भोजन अछूता रखने या छोड़ते हुए देखने पर तुरंत अधिकारियों को अवगत करने के लिये सचेत किया गया।.

छात्रों के आत्महत्या से संबंधित आँकड़े:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की “भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या 2022″ रिपोर्ट के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में 13,044 से अधिक भारतीय छात्रों द्वारा आत्महत्या की गई थी, जो उस वर्ष कुल आत्महत्या से होने वाली मौतों का 7.6% था । 
  • एक अन्य चिंताजनक आँकड़े के अनुसार आत्महत्याओं (छात्रों) की संख्या 2019 में 10,335 से बढ़कर 2020 में 12,526 और 2021 में 13,089 हो गई। 
    •  NCRB डेटा (2018) के अनुसार, 2007-18 के बीच लगभग 95,000 छात्र गायब हो गए थे ।
  • एक अन्य गंभीर तथ्य के अनुसार भारत की आधी से अधिक आबादी (विशेष रूप से 53.7%) में मुख्य हिस्सा 25 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों का है । 
    • हालाँकि, श्रम बल में उस आयु वर्ग के प्रवेश में एक महत्वपूर्ण बाधा आवश्यक कौशल की व्यापक कमी है। पिछले दशक में छात्र आत्महत्याओं में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है, जो व्यवहार्य नौकरी के अवसरों की कमी से भी जुड़ा है।

छात्रों की आत्महत्या हेतु जिम्मेदार कारक:

  • भारत के शिक्षा तंत्र की कमियाँ : समकालीन भारत में, उपयुक्त नौकरी के अवसरों की कमी, सरकारी संस्थानों में सीटों की सीमित संख्या और निजी संस्थानों में ली जाने वाली उच्च फीस के कारण तीव्र प्रतिस्पर्धा का माहौल निर्मित हुआ है। 
    • यह एक अत्यंत चिंताजनक मुद्दा है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • माता-पिता का भावनात्मक दबाव : युवा छात्रों पर पड़ने वाला प्रतियोगिता प्रतिस्पर्धा का निरंतर दबाव, माता-पिता द्वारा बच्चे की इच्छाओं को समझे बिना उन पर आरोपित की जाने वाली अपनी इच्छाओं के दबाव से और भी बदतर हो जाता है। 
    • कुछ छात्रों को अकादमिक उत्कृष्टता के ‘शिखर’ को प्राप्त करने के लिए अक्सर मजबूर किया जाता है और कई छात्रों को ‘वांछित संस्थान’ में प्रवेश के लिए प्रेरित किया जाता है।
    • कई छात्रों को ‘उम्मीदों को पूरा करने’ में विफल रहने की स्थिति में कठोर आलोचना का सामना करना पड़ता है और जब इन माँगों का बोझ असहनीय हो जाता है या उनकी आकांक्षाओं को पूरा करना असंभव हो जाता है, तो कुछ छात्र इन सब से बचने के लिये आत्महत्या का विकल्प चुन लेते हैं ।
  • सरकारी कॉलेजों की कमी: उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE) की रिपोर्ट (2019-20) के अनुसार केवल 21.4% कॉलेज ही सरकारी प्रशासन के अधीन हैं और 78.6% कॉलेज निजी संस्थाओं के अधीन हैं (केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का रिपोर्ट)। 
  • वित्तीय कारक : वर्ष 2008 के ‘द लांसेट’ के एक अध्ययन के अनुसार वैश्विक आत्महत्या से होने वाली मौतों में से लगभग 61% एशिया में केंद्रित थीं I 
    • भारत में कई परिवारों द्वारा  (विशेष रूप से मध्यम और निम्न-आय वर्ग ) वित्तीय बाधाओं का सामना किया जात हैं, जो उनके बच्चों को कोचिंग और ट्यूशन जैसे पूरक शैक्षिक संसाधन प्रदान करने से रोकता है। 
      • छात्रों को वित्तीय समर्थन की कमी उनपर विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं में सफल होने के लिए अत्यधिक दबाव डालती है और परीक्षा की असफलता उन्हें त्रासदी की ओर ले जाती है।
    • इसके अतिरिक्त, ऐसे कई उदाहरण हैं जब संस्थानों में संकाय सदस्य द्वारा छात्रों को उनके निम्न शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए दंडित किया जाता हैं, जबकि उन्हें इसके बजाय प्रोत्साहन और सहायता की पेशकश करनी चाहिए।

छात्रों से समाज और परिवार की अपेक्षाएँ:

  • समकालीन भारतीय समाज में, बच्चों और उनके परिवारों के मध्य संबंधों के कमजोर होने के साथ-साथ पारिवारिक संरचनाओं में उल्लेखनीय बदलाव आया है। 
    • इसके परिणामस्वरूप बच्चों का अपने रिश्तेदारों के साथ भावनात्मक जुड़ाव की क्षमता का विकास नहीं हो पाता है ।
    • भारतीय संदर्भ में विभिन्न कारक बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं, जो बदले में सामाजिक संबंधों को प्रभावित करते हैं।
    • माता-पिता  द्वारा अपनी शैक्षणिक प्राथमिकताएँ बच्चों पर थोपने से उनके और बच्चों के बीच के मजबूत संबंध की कमी स्पष्ट हो जाती है I 
    • माता-पिता का नियंत्रण, भावनात्मक अलगाव और सामाजिक अपेक्षाएँ एक छात्र के व्यक्तिगत हितों को दरकिनार करने में योगदान करती हैं। 
      • परिणामस्वरूप, छात्रों को माता-पिता के मानकों को पूरा करने संबंधी बाधा से जूझना पड़ता है, विशेषकर जब उन पर आरोपित विषय या पाठ्यक्रम में उनकी कोई रुचि नहीं होती है। 

युवाओं की भावनात्मक चुनौतियाँ  :

  • माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा करने की असमर्थता, युवाओं को अपमानित, निराश, हताश और परेशान महसूस करा सकती है।
  • शैक्षिक विशिष्टता की खोज एक छात्र के अस्तित्व संबंधी सामाजिक पहलुओं पर हावी हो जाती है, जिससे उन्हें उन पारस्परिक बंधनों और गतिविधियों से वंचित रहना पड़ता है जो एक पूर्ण व्यक्तित्व के लिए आवश्यक होता हैं। 
  • यह निराशाजनक है कि युवा छात्रों द्वारा सोशल मीडिया पर उनकी आंतरिक उथल-पुथल को व्यक्त किया जाता है, जिससे उनकी पीड़ा का पता चलता है। 
    • शैक्षिक प्रेरककर्ता छात्रों को वह अपेक्षित भावनात्मक आधार प्रदान करने में विफल रहते हैं, जिसकी इन युवाओं को आवश्यकता होती है। 
  • इसके अलावा, सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समुदायों के विद्यार्थियों को स्थानिक भेदभाव की कठोर वास्तविकताओं का भी सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी कठिनाइयों में और बढ़ जाती हैं ।

आगे की राह:

  • यह स्पष्ट है कि हमारे सामाजिक बुनियादी ढाँचे को और अधिक सहायक एवं मिलनसार बनाने और इन युवा जीवन का समर्थन करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • पारिवारिक संबंधों में अपेक्षाओं, प्रदर्शन और व्यक्तिगत हितों पर जोर देना भारतीय समाज की विशेषता है। ये गतिशीलता या तो छात्रों को सकारात्मक सुदृढीकरण के माध्यम से आगे बढ़ा सकती है या सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
    • अतः हमारी युवा पीढ़ी के लिए किसी भी संभावित नकारात्मक परिणाम को विफल करने के लिए सहानुभूति और स्वीकृति का माहौल बनाना महत्त्वपूर्ण है।

News Source: The Hindu

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