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भारतीय राजनीति में दल-बदल की समस्या और दसवीं अनुसूची

Lokesh Pal April 05, 2025 05:15 10 0

संदर्भ:

हालिया वर्षों में राज्य विधानसभाओं में दल-बदल का मुद्दा निरंतर विवादास्पद होता जा रहा है, जिससे भारत की लोकतांत्रिक अखंडता संबंधी गंभीर चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।

भारत में दल-बदल

  • राजनीतिक रणनीति: सत्तारूढ़ दलों, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर विधायी शक्ति बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से दल-बदल कराने का आरोप लगाया गया है, विशेष रूप से त्रिशंकु या बहुत कम अंतर से जीती गई विधानसभाओं में।
  • अध्यक्ष की भूमिका: कई मामलों में अध्यक्ष – जो प्रायः सत्तारूढ़ दल से होता है- दसवीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून) के तहत दायर अयोग्यता याचिकाओं पर कार्रवाई में देरी करता है। 
    • इस देरी से दल-बदल करने वाले नेताओं को अपनी सीटें बरकरार रखने और यहाँ तक ​​कि निर्णय लंबित रहने तक मंत्री पद भी प्राप्त करने का अवसर मिल जाता है।
  • उल्लेखनीय मामले: मणिपुर (2010 के अंत में) और महाराष्ट्र में, इस तरह की देरी से चुनाव के बाद बड़े पैमाने पर दल-बदल को संस्थागत रूप देने में मदद मिली ।
    • तेलंगाना (2024) में, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) द्वारा कांग्रेस में शामिल हुए 10 विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर अध्यक्ष द्वारा लगभग एक वर्ष के बाद कार्रवाई की गई

दलबदल पर न्यायिक प्रतिक्रिया

  • समय पर कार्रवाई : तेलंगाना में बीआरएस याचिका पर प्रतिक्रिया देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, कि जब स्पीकर कार्रवाई करने में विफल होते हैं तो वह शक्तिहीन नहीं होता। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि हालाँकि न्यायालय नतीजों को तय नहीं कर सकता, लेकिन वह उचित समय-सीमा के भीतर निर्णय पर बल दे सकता है।
  • संवैधानिक पीठ का निर्णय (मई 2023): पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने इस बात पर बल दिया, कि अध्यक्षों को “औचित्य और निष्पक्षता” के साथ कार्य करना चाहिए, उन्होंने दुहराया कि निर्णय में देरी दल-बदल विरोधी ढाँचे को कमजोर करती है
  • महाराष्ट्र मामला (अक्तूबर 2023): न्यायालय ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर कार्रवाई करने के लिए एक समय-सीमा निर्धारित की थी, जिसमें इस बात पर बल दिया गया कि न्यायिक निगरानी आवश्यक है
  • सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ: 2020 में, न्यायालय ने संसद से संविधान में संशोधन करने और दसवीं अनुसूची के तहत स्पीकर से विशेष अधिकार छीनने का आग्रह किया। इसने निष्पक्षता और तटस्थता सुनिश्चित करते हुए दल-बदल पर निर्णय लेने के लिए एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण का प्रस्ताव रखा।

संरचनात्मक समस्याएँ

  • हितों का टकराव: अध्यक्ष सत्तारूढ़ दल से चुने जाते हैं, जिससे संवैधानिक अपेक्षाओं के बावजूद तटस्थ निर्णय दुर्लभ हो जाता है।
  • संसद की निष्क्रियता: बार-बार न्यायिक दबाव के बावजूद, दल-बदल विरोधी न्याय निर्णय तंत्र में सुधार के लिए कोई संवैधानिक संशोधन नहीं किया गया है, जिससे यथास्थिति बनी हुई है

निष्कर्ष

भारतीय संविधान में दल-बदल विरोधी कानून का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए दल-बदल पर प्रभावी नियंत्रण लगाना है। हालाँकि, इस कानून के महत्त्व के बावजूद, यह सदन के सदस्यों की स्वतंत्रता पर कुछ हद तक प्रतिबंध लगाता है और प्रक्रियात्मक चुनौतियों को जन्म देता है, जो सुधारों की आवश्यकताओं को उजागर करते हैं। अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से प्रेरित होकर विभिन्न सुधारों का लक्ष्य स्थिरता और जवाबदेही के बीच संतुलन स्थापित करना है, जिससे एक मज़बूत और सशक्त लोकतंत्र को बढ़ावा दिया जा सके।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

महाराष्ट्र और तेलंगाना में हाल ही में हुई दल-बदल की घटनाओं के संदर्भ में, राज्य विधानसभाओं में दल-बदल के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए। बताइए कि इनके निपटान में दल-बदल विरोधी कानून (दसवीं अनुसूची) कितना प्रभावी रहा है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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