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भारत में स्थानीय स्वशासन के माध्यम से अपूर्ण विकेंद्रीकरण की समस्या

Lokesh Pal March 10, 2025 05:15 9 0

संदर्भ:

प्रभावी विकेंद्रीकरण और भूमिगत स्तर पर शासन के लिए वास्तविक वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता आवश्यक है।

अपूर्ण विकेंद्रीकरण

  • स्वायत्तता का भ्रम: अपूर्ण विकेन्द्रीकरण स्थानीय शासन का आभास कराता है, लेकिन इसमें वास्तविक प्राधिकार का अभाव होता है। 
    • स्थानीय निकाय वित्तीय और प्रशासनिक निर्णयों के लिए उच्च प्राधिकारियों पर निर्भर रहते हैं।
  • आवश्यकता: वास्तविक विकेन्द्रीकरण के लिए केवल कार्यों के स्थानांतरण से अधिक निम्न की आवश्यकता होती है- स्थानीय निकायों को अधिकार, उत्तरदायित्व और वैधता की प्राप्ति।
  • अपर्याप्त नियंत्रण: राज्य प्रायः स्थानीय निकायों को संसाधनों पर नियंत्रण दिए बिना ही उन्हें जिम्मेदारियाँ सौंप देते हैं

73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम

  • 73वाँ संविधान संशोधन (पंचायती राज व्यवस्था)
    • त्रिस्तरीय प्रणाली:
      • ग्राम पंचायत (ग्रामीण स्तर)।
      • ब्लॉक समिति (मध्यवर्ती स्तर)।
      • जिला परिषद (जिला स्तर)।
    • 11वीं अनुसूची: इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, ग्रामीण विकास सहित कुल 29 विषय शामिल हैं।
  • 74वाँ संविधान संशोधन (शहरी स्थानीय निकाय)
    • शहरी क्षेत्रों के लिए नगरीय शासन।
    • 12वीं अनुसूची: इसमें नगर नियोजन, स्वच्छता, जल आपूर्ति, शहरी विकास सहित कुल 18 विषय शामिल हैं।

पंचायतों से संबंधित मुद्दे

  • निम्न राजस्व (केवल 5-10%): पंचायतें संपत्ति कर, व्यावसायिक कर और अन्य स्थानीय कर एकत्र करती हैं। 
    • हालाँकि, राज्यों में असंगत नियमों और कमजोर प्रवर्तन के कारण राजस्व सृजन न्यूनतम है।
  • केंद्रीय अनुदान पर निर्भरता: अधिकांश धनराशि सरकारी योजनाओं जैसे- मनरेगा, जल जीवन मिशन आदि से आती है। इससे वित्तीय स्वायत्तता सीमित हो जाती है, क्योंकि धनराशि विशिष्ट परियोजनाओं से जुड़ी होती है, जिससे स्थानीय नियोजन में लचीलापन कम हो जाता है।
  • कमज़ोर वित्तीय संस्थाएँ: निधि आवंटन के लिए उत्तरदायी राज्य वित्त आयोग (SFC) को प्रायः गठन और कार्यान्वयन में देरी का सामना करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप अनियमित निधि हस्तांतरण होता है, जिससे पंचायतों का कामकाज प्रभावित होता है।
  • नौकरशाही (अधिकार-तंत्र) नियंत्रण: कई राज्य संस्थाएँ ​​अभी भी पंचायत के प्रमुख कार्यों की देखरेख करती हैं। इससे स्थानीय जवाबदेही कम हो जाती है और पंचायतों की निर्णय लेने की शक्ति सीमित होती है।
  • पारदर्शिता का अभाव: कई राज्यों में वित्तीय रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, जिसके कारण जवाबदेही कम हो जाती है। 
    • उदाहरण: केरल और महाराष्ट्र नियमित रूप से वित्तीय रिपोर्ट प्रकाशित करते हैं , जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश पारदर्शिता के मामले में पीछे हैं।
  • शासन अंतराल: कई ग्रामीण क्षेत्रों का शहरीकरण हो रहा है, लेकिन उन्हें अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • शहरी क्षेत्र भी प्रशासनिक समस्याओं से नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं, केवल नाम परिवर्तन से बेहतर प्रशासन सुनिश्चित नहीं होता है

आगे की राह

  • राजकोषीय हस्तांतरण: राज्यों को स्थानीय निकायों को वित्तीय शक्तियाँ प्रभावी रूप से हस्तांतरित करनी चाहिए।
  • राजस्व में वृद्धि: पंचायतों को बेहतर कर संग्रह और राजस्व सृजन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • ऋण लेने की शक्ति: स्थानीय निकायों के पास विकास के लिए धन उपलब्ध कराने हेतु नियंत्रित ऋण लेने की क्षमता होनी चाहिए।
  • पारदर्शिता विस्तार: नियमित वित्तीय प्रकटीकरण और लेखा-परीक्षण लागू किया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष

प्रभावी प्रशासन और विकेन्द्रीकरण सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय निकायों को वास्तविक वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार प्रदान करना आवश्यक है। प्रशासनिक नियंत्रण को कम करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने से उनकी कार्यकुशलता में विस्तार होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

73वें और 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से विकेंद्रीकरण के लिए संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद, स्थानीय स्वशासन अप्रभावी बना हुआ है। स्थानीय निकायों को मज़बूत करने के लिए बहुआयामी सुधारों का सुझाव देते हुए प्रशासनिक, वित्तीय और संस्थागत चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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