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पराली दहन की समस्या और पर्यावरण प्रदूषण

Lokesh Pal December 15, 2025 05:30 18 0

सन्दर्भ:

सरकार का दावा है, कि 2022 से पराली जलाने से लगने वाली आग की घटनाओं में 90% की कमी आई है, लेकिन दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार गंभीर बनी हुई है।

सरकारी दावा और नीति

  • सरकार का दावा है कि उसे “गाजर और छड़ी” की नीति (carrot and stick policy) के कारण सफलता मिली है:
    • कठोर उपाय: किसानों पर भारी जुर्माना लगाना।
    • गाजर: रियायती मशीनरी (जैसे- हैप्पी सीडर और सुपर सीडर) उपलब्ध कराना और किसानों को फसल के बचे हुए अवशेषों को थर्मल पावर प्लांट को बेचकर धन अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित करना।

सूचना अंतराल और डेटा संबंधी हेरफेर

  • वैज्ञानिक आँकड़ों का अभाव: वायु प्रदूषकों के सटीक रासायनिक डीएनए का निर्धारण करने और वायु में मौजूद पराली के धुएँ की मात्रा को मापने के लिए मास स्पेक्ट्रोग्राफ विश्लेषण की कमी है।
  • उपग्रह डेटा में खामियाँ: सरकार ध्रुवीय परिक्रमा करने वाले उपग्रहों से प्राप्त डेटा पर निर्भर करती है, जो भारत के ऊपर से दिन में केवल एक या दो बार, आमतौर पर सुबह 10:00 बजे से दोपहर 1:30 बजे के बीच गुजरते हैं।
  • किसानों का अनुकूलन: किसानों ने ध्रुवीय उपग्रहों द्वारा पता लगाए जाने से बचने के लिए आग लगाने का समय बदलकर शाम के समय कर दिया, जिससे आग की घटनाओं की संख्या में कमी का भ्रम पैदा हुआ।
  • आग लगने की घटनाओं की संख्या को एक संकेतक के रूप में उपयोग करना: सरकार ने पराली जलाने में कमी को मापने के लिए उपग्रह-आधारित आग लगने की घटनाओं की संख्या को एक संकेतक के रूप में उपयोग किया है।
    • 2020 के बाद से आई रिपोर्टों में पंजाब तथा हरियाणा में दिखाई देने वाली आग की घटनाओं में कमी देखी गई, जिससे सरकार ने सफलता का दावा किया।

जले हुए क्षेत्र – एक सटीक मापदंड के रूप में

  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश: 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के निकायों को निर्देश दिया, कि वे पराली जलाने की घटनाओं का अधिक सटीक आकलन करने के लिए केवल आग की गिनती की बजाय “जले हुए क्षेत्र” – यानी वास्तव में जले हुए भूमि क्षेत्र – का उपयोग करें।
  • पराली जलाने में वास्तविक कमी: एक शोध में पाया गया, कि जले हुए क्षेत्र में कमी केवल 30% थी न कि 90%, और जला हुआ क्षेत्र 2022 में 31,500 वर्ग किलोमीटर से घटकर 2025 में 19,700 वर्ग किलोमीटर हो गया।
  • आँकड़ों की पारदर्शिता संबंधी मुद्दे: केंद्र ने वर्षवार जले हुए क्षेत्र के आँकड़े सार्वजनिक नहीं किए हैं।
    • उपग्रहों का रिज़ॉल्यूशन अलग-अलग होता है, जिससे आग की वास्तविक संख्या निर्धारित करना कठिन हो जाता है। 
    • पारदर्शिता की कमी से जनता का विश्वास कम होता है और सरकार के दावों पर संदेह उत्पन्न होता है।

निष्कर्ष

प्रभावी नीति सत्य, पारदर्शी आँकड़ों और इस बात का अनुमान लगाने पर निर्भर करती है, कि लोग नई तकनीकों तथा नियमों के अनुकूल कैसे हो सकते हैं या उनसे कैसे बच सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: पराली जलाने की घटनाओं में कमी से संबंधित आँकड़ों में हालिया विसंगतियों के संदर्भ में, भारत में पराली जलाने के आकलन के लिए उपयोग किए जाने वाले वर्तमान आँकड़ों तथा निगरानी दृष्टिकोणों की सीमाओं का विश्लेषण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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