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भारत में लड़कियों के लिए शिक्षा के अधिकार और अवसरों की शीघ्र समाप्ति

Lokesh Pal December 20, 2025 05:30 66 0

संदर्भ:

‘सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहेवियर चेंज फॉर चिल्ड्रन’ (C-LAB) और ‘आउटलाइन इंडिया’ के एक नए अध्ययन (2025) के अनुसार, पाँच राज्यों—असम, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान—के कुल 757 गाँवों में 10,474 लड़कियाँ स्कूल नहीं जा रही हैं।

निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम

  • सीमित आयु कवरेज: शिक्षा का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत प्राप्त है, जो राज्य को 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का निर्देश देता है|
  • बड़े बच्चों का बहिष्कार: स्कूल न जाने वाली लड़कियों की एक बड़ी संख्या संभवतः 14 वर्ष से अधिक आयु की है, जो RTE ढाँचे के दायरे से बाहर हो जाती हैं।
  • विस्तारित कानूनी सुरक्षा का अभाव: 14 वर्ष की आयु के बाद निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई विशिष्ट सरकारी कार्यक्रम या विनियामक ढाँचा उपलब्ध नहीं है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

  • राज्यवार वितरण: स्कूल से बाहर रहने वाली लड़कियों की सबसे अधिक संख्या बिहार (5,781) में है, इसके बाद राजस्थान (1,627), असम (1,127), कर्नाटक (1,051) और महाराष्ट्र (888) का स्थान है।
  • ड्रॉपआउट (स्कूल छोड़ने की दर) संकट: रिपोर्ट बताती है, कि प्राथमिक स्तर की तुलना में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर अधिक है।
  • ड्रॉपआउट में उछाल: जैसे ही बच्चे 14 वर्ष के होते हैं (कक्षा 8 के बाद), सरकार की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है, जिससे विशेष रूप से लड़कियों के बीच ड्रॉपआउट में भारी उछाल आता है।
  • स्कूलों का बंद होना और विलय: 2019 से 2025 के बीच ‘युक्तिकरण’ के नाम पर लगभग 32,500 सरकारी स्कूलों को बंद या उनका विलय कर दिया गया।
  • दूरी में वृद्धि: स्कूलों के विलय ने यात्रा की दूरी बढ़ा दी है, जो RTE मानदंडों का उल्लंघन है। इससे लड़कियों के लिए यात्रा असुरक्षित हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप नामांकन में 7.2% की गिरावट आई है।

स्कूल जाने में बाधाएँ

  • बाल विवाह की भूमिका: लड़कियों के स्कूल न जाने के पीछे प्रारंभिक विवाह एक प्रमुख सामाजिक-सांस्कृतिक कारक बना हुआ है, विशेष रूप से बिहार, असम और राजस्थान जैसे राज्यों में।
  • आर्थिक और ढाँचागत बाधाएँ: खराब आर्थिक स्थिति, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, सुरक्षा चिंताएँ, परिवहन की कमी और सांस्कृतिक कलंक भी गैर-उपस्थिति में योगदान करते हैं।

ड्रॉपआउट समस्या के परिणाम:

  • शिक्षा के सार्वभौमीकरण में बाधा: स्कूल ड्रॉपआउट ‘शिक्षा के सार्वभौमीकरण’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है।
  • लैंगिक परिणाम: लड़कियों के लिए, पढ़ाई छोड़ना उनकी गरिमा, स्वायत्तता और स्वास्थ्य विकल्पों को कमजोर करता है, तथा उन्हें बाल श्रम और बाल विवाह जैसे खतरों के प्रति संवेदनशील बनाता है।
  • विकासात्मक प्रभाव: यह भविष्य की रोजगार संभावनाओं और बौद्धिक विकास को सीमित करता है, जिससे आर्थिक प्रगति और सतत विकास में बाधा आती है।

आगे की राह

  • बहुआयामी दृष्टिकोण: सरकार और नागरिक समाज के बीच सहयोग के माध्यम से निरंतर हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
  • RTE का विस्तार: RTE अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन और अधिनियम में संशोधन करके आयु सीमा को 14 से बढ़ाकर 18 वर्ष करना आवश्यक है।
  • लक्षित प्रतिधारण और छात्रवृत्ति: ड्रॉपआउट दरों को कम करने और स्कूल पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु विशेष छात्रवृत्ति योजनाओं की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

यह अध्ययन 14 वर्ष के बाद शिक्षा के एक महत्त्वपूर्ण अंतर को उजागर करता है, जहाँ कानूनी सुरक्षा की समाप्ति और सामाजिक बाधाएँ लड़कियों को कक्षाओं से बाहर धकेल देती हैं। लैंगिक रूप से न्यायपूर्ण मानव पूँजी विकास सुनिश्चित करने के लिए RTE को 18 वर्ष तक विस्तारित करना और अन्य सुरक्षा उपाय करना अनिवार्य है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. संवैधानिक और विधिक गारंटियों के बावजूद भारत में स्कूल छोड़ने की दर, विशेषकर लड़कियों के बीच,  एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। भारत में लड़कियों के बीच स्कूल ड्रॉपआउट में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों की चर्चा कीजिए तथा स्कूली शिक्षा के सार्वभौमीकरण को प्राप्त करने पर इसके प्रभावों का परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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