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भारत में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका तथा उनको प्राप्त विदेशी सहायता की समाप्ति के संभावित प्रभाव

Lokesh Pal May 05, 2025 05:00 8 0

संदर्भ:

विदेशी सहायता के प्रति भारत का दृष्टिकोण हमेशा से ही दुविधापूर्ण रहा है – कभी वह इसका स्वागत करता है, तो कभी इसे अस्वीकार कर देता है। मौजूदा वैश्विक रुझान, खास तौर पर ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका द्वारा विदेशी सहायता वापस लेना तथा यूरोपीय देशों द्वारा इसके संभावित अनुसरण से वैश्विक स्तर पर आधिकारिक सहायता में कमी का संकेत मिलता है।

विदेशी सहायता

  • संदर्भित: एक देश से दूसरे देश को सहायता।
  • प्रकार: आधिकारिक विकास और निजी सहायता, जिसका उद्देश्य विकास, आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार आदि है।
  • प्राप्तकर्ता: सरकारें एवं गैर-सरकारी संगठन।

भारत का सहायता से निवेश की ओर रुख (Aid to Investment)

  • विकास के लिए स्वतंत्रता-पश्चात् रणनीति: भारत ने प्रगति के लिए स्वतंत्रता-पश्चात् सहायता स्वीकार की।
  • भारत के प्रति परिवर्तित वैश्विक धारणा: भारत को पश्चिमी देश अब एक विशिष्ट सहायता प्राप्त करने वाले देश के रूप में नहीं देखते हैं, जिसके मुख्य कारण हैं:
    • उच्च आर्थिक विकास
    • 2047 तक पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा।
    • देश के भीतर राजनीतिक और धार्मिक परिवर्तन।
  • स्वतंत्रता के बाद: भारत ने सक्रिय रूप से सहायता माँगी, मुख्यतः सरकार के माध्यम से।
  • सहायता का चरम काल: 1955-1965, मुख्यतः पश्चिमी देशों से।

आधिकारिक विकास सहायता में कमी

  • विदेशी सहायता में दीर्घकालिक गिरावट: 1970 के दशक से आधिकारिक विकास सहायता में निरंतर गिरावट।
  • आर्थिक विकास से सहायता पर निर्भरता कम हुई: 1990 के बाद, आर्थिक विकास के कारण आधिकारिक विकास सहायता (ODA) महत्त्वहीन हो गई।
  • निवेश और साझेदारी की ओर झुकाव: वर्तमान भारत पारंपरिक सहायता की अपेक्षा एफडीआई और वैश्विक सहयोग की माँग करता है।

गैर-सरकारी संगठनों और निजी सहायता पर प्रभाव

  • सहायता में कमी का असमान प्रभाव: सहायता में कमी का प्रभाव सरकार की तुलना में गैर-सरकारी संगठनों पर अधिक पड़ता है।
  • शासन में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका: गैर-सरकारी संगठन शासन में महत्त्वपूर्ण अंतराल को भरने का कार्य करते हैं और जवाबदेही संस्था के रूप में कार्य करते हैं।
  • गैर-सरकारी संगठनों के लिए पारंपरिक वित्तपोषण स्रोत: 1960 के दशक से मुख्य वित्तपोषण स्रोत- सरकारी अनुदान और विदेशी सहायता
  • वित्त पोषण स्रोत के रूप में सीएसआर का उदय: सीएसआर (निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व) का योगदान 2013 के बाद ही महत्त्वपूर्ण हो गया।

विदेशी एनजीओ फंडिंग में हालिया दृष्टिकोण

  • एनजीओ के लिए हालिया विदेशी सहायता: एनजीओ को विदेशी सहायता (2017-2022) से ₹88,882 करोड़ प्राप्त हुए, लेकिन अंतर्वाह में कमी आ रही है
  • विदेशी वित्तपोषण में नियामक बाधाएँ: FCRA प्रतिबंध और बदलते नियम प्रमुख बाधाएँ हैं:
    • 1976 में कानून पारित; कई बार संशोधित (2010, 2011, 2020, 2023, 2024)
    • अनुपालन नियम अधिक कठोर होते गए; कई गैर-सरकारी संगठनों का पंजीकरण रद्द हो गया।

सरकार की दुविधा और प्रतिबंध

  • एनजीओ के प्रति ऐतिहासिक अविश्वास: एनजीओ के प्रति आधिकारिक संदेह आपातकाल से पूर्व (1975) से ही चला आ रहा है।
  • विदेशी हस्तक्षेप के आरोप: सरकार ने राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए विदेशी हस्तक्षेपको दोषी ठहराया:
    • धर्म परिवर्तन;
    • पर्यावरण विरोध प्रदर्शन; तथा
    • सरकारी नीति का विरोध।
  • विदेशी हस्तक्षेप पर प्रतिबंध: सोरोस फाउंडेशन जैसे निजी दानकर्ताओं को भी हतोत्साहित किया गया है।

विदेशी सहायता में कमी के परिणाम

  • विदेशी सहायता में कमी से निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:
    • गैर-सरकारी संगठन क्षेत्र में बेरोज़गारी।
    • अधूरी या रुकी हुई विकास परियोजनाएँ।
    • वैश्विक सहयोग में कमी (जैसे- एचआईवी कार्यक्रम)।
    • गैर-सरकारी संगठनों के निगरानी कार्यों का कमजोर होना।
  • सीमाओं के बावजूद विदेशी सहायता का मूल्य: कमियों के बावजूद, विदेशी सहायता ने अनुकूलन, नवीनता और वैश्विक परिप्रेक्ष्य प्रदान किया

निष्कर्ष

भारत सहायता प्राप्तकर्ता से भागीदार बन गया है, लेकिन सामाजिक विकास के लिए एनजीओ को अभी भी सहायता की आवश्यकता है। जबकि आत्मनिर्भरता महत्त्वपूर्ण है, विदेशी सहायता को पूरी तरह से बंद कर देने से राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँच सकती है, जिससे एनजीओ की चुनौती देने, नवाचार और कमजोर समूहों का समर्थन करने की क्षमता कमज़ोर हो सकती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

विदेशी सहायता के साथ भारत के विकसित होते संबंधों की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। चर्चा कीजिए, कि किस प्रकार नियामक चिंताओं, राष्ट्रीय संप्रभुता, नागरिक समाज विकास और सामाजिक क्षेत्र की आवश्यकताओं के बीच संतुलन एक प्रशासन संबंधी चुनौती प्रस्तुत करता है, जिसके लिए सरल आत्मनिर्भरता कथाओं से परे एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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