Lokesh Pal
May 12, 2025 05:30
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भारत और दक्षिण एशिया में महिलाओं ने अन्यायपूर्ण विकास, संसाधन दोहन (एक्सट्रैक्टिविज़्म) और पर्यावरण निम्नीकरण के विरुद्ध जमीनी स्तर पर नेतृत्व किया है। अपनी केंद्रीय भूमिका के बावजूद, उन्हें निर्णय निर्माण प्रक्रियाओं, परामर्श बैठकों और भूमि शासन से व्यवस्थित रूप से बाहर रखा जाता है।
सही अर्थ में लैंगिक और जलवायु न्याय दोनों के लिए प्रणालीगत परिवर्तन आवश्यक हैं। पर्यावरणीय प्रतिरोध में महिलाओं की नेतृत्व भूमिका पीड़ित होने की नहीं, बल्कि बेहतर दृष्टिकोण और क्षमता की प्रतीक है। आवश्यक है, कि नीतियाँ, कानून और संस्थाएँ इस योगदान को मान्यता दें और उन्हें सशक्त बनाएँ।
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