//php print_r(get_the_ID()); ?>
Lokesh Pal
April 21, 2025 05:15
63
0
एनईपी 2020 के तहत भारतीय ज्ञान प्रणालियों के चल रहे पुनरुद्धार ने खगोल विज्ञान और कैलेंडर जैसे पारंपरिक विज्ञानों में रुचि को फिर से जगा दिया है।
भारतीय कैलेंडर सिर्फ़ समय-निर्धारण की प्रणाली नहीं है – यह खगोल विज्ञान, कृषि, अनुष्ठान और दर्शन का एक गहन मिश्रण है। शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में इसे पुनः प्राप्त करने और बढ़ावा देने से विज्ञान और संस्कृति के बीच की खाई को समाप्त करने में मदद मिल सकती है , यह सुनिश्चित करते हुए कि आधुनिकता सांस्कृतिक विस्मृति की कीमत पर स्थापित नहीं की जा सकती है।
मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्नप्रश्न: समकालीन भारत में पारंपरिक भारतीय कैलेंडर प्रणालियों की प्रासंगिकता का मूल्यांकन करें। क्या ये प्रणालियाँ आधुनिक समय-निर्धारण विधियों के साथ सह-अस्तित्व में हैं बताइए। इसके साथ ही सांस्कृतिक विरासत और पहचान को संरक्षित करने में उनकी क्या भूमिका है? समझाइए। (15 अंक, 250 शब्द) |
<div class="new-fform">
</div>
Latest Comments