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नए दलाई लामा का चयन भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण अवसर तथा चीन के साथ संघर्ष

Lokesh Pal July 23, 2025 05:00 21 0

संदर्भ:

हिमालय में बौद्ध धर्म पर नियंत्रण को लेकर, विशेष रूप से दलाई लामा के उत्तराधिकार को लेकर, भारत और चीन के मध्य एक महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक संघर्ष चल रहा है। यह संघर्ष केवल क्षेत्र या व्यापार के विषय में नहीं, बल्कि आस्था से संबंधित है, जो उस क्षेत्र में प्रभाव डालने हेतु चीन का प्राथमिक उपकरण है, जहाँ बुनियादी ढाँचे है और मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।

पृष्ठभूमि

  • जबकि बौद्ध धर्म पारंपरिक रूप से अहिंसा के सिद्धांत का समर्थन करता है, 21वीं सदी में यह एक भू-राजनीतिक शतरंज की बिसात बन गया है, जहाँ मठ जो कभी ध्यान और मठवासी शिक्षा के केंद्र के रूप में कार्य करते थे, अब राष्ट्रीय शक्ति के खेल की अग्रिम पंक्ति में हैं।
  • बौद्ध धार्मिक गुरु लामा का पुनर्जन्म अब न केवल धर्म का बल्कि, संप्रभुता का भी विषय बन गया है।
  • लद्दाख, तवांग और यहाँ तक कि सुदूर भूटान जैसे क्षेत्रों में बौद्ध संस्कृति न केवल पवित्रता से बल्कि रणनीति से भी आकार ले रही है।

बौद्ध धर्म को नियंत्रित करने की चीन की रणनीति

चीन निरंतर बौद्ध धर्म को नियंत्रित करने का प्रयास करता रहा है, खासकर 1959 में दलाई लामा के भारत में शरण लेने के पश्चात् से। उन्हें इस असुरक्षा का भय था, कि बौद्ध धर्म पर नियंत्रण न होने से तिब्बत चीन से अलग हो सकता है। चीन द्वारा अपनाई गई कुछ रणनीतियाँ इस प्रकार हैं:

  • हाशियाकरण: चीन ने स्वतंत्र धार्मिक गुरु लामा को राज्य के विरुद्ध बोलने से रोकने के लिए उन्हें हाशिए पर डाल दिया या निष्कासित कर दिया है। कई बौद्ध संस्थाओं को सहयोजित कर लिया गया है, जिसका अर्थ है कि राज्य ने उन पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है।
  • मठवासी गतिविधियों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण: चीन मठवासी गतिविधियों की बारीकी से निगरानी करता है तथा यह नियंत्रित करता है, कि मठों में कौन प्रवेश करता है और क्या पढ़ाया जाता है।
  • पुनर्जन्म के लिए राज्य की मंजूरी: 2007 में, चीनी सरकार ने औपचारिक रूप से कहा कि किसी भी जीवित बुद्ध को वैधता प्राप्त करने के लिए राज्य की मंजूरी लेनी होगी
    • इसका अर्थ यह था, कि आध्यात्मिक नेताओं को तभी मान्यता दी जाएगी जब राज्य उन्हें मंजूरी देगा।
  • नियंत्रण में हालिया घटनाक्रम:
    • चीन सभी लामाओं के व्यापक आँकड़ें रखता है।
    • तिब्बत में भिक्षुओं की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए मठों के आस-पास महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे का विकास, जैसे- सड़कें आदि, किया गया है।
    • चीन बौद्ध धर्म से संबंधित सम्मेलनों का आयोजन करता है तथा वहाँ आने वाले बौद्ध भिक्षुओं की निष्ठा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें भव्य आतिथ्य प्रदान करता है।

भारत का दृष्टिकोण और संबंधित चुनौतियाँ

  • वर्ष 1959 से दलाई लामा की भारत में उपस्थिति के बावजूद, भारत ने इसका पूर्ण लाभ नहीं उठाया।
    • हालाँकि भारत पिछले दशक में बौद्ध मामलों में अपनी सॉफ्ट पावर बढ़ाने पर अधिक सक्रिय हो गया है, लेकिन इसका दृष्टिकोण खंडित और केंद्रीकृत दृष्टि के अभाव वाला माना जाता है।
  • हालिया नीतिगत पहलें: भारत ने स्वदेश दर्शन योजना के तहत एक बौद्ध सर्किट विकसित किया है, जो कुशीनगर, सारनाथ और गया जैसे तीर्थस्थलों को जोड़कर अधिक बौद्ध तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। इसने यह भी दावा किया है, कि बुद्ध भारतीय थे और उनका जन्म भारत में हुआ था।
  • चीन के साथ तुलना: भारत का दृष्टिकोण सॉफ्ट पावर तक सीमित है, जबकि चीन ने बौद्ध धर्म को अपने शासन-कौशल में शामिल कर लिया है, तथा सक्रिय रूप से इसे नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है।

दलाई लामा का उत्तराधिकार

  • संघर्ष का मुख्य बिंदु दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन है, क्योंकि वर्तमान दलाई लामा अब 90 वर्ष के हो चुके हैं।
    • यह निर्णय इस बात को निर्धारित करेगा, कि नए लामा की निष्ठा चीन के प्रति है या वह स्वतंत्रता के प्रति।
  • वर्तमान दलाई लामा का दृष्टिकोण: वर्तमान दलाई लामा का कहना है, कि उनके उत्तराधिकारी का चयन चीन के बाहर से किया जाएगा।
  • चीन का दृष्टिकोण: चीन के अनुसार, चयन में सदियों पुरानी स्वर्ण कलश पद्धति का पालन किया जाएगा।
    • इस पद्धति में एक स्वर्ण कलश से नाम का चयन किया जाता है तथा स्थानीय सम्राट से अनुमोदन प्राप्त किया जाता है।
    • चीन इस पद्धति का उपयोग अपने अधिकार को लागू करने तथा राज्य के माध्यम से अगले दलाई लामा को मान्यता देने के लिए करना चाहता है।
  • प्रत्याशित परिणाम: इन विरोधी विचारों को देखते हुए, यह संभावना है कि भविष्य में दो दलाई लामा होंगे:
    • चीन द्वारा समर्थित – स्वर्ण कलश विधि के माध्यम से चुना गया।
    • चीन के बाहर से चुना गया, जिसे भारत और व्यापक बौद्ध प्रवासी समुदाय का समर्थन प्राप्त हो। इससे तिब्बती बौद्ध धर्म में एक व्यापक विभाजन उत्पन्न हो सकता है।

भू-राजनीतिक निहितार्थ और छद्म युद्ध

यह अप्रत्याशित विभाजन भारत के लिए गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है, जिसने हिमालयी बौद्ध धर्म को भारत और चीन के मध्य छद्म युद्ध में एक मोर्चा बना दिया है।

  • मठों पर चीनी दबाव: चीन भारत में मठों पर चीन द्वारा समर्थित दलाई लामा का समर्थन करने के लिए दबाव डालेगा, जिसमें लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के मठ, साथ ही श्रीलंका और मंगोलिया के मठ शामिल हैं
  • मठों का प्रभाव: मठों का प्रभाव उनके परिसर से आगे बढ़कर स्थानीय आबादी तक विस्तृत है, जिससे चीन समर्थित लामा को दिया जाने वाला कोई भी समर्थन चीन के लिए अप्रत्यक्ष रूप से महत्त्वपूर्ण समर्थन बन जाता है। यह भारत के लिए, खासकर लद्दाख जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में, एक गंभीर चुनौती है।
  • चीन का सक्रिय प्रभाव निर्माण:
    • चीन ने अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए नेपाल में बौद्ध बुनियादी ढाँचे में व्यापक निवेश किया है
    • इसने भूटान के मठवासी समुदायों के साथ भी घनिष्ठ संबंध बनाए रखे हैं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उनका समर्थन प्राप्त किया जा सके।
    • चीन अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र को तिब्बत का हिस्सा बताता है और कहता है, कि यह छठे दलाई लामा का जन्मस्थान है, इस प्रकार वह इस क्षेत्र पर अपना दावा प्रकट करता है।
  • प्रत्यक्ष छद्म युद्ध के उदाहरण: छद्म युद्ध पहले से ही निम्नलिखित के माध्यम से स्पष्ट हैं:
    • तिब्बती बौद्ध धर्म के कर्मा काग्यू संप्रदाय में दो प्रतिद्वंद्वी कर्मापा हैं, जिनमें से एक का समर्थन चीन करता है और दूसरे का भारत।
    • चीन द्वारा डोगे सुग्देन संप्रदाय को समर्थन, जिसे दलाई लामा द्वारा तिब्बती बौद्ध एकता के विरुद्ध मानी जाने वाली गतिविधियों के कारण निर्वासित कर दिया गया था।
    • चीन द्वारा इस संप्रदाय को अपनाना, मतभेद उत्पन्न करने और प्रभाव हासिल करने की उसकी रणनीति को दर्शाता है।

निष्कर्ष

भारत इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में चीन के समक्ष झुकने का जोखिम नहीं उठा सकता। अगले दलाई लामा की मेज़बानी भारत के लिए एक अवसर और चुनौती दोनों है, यह क्षेत्र में आध्यात्मिक प्रभाव को मज़बूत करने का एक अवसर तो है ही, साथ ही चीन की ओर से तीव्र दबाव का कारण भी बन सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

हिमालयी सीमांत क्षेत्रों में आध्यात्मिक वैधता का युद्ध तेज़ी से भू-राजनीतिक प्रभाव का एक साधन बनता जा रहा है। हिमालय में भारत-चीन संबंधों और क्षेत्रीय निष्ठाओं को आकार देने में बौद्ध धर्म एवं पुनर्जन्म की राजनीति की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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