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यूक्रेन-रूस संघर्ष तथा इसकी अनंतिम परिणति की आवश्यकता और विश्व पर उसके प्रभाव

Lokesh Pal July 23, 2025 05:30 33 0

संदर्भ:

यूक्रेन-रूस संघर्ष मूलतः सहनशक्ति और धैर्य की महंगी परीक्षा में बदल गया है, जिसकी विशेषता एक क्रूर सैन्य और कूटनीतिक गतिरोध है, जहाँ कोई भी पक्ष निर्णायक जीत हासिल नहीं कर सकता।

  • युद्ध प्रारंभ होने के तीन वर्ष बाद भी, महत्त्वपूर्ण पश्चिमी सहायता और निरंतर आक्रमण के बावजूद, युद्धक्षेत्र अभी भी व्यापक रूप से अस्थिर बना हुआ है।

युद्धक्षेत्र गतिरोध

  • 2023 में यूक्रेन का बहुप्रतीक्षित जवाबी हमला प्रमुख क्षेत्रीय लाभ प्राप्त करने में विफल रहा, जिससे रूसी सेना की मजबूत स्थिति और आधुनिक पश्चिमी हथियारों की सीमाओं का पता चला।
  • रूस को अपनी संख्यात्मक श्रेष्ठता और हाल ही में हुई वृद्धि के बावजूद, ये उपलब्धियाँ महंगी पड़ी हैं और वह भारी सैन्य और कूटनीतिक व्यय किए बिना यूक्रेन पर विजय पाने में सक्षम नहीं है।
  • वर्तमान में दोनों में से किसी भी देश के पास निर्णायक प्रहार करने की क्षमता नहीं है।
  • यूक्रेन के पास पूरे मोर्चे पर रूसी ठिकानों को पीछे धकेलने के लिए रणनीतिक चिंतन और आक्रामक शक्ति का अभाव है, जबकि रूस राजनीतिक रूप से स्थायी तरीके से पूर्ण युद्ध या कब्जे को उचित नहीं ठहरा सकता। इसके परिणामस्वरूप एक क्रूर संतुलन उत्पन्न हो गया है, जहाँ स्थानीय लाभ तो होता है, लेकिन रणनीतिक गति अनुपस्थित रहती है।

पश्चिमी सहायता की भूमिका

  • पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, से निरंतर प्राप्त सैन्य सहायता, इस संतुलन को बनाए रखने में एक महत्त्वपूर्ण कारक रही है।
  • हाल ही में एक बदलाव यह हुआ, कि अमेरिका ने पहले की रुकावटों के बावजूद यूक्रेन को सैन्य आपूर्ति पुनः प्रारंभ करने का निर्णय लिया।
  • हालाँकि, यह सहायता यूक्रेन के अस्तित्व के लिए महत्त्वपूर्ण है, लेकिन अक्सर जीत सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त होती है।
  • यह मौलिक गतिशीलता में परिवर्तन किए बिना युद्धक्षेत्र में गतिरोध को बनाए रखता है, जिससे “विजय तक लड़ने” की अवधारणा तेजी से अनिश्चित होती जा रही है, क्योंकि कोई भी पक्ष स्पष्ट रूप से यह परिभाषित नहीं कर सकता, कि विजय कैसी दिखती है।
  • इससे यूक्रेन को कुछ समय तक जीवित रहने का मौका तो मिल जाता है, लेकिन जीत हासिल नहीं होती।

युद्धविराम और वार्ता संबंधी चुनौतियाँ

  • रूस युद्ध विराम का उपयोग पुनः संगठित होने, कब्जे वाले क्षेत्र पर अपना नियंत्रण मजबूत करने तथा कूटनीतिक रूप से पश्चिम को पराजित करने के लिए कर सकता है, संभवतः ब्रिक्स या शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों के माध्यम से।
  • लाभ को वैध बनाना: यूक्रेन को भय है, कि वर्तमान युद्ध विराम से डोनबास और क्रीमिया में रूसी लाभ को वैध बना दिया जाएगा, जिससे यूक्रेनी संप्रभुता स्थायी रूप से कमजोर हो जाएगी और उसकी सेना का मनोबल गिर जाएगा।
  • तनाव में वृद्धि की आशंका: संघर्ष के बढ़ने की संभावना है, जहाँ रूस बाल्टिक्स में मिश्रित खतरों या साइबर हमलों के माध्यम से नाटो के संकल्प का परीक्षण कर सकता है।

व्यापक भू-राजनीतिक संदर्भ

  • व्यापक अस्थिरता के कारण संघर्ष का लक्ष्य आसानी से बदल सकता है, जैसे कि पश्चिम एशिया में ईरान-इज़राइल संघर्ष, जो पश्चिमी देशों का ध्यान और संसाधन ले सकता है, जिससे सहायता का मार्ग बदलने और यूक्रेन के लिए रणनीतिक थकान का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • यह युद्ध वैश्विक गठबंधनों को नया रूप दे रहा है। हालाँकि G-7 समूह काफ़ी हद तक एकजुट बना हुआ है, लेकिन कुछ देशों में थकान साफ़ दिखाई दे रही है। इस बीच, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) रूस के लिए पश्चिमी अलगाव से बचने के मंच का कार्य कर रहे हैं।
  • भारत, अपनी ओर से रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखता है, पीड़ा की निंदा करता है, लेकिन मास्को की प्रत्यक्ष निंदा से बचता है, रूस के साथ मजबूत रक्षा संबंधों और अमेरिका के साथ बढ़ती साझेदारी को संतुलित करता है।

संभावित परिणाम

  • रुका हुआ संघर्ष: सबसे संभावित परिणाम जीत की बजाय धैर्य रखना प्रतीत होता है। एक वास्तविक समाधान एक रुका हुआ संघर्ष हो सकता है, भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा की तरह, जो अवांछनीय तो है, लेकिन संभावित रूप से टिकाऊ भी हो सकता है।
  • स्थिर संघर्ष के लिए आवश्यकताएँ: ऐसी व्यवस्था के लिए यूक्रेन हेतु सुरक्षा गारंटी, विसैन्यीकृत क्षेत्रों की स्थापना और अनुपालन की निगरानी के लिए तंत्र की आवश्यकता होगी, संभवतः संयुक्त राष्ट्र या OSCE अधिदेश के तहत। हालाँकि, इस तरह के ढाँचे के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का वर्तमान में अभाव है।
  • युद्ध के नए क्षेत्र: न केवल ज़मीन पर, बल्कि अंतरिक्ष, साइबर या यहाँ तक कि परमाणु क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में भी, युद्ध में वृद्धि की संभावना बनी हुई है। इस संघर्ष को आधुनिक युद्ध में नई तकनीकों के परीक्षण के रूप में देखा जा रहा है।

21वीं सदी के युद्ध की प्रकृति

  • 21वीं सदी में युद्ध केवल मारक क्षमता से ही निर्धारित नहीं होता – राजनीतिक स्पष्टता, सैन्य स्थिरता और समयबद्धता जैसे महत्त्वपूर्ण कारक भी इसमें शामिल हैं।
  • यूक्रेन में, उपर्युक्त तत्त्व वर्तमान में परिवर्तनशील हैं, जिससे संघर्ष की स्थिति बन गई है।
  • यह संघर्ष एक भू-राजनीतिक शक्ति प्रतियोगिता बन गया है यूक्रेन के सहयोगियों के लिए चुनौती यह सुनिश्चित करना है, कि उनका समर्थन केवल अनिश्चितकालीन अस्तित्व का एक बहाना बनकर न रह जाए।
  • रूस के लिए मूल प्रश्न यह है, कि क्या बिना किसी रियायत के सामरिक लाभ से रणनीतिक शांति स्थापित हो सकती है, अर्थात बिना समझौते के समाधान असंभव है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

लंबे समय से चल रहा रूस-यूक्रेन संघर्ष एक ऐसे युद्ध में बदल गया है, जिसका कोई निर्णायक परिणाम नज़र नहीं आ रहा है। इस रणनीतिक गतिरोध के प्रमुख कारणों का विश्लेषण कीजिए, साथ ही एक स्थायी समाधान के लिए किए जाने वाले प्रयासों को सुझाइए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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